।। श्रीहरिः ।।

दहेजप्रथासे हानि

सज्जनो मेरी बात ध्यान देकर सुनो, अपने मनमें भाव आया वह कहता हूँ । विवाह एक बड़ा सुंदर, मांगलिक कार्य है । ऐसे मांगलिक कामको; यह लोक-प्रशंसा और लोभ, इन बातोंने बहुत ही भ्रष्ट कर दिया है । वरपक्ष को तो लेनेका लोभ है और वधुपक्षवाले अपनी महिमा के लिए, रुपये ज्यादा लगा दे ऐसा भाव हो रहा है । यह दो से बड़ा अनर्थ हो रहा है । लड़कीयोंका ब्याह होना कठीन हो रहा है । बहुत ज्यादा पैसोवालेको तो परवाह नहीं है, वे वाह-वाहके लिए करोड़ों रुपये लगा देते है । यह नहीं सोचते कि समाजमें करोड़ों रुपये लगानेवाले कितने आदमी है ? आपके भाई-बंधू है; आपसे इज्जत, जाती, प्रतिष्ठामें कम नहीं है । पैसोंके कारण आपकी प्रतिष्ठा हो रही है, अधिक पैसे होनेसे आप बड़े हो रहे हो तो ध्यान दो; पैसोंसे आप अपनेको बड़े मानते हो तो आपके लिए महान नीची, हलकी बात है ।
आप मनुष्य हो, भगवान नर-नारायणके साथ रहनेवाले नर हो ! वे पैसेसे ऊँचा मानते है अपनेको ? वास्तवमें पैसोंके कारण आपकी फजीती हुई है । आप कहते हो कि पैसे तो हाथका मैल(मल) है ! तो आप हाथके मैलसे ऊँचे हो गए क्या ? ज्यादा पैसा हो गया, मैल ज्यादा हो गया तो राजी हो गए !! आपकी फजीती हो रही है फजीती !! धनके कारण आप बड़े हुए तो धन बड़ा हुआ कि आप बड़े हुए ? आपकी महान नीचता है, निंदा है ! आप पद् भ्रष्ट हो गए यदि आप अपनेको पैसोंके कारण ऊँचा मानते हो तो । और यह नहीं सोचते हो कि समाजकी क्या दशा हो रही है ? बिचारे मध्यम दर्जेके आदमी क्या करें ? जातिमें आपसे नीचे नहीं है, इज्जतमें आपसे नीचे नहीं है, केवल उनके पास पैसे कम है । आप २-३ करोड रुपये शादियोंमें खर्च कर देते हो, उनके पास उतने पैसे ही नहीं है ! आपको शर्म, लज्जा नहीं आती है ? इससे दूसरोंकी क्या दशा हो रही है ! आपके ही भाई, सगे-सम्बन्धी है; नीचे, छोटे नहीं है । पैसेसे आप मनमें बड़े हो गए पर वास्तवमें नीचे हो गए ! पैसा; हाथका मैल आपसे ऊँचा हो गया ! जिसके कारण आपकी इज्जत हुई वह पैसे बड़े हुए कि आप बड़े हुए ?
मै किसी व्यक्तिको नहीं कहता हूँ ! मेरेको दुःख होता है, इस कारणसे आज हत्या हो रही है लडकीयोंकी ! गर्भपात हो रहा है ! यह लड़कीयोंको मामूली समजते हो, यह मामूली नहीं है; यह मातृशक्ति है, माँ है माँ !! उनकी हत्याका बड़ा भारी पाप लगेगा । और इस पापमें बड़ा हाथ है धनी आदमीयोंका, जो ब्याहमें ज्यादा खर्च करते है । यह पाप उनको लगेगा । बेचारी लडकीयोंका सम्बन्ध नहीं हो रहा है, २५-२७ वर्षकी हो गई ! कन्या बैठी है, उनका सम्बन्ध नहीं हो रहा है । क्या करें बिचारे !! तो महान हत्या कर रहें है, गर्भपात कर रहें है ! तो यह पाप लगेगा उन धनीयोंको, जिस धनीयोंने शादी-ब्याहोंमें फिजूल खर्च किया है ! आपकी इज्जत धर्म पालनसे होती है, दूसरोंकी रक्षा करनेसे होती है ।
