।। श्रीहरिः ।।

त्यागसे आपकी बड़ाई है

(पीछेके ब्लोग्से आगेका)

महाभारतमें एक कथा आती है कि पहले ज्यादा धन-पैसा राजओंके पाससे नहीं मिला अपितु राक्षसोंके पाससे मिला । ऐसी ही दुसरी कथा चक्ववेण राजाकी है । राजा-रानी दोनों खेतीसे जितना उपार्जन हो जाय, उसीसे अपना निर्वाह करते थे । बहनों-माताओंका ह्रदय बहुत ही सरल होता है, सत्संगका असर भी बहुत जल्दी लग जाता है और कुसंगका भी । भगवानने उनको कोमल ह्रदय दिया है जिससे हमारा पालन हो जाय, संतानका पालन करनेके लिए कोमल ह्रदय दिया है । एकबार रानी कोई प्रसंग पर धनी आदमीयोंकी स्त्रिओंसे मिली, उनको देखकर रानीके मनमें हुआ कि मुझे भी अच्छे कपडे, गहने बनवाओ ! पहले राजालोग प्रजाका कर-टेक्स रूपसे आया हुआ धन प्रजाके सुखके लिए ही खर्च करते थे । अपने सुखके लिए खर्च नहीं करते थे । तो चक्ववेणने रावणके पास कर रूपमें सोना लेने अपना आदमी भेजा । तो रावणने हँसकर उसका तिरस्कार किया । मंदोदरी सती थी, वह धर्मात्मा चक्ववेण राजाके प्रभावको जानती थी; अपने पतिव्रताके तेजसे ! रावणको समजाया कि सोना दे दो । रावण माना नहीं तो सुबहमें कबूतरोंको दाना डालकर रावणकी दुहाई दी कि दाना मत चुगो ! तो कोई असर नहीं हुआ; फिर चक्ववेणराजाकी दुहाई दी और एक बहरा कबूतर सुन नहीं पाया और दाना चुगा तो उसकी गर्दन कट गई ! इस तरह से रावणको समजाकर कहा कि चक्ववेण धर्मात्मा, त्यागी राजा है, उसको राजी-खुशीसे कर दे दो ! फिर भी माना नहीं । समुद्र किनारे चक्ववेणके आदमीने लंका जैसा दरवाजे, मकान आदिका नकशा बनाकर रावणको कहा, देखो ठीक है ना ! कर देते हो कि नहीं ? चक्ववेणकी दुहाई देकर उस नकशे पर हाथ घुमाया कि यहाँ लंकामें धडा-धड मकान आदि गिर पड़े ! तो रावणने चुपचाप कर दे दिया ! फिर वह सोना रानीको दिया कि जैसे चाहो वैसे गहने बनवा लो ! जब रानीको पूरी घटनाका पता चला तो अपने पतिके त्यागका प्रभाव देखकर उसने कहा कि मुझे अब गहना नहीं बनवाने है फिर सोना रावणको वापस लौटा दिया चक्ववेण राजाने !
यह प्रभाव त्यागमें है ! शूरवीर, त्यागी वह है कि लाखों, करोडों रुपये आ जाय चाहे चले जाय तो भी मनमें कुछ असर न पड़े ! धनका गुलाम न हो, वह सच्चा त्यागी है । हमारा देश त्यागसे, पतिव्रतसे, सतीव्रतसे, शूरवीरसे, तपस्वीसे, भजन-स्मरण करनेवालोंसे ऊँचा है ! आप चेतन हो, धन जड है । आपने धनको कमाया है, धनने आपको पैदा नहीं किया है । धनसे ऊँचा अन्न, जल आदि पदार्थ है, जिससे हमारा निर्वाह होता है । पदार्थसे ऊँचा मनुष्य है, उससे ऊँचा विवेक है । और विवेकसे ऊँचा सत्, परमात्मा है ! यदि आपको सोना, चांदी, रत्नोंका चबूतरा बनाकर बैठा दे और अन्न, जल आदि न दिया जाय तो आप कितने दिन जिओगे ? और एक आदमीको अन्न, जल, वस्त्र, मकान दे दो और एक कोड़ी, पैसा भी मत दिखाओ तो भी वह जी जायेगा ! खुद पैसा कुछ काम नहीं आता, उससे चीज लाओ वह काम आएगी !
आप क्षमा करेंगे, एक बात याद आयी कह देता हूँ । जब मैं पहले-पहले कलकत्ता आया तो एक भाई ने मुझे कहा कि और साधुओंकी तरह आप हमसे कुछ पैसे तो माँगेंगे नहीं ? और दूसरेने कहा, स्वामीजी आप हमसे पैसा माँगना नहीं !! यह मेरी बीती हुई बात है ! लोग डरते है कि कुछ माँग लेंगे हमसे ! लोगोंको वहम है कि धन बहुत बड़ा है ! एक और बात याद आयी जब हम मिर्ज़ापुर गए थे । क्षमा करना प्रभु ! राम..राम...राम...!! याद आ गई तो कह देता हूँ, नहींतो कहनेकी बात नहीं थी ! महाराजने कहा कि यहाँसे प्रयाग पासमे है तो हमारे मनमें भी दर्शन करनेकी आयी । महाराज मैं कभी नहीं कहता हूँ कि मोटर लाओ, मुझे अमुक जगह जाना है ! मैं मेरे लिए मोटर-सवारी माँगता नहीं हूँ । तो वहाँसे प्रयागराज पासमें था, पर वहाँ नहीं गये । नजदीक तो है पर किसीको मोटरके लिए कहना तो पड़ेगा न ! देखिये, आप टट्टी-पेशाब करते हो वह भी काम आता है, रेता, कंकड, फूस भी काम आ जाता है पर पैसा खुद क्या काम आता है ? बताइये कोई माईका लाल हो तो !! पैसेके द्वारा चीज खरीदते हो तो चीज काम आती है पर खुद पैसा कुछ काम आता है ? अतः भाई ! पैसे काममें लो, दुसरोंका हित करो ! केवल गिनती न बढाओ संग्रह करके; वरना चोर, डाकू, राजकी नजर होंगी । ‘को वा दरिद्रः ? विशाल तृष्णाः’ ! आज ब्याहमें करोडों रुपये खर्च होते है, लडके नीलाम होते है । अतः कृपानाथ ! कृपा करो !! जैसे दान देनेका उपकार होता है, वैसा उपकार होगा कम खर्च करोगे तो ! ब्याह, शादी, निर्वाहमें कम खर्च करो । अंडा, माँस, मछली जैसा अशुद्ध न खाओ । आज बनिया, ब्राह्मण भी खाने लगे ै, वरना मारवाड, काठियावाड़, गुजरातमें इसका प्रचार नहीं था, लेकिन मारवाड़ी व्यापारीयोंने फ़ौजको भी माँस सप्लाईका काम किया है !! व्यापारके नामसे आज कुछ भी काम करा लो और कुछ भी खिला दो ! कितना पतन हो गया है ! आप अपने व्यवहारमें सादगी लाओ । मेरे द्वारा कुछ अनुचित कहा गया हो तो क्षमा करें, पर मेरेको दुःख हुआ तो कहा है !

—दि॰२३/१२/१९९६ प्रातः ८.३० बजेके प्रवचनसे