।। श्रीहरिः ।।

उद्देश्यकी दृढता

श्रोता — वास्तविक उद्देश्यकी दृढता कैसे हो ?
स्वामीजी — मानवजीवनका वास्तविक उद्देश्य परमात्मप्राप्ति, उद्धार, कल्याण करना और दूसरोंकी सेवा करना है । इसीके लिए ही खास मानवजीवन मिला है । साधनसे विरुद्ध, परमात्मप्राप्तिके विरुद्ध कोई काम कदापि नहीं करेंगे, नहीं करेंगे ।
अपना उद्धार, और दूसरोंकी सेवा — यह मानवजीवनके सिवाय कही नहीं कर सकता । जैसे पैसा पैदा करनेवाला, पैसा पैदा हो ऐसा काम करते है और पैसा नष्ट हो जाय ऐसा काम नहीं करते है । हमारा परमात्मप्राप्तिका लक्ष्य है, उसके सिवाय दूसरा कुछ है ही नहीं ! — यह है उद्देश्यकी द्रढताका उपाय । एक ही लक्ष्य और लक्ष्यविरुद्ध काम नहीं करेंगे, उसपर जोर लगाओ । नामजप, सत्संग, कीर्तन आदि तो करते है पर लक्ष्यविरुद्ध काम नहीं ही करेंगे । विरूद्धकामका त्याग करना सुगम है । नामजप आदिमें तो परिश्रम भी पडता है । झूठ, कपट, धोखेबाजी, दगा, ठगाई नहीं करेंगे । अन्न, वस्त्र, जल आदि नहीं मिलेगा तो भी पाप नहीं करना है, नहीं करना है । रोटी खाकर भी तो मरते है, तो धर्मका पालन करते हुआ क्यों न मरें !
अपनी जानकारीमें जिसको खराब जानते है, उसको नहीं करना है — इतनीसी तो बात है ! चाहे जो आफत आ जाय । यह सच्चा, पक्का उद्देश्य है । उसके बाद उन्नति, प्रगति स्वाभाविक ही होगी । असत् का त्याग करनेसे सत् की प्राप्ति स्वतः होगी । सत् को उद्योग करके पैदा नहीं करना है । साधन विरुद्ध काम हमें असह्य हो जाय, इस पर एकदम पक्के रहो; चाहे सो हो जाय ! तो फिर ठीक हो जायेगा ! विहित करनेमें तो जोर भी आता है, निषिद्ध नहीं करनेमें क्या जोर आता है ??
आजका कानून ज्यादा कमानेवालोंके लिए आफत है । थोड़े कमानेवालोंके लिए वैसा नहीं है । अपने रोटी कमाओ और खाओ ! निर्वाह मात्र करना है । किसीकी ताकत नहीं है कि आपसे कोई पाप करवा सके ! आप स्वयं स्वीकार करके फिर पाप करते हो । आप ही अपने विचारका नाश करते हो । अपनी बातका आप ही त्याग करते हो । अपने पतनमें आप ही हेतु हो, और कोई हो तो बताओ ? ‘ उद्धरेदात्मनात्मानं नान्तानमवसादयेत् । आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ।। ’(भ.गी.५/६) आप ही अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है । द्रढतासे विचार कर लिया तो कर ही लिया, कर ही लिया...!!! कोई शंका, बाधा हो तो बोलो ?
निषिद्ध आचरण नहीं करेंगे तो आपके भीतर एक दैवीशक्ति प्रगट होगी, ताकत प्रगट होगी, विलक्षणशक्ति प्रगट होगी । वह आपको बहुत सहारा देगी, आपका उद्धार कर देगी । लोक और परलोकका — दोनों काम सिद्ध कर देगी । आप अपने विचार, उद्देश्य पर दृढ रहो । कच्चाइ मत आने दो । यह एकदम पक्की, सच्ची, सिद्धांतकी बात है । कोई आपका पतन नहीं कर सकता । किसीकी ताकत नहीं है कि आपका पतन कर दें ! कर ही नहीं सकता !!
विचार पर पक्के रहो चाहे सो हो जाय । आफत आवें, निरादर हो जाय, या चाहे मौत भी आ जाय, कुछ भी हो जाय !! ब्रह्मास्त्र होता है, नारायणास्त्र होता है और एक पाशुपतास्त्र होता है । ब्रह्मास्त्रके सामने ब्रह्मास्त्र छोडने पर उसका उपसंहार, शमन हो जाता है । नारायणास्त्रके शरण हो जानेसे उसका शमन हो जाता है लेकिन पाशुपतास्त्र तो खतम ही कर देता है । अर्जुनके पास था, वह चलाने पर तो संहार ही कर देता है और बिना चलाये ही पड़ा-पड़ा, बिना चलाये ही विजय करा देता है । वैसे ही ‘ मर जायेंगे पाप नहीं करेंगे ‘ —यह पाशुपतास्त्र है, मरना पड़ेगा नहीं । पाशुपतास्त्र रखो अपने पास ! मर जायेंगे पर अन्याय, पाप, शास्त्रविरुद्ध, लोकमर्यादा विरुद्ध नहीं ही करेंगे ! चाहे मर ही क्यों न जाय !! कोई और पाप, अन्याय नहीं करा सकता । सर्वसमर्थ भगवान् तो पाप, अन्याय कराते नहीं और दूसरे किसीकी सामर्थ्य है नहीं । अतः पाशुपतास्त्र रखो अपने पास भी कि मर जायेंगे पर अन्याय, पाप, शास्त्रविरुद्ध नहीं करेंगे, मरना पड़ेगा नहीं ! और हे नाथ ! हे नाथ !! पुकारो.... फिर तो प्रतिकूल रहनेवाले भी अनुकूल हो जायेंगे, वैर रखनेवाले भी सहाय करेंगे ! ‘ तन कर, मन कर, वचन कर देत न् काहूँ दुःख: तुलसी पातक जरत है देखत उसका मुख । ‘ इतनी माहिमा है निषिद्धके त्यागकी ! और विहित अपने आप होगा । आप कमर कसके पक्के रहो, तो सब काम ठीक होगा । स्वाभाविक आपकी सहायता होगी, स्वतः ही ! कर के देख लो !!
नारायण.........नारायण........नारायण...........नारायण................नारायण
दि.१२/१०/१९९० सायं ४.४५ बजेके प्रवचनसे
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