।। श्रीहरिः ।।


भक्तिकी सुगमता

अपनेमें करनेका भाव होनेसे, जाति, बल, योग्यता, वर्ण, आश्रमका अभिमान होनेसे भक्ति कठिन मालूम होती है । पारमार्थिक मार्ग कठिन है ही नहीं, केवल जडताका आदर, आश्रय होनेसे कठिन मालूम होती है, वरना जैसे नींद लेनेमें कोई परिश्रम नहीं करना पडता, ऐसे ही शरणागति, भक्ति सुगम है ।

जैसे पतिव्रता स्त्री केवल पतिके आश्रित होती है, ऐसे ही केवल भगवानकी शरण हो जाय । श्री रामायणजीमें गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी महाराजने कहा है की ' भक्ति स्वतंत्र सर्वगुण खानी '। ' ममैवांशो जीवलोके ' -- भगवानकी बातको स्वीकार कर लिया की हा महाराज ..' हे नाथ ! मैं आपका हूँ '। इतना सुगम की जैसे छोटा बालक कहता है की ' मेरी माँ है ', इसमे क्या जोर,परिश्रम पड़ता है ? क्या बल, योग्यताकी जरुरत हैं ? सर्वदा भगवानके होकर रहें, और किसीकी जरुरत, आवश्यकता नहीं है ।

-दि॰२०/०५/१९९०,प्रातः५ बजेके प्रवचनसे