।। श्रीहरिः ।।

सच्चा गुरु कौन ?-१

श्रोता - मेरी उम्र बहुत हो गई है, मैंने अभी तक गुरु बनाया नहीं और सुननेमें आता है कि गुरु बिना कल्याण होता नही; मेरा मन मानता नहीं कि किसको गुरु बनाऊँ ? ऐसी हालतमें मेरेको क्या करना चाहए ?
स्वामीजी - मेरे विचारसे तो यही बात है कि गुरु वह होता है जो शिष्यका उद्धार कर दें । 'गुरवो बहवःलोके शिष्य वित्तापहारकाः । दुर्लभः स गुरुर्लोके शिष्यः हृत्तापहारकाः ।। मैं सबसे माफ़ी माँग लेता हूँ, क्षमा करेंगे, कोई बुरा न माने ! शास्त्रोमें ऐसी बात मैंने पढ़ी है, सुनी है, समझी है उसके अनुसार; किसी पक्षपातको लेकर के नहीं । सरलतासे अपने विचारकी बात कहता हूँ । मेरा कोई आग्राह नहीं है ।
शास्त्रोमें आया है कि संसारमें ऐसे गुरु बहुत मिलेंगे जो शिष्यके 'वित्तापः' धनको लेनेवाले होंगे परन्तु ऐसा गुरु दुर्लभ है जो शिष्यके तापको बुझा दें । गुरुकी महिमा 'हृत्तापहारकाः' की है । जैसे हमारे भाई-बहन, माता-पिता ऐसे कई संबंध है, ऐसे ही एक गुरुका संबंध भी जोड़ लिया तो उससे कोई कल्याण हो जाय, विलक्षणता आ जाय ऐसा देखनेमें नहीं आता है । अतः जबतक अपनी शंकओंका समाधान न हो, हृदयमें प्रकाश न हो, तत्वज्ञान न हो, भगवद् प्रेम न हो तबतक क्या गुरु हुए ? गुरु वही है जिसके शरण जाते ही शिष्य बदल जाय, भाव बदल जाय । हम देखते है कि जिन्होंने गुरु बनाये उनके व्यवहार भी वैसे ही है, राग-द्वेष आदि भी वैसा ही है, जैसे जिन्होंने गुरु नहीं बनाये है । तो एक नया संबंध जोड़ लिया, मनमें संतोष कर लिया कि गुरु बना लिया; उससे अधिक कोई फर्क नहीं पड़ा !
वास्तवमें तो गुरु वह होता है 'को वा गुरुयोः ? हितोपदेष्टाः' गुरु वह होता है जो शिष्यका हितका उपदेश दें । 'शिष्यस्तु कोः ? गुरुभक्त एव' और शिष्य कौन है ? जो गुरुका भक्त है । गुरुकी आज्ञा अनुसार चलता है । 'गुरु शिष्य अंध बधिर कर लेखा, एक नहीं सुने एक नहीं देखा' ! आज गुरु और शिष्यका ढंग कैसा है ? अन्ध और बधिर, मानो गुरुजीको तो सुझता नहीं और चेला सुनता नहीं । बिना देखे, अनुभव किये; वैसे ही शिष्य बनाया जाय; और बन गए तो गुरुकी बात सुनते ही नहीं ! गुरुकी आज्ञापालन करते ही नहीं !! अच्छे महापुरुष होते है, वह जल्दीसे शिष्य बनाते नहीं है; और जिसको बना लेते है, उनका उद्धार करना पडता है । क्योंकि किसीको गुरु बनाता