रामायणमें सीता-रामजीका विवाह प्रसंग देखो ! कितना उत्साह है दोनों पक्षोंमें ! पैसे, पद, विद्या आदिसे आपकी इज्जत नहीं है । आपकी इज्जत त्यागसे है । भारतवर्षमें पैसोंकी महिमा नहीं थी; त्यागकी महिमा थी । साधु हो चाहे गृहस्थ हो ,धनी हो चाहे या गरीब हो; ह्रदयमें जिसके त्याग है वह बड़े हुए है हमारे देशमें ! भगवानके संबंधसे बड़े हो आप, वही आपकी असली बड़ाई है ।
सबसे बढ़िया और सबसे घटिया चीज क्या है ? मैं निंदा नहीं कर रहा हूँ ! आप सच्ची बात ठन्डे ह्रदयसे विचार करें ! आप विचार कर लेना, शंका हो तो कर लेना , पर मैं कहता हूँ वह बात आपको जचनी कठीन है । सबसे नीचा पैसा है । पैसे जैसी निकृष्ठ चीज कोई है ही नहीं ! पैसे से सब कुछ होता है पर खुद पैसेसे कुछ होता है क्या ? वह भी शुभ खर्चमें किया जाय तो; वरना आतशबाजी, दिखावेमें खर्च किया जाय उसकी महिमा है ? वाह-वाह में, दिखावेमें पैसे पानीकी तरह खर्च करते हो, क्या इसमें आपकी इज्जत है ? यह फजीती है आपकी ! कलकत्तेमें मैंने सुना है; लड़कीयाँ बड़ी हो गई, कहीं शादी नहीं हुई । किवाड़ बंद करके लड़की और मा-बापने जहर खा लिया । यह हत्या हुई दहेजप्रथा के कारण । वह लिखा हुआ मिला था कि लड़कियाँ बड़ी हो गई, विवाह हुआ नहीं, लडकीयोंने जहर खा लिया फिर मा-बापने भी जहर खा लिया । ऐसी-ऐसी हत्याएँ होती है फिजूल खर्चेसे !
अच्छे काममें तो खर्च करते नहीं हो और फिजुलमें खर्चते हो । ‘पापीका धन परलय जाय ज्यों कीडी संचय तितर खाय’ । डाक्टर, वकीलोंमें जायेगा, कहीं शुभ काममें खर्च होता है क्या ? आप सादगीसे रहें और थोडा खर्च करें तो दुनियाका बड़ा उपकार हो जाय ! खर्च तो कम हो और वाह-वाह हो जाय और दुनियाको भी शान्ति मिलें ! जिनके पास धन कम है, वह भी ब्याह खुशीसे कर पाएंगे कि देखो ! धनी आदमीने भी सादगीसे ब्याह किया ! नहीं तो बिचारे धन खर्च न कर पानसे मन ही मन दुखी होंगे, उसका पाप लगेगा जो २-३ करोड रुपये शादियोंमें फिजूल खर्च कर देते है ।
बड़ा वह है जो दुसरोंको बड़ा करें ! रामायणमें चोपाई है — ‘समर्थकों नहीं दोष गोसाई, रवि पावक सुरसरीकी नाई’ । समर्थ कौन है ? जो दुसरोंको समर्थ बनावें । तिरस्कार करें तो वह आपका सामर्थ्य नहीं है, अपितु राक्षसपना है । सूर्य भगवान् क्या करते है ? महान मैला पड़ा है उससे, टट्टी-पेशाबसे जल खींचकर अमृतवर्षा, बारिश बरसाते है, यह समर्थ है । जो दुसरोंको असमर्थ करे वह तो राक्षस, असुर है । पावक-अग्नि सबको शुद्ध कर देता है, सुरसरी-गंगाजीमें जो पानी मीलता है उसको भी गंगाजल बना देता है, वह समर्थ होता है । दुसरोंको खा जाय, नीचा दिखावें, वो क्या समर्थ है ? वह तो शियार, गिद्ध है । गीताजीके १६ वें अध्यायमें आसुरी संपत्तिके वर्णनमें भगवानने कहा है कि ‘क्षयाय प्रभवन्ति’, ‘जगत् अहिताय’; दुसरोंका नाश करनेके लिए, जगतका अहित करनेके लिए पैदा होते है, वह असुर होते है । भगवान कहते है, मैं नहीं कहता हूँ ! अतः सामर्थ्यका दुरूपयोग न करें दुसरोंको नीचा दिखाने के लिए !!

(शेष आगेके ब्लोग्में)
दि.२३/१२/१९९६ प्रातः ८.३० बजेके प्रवचनसे
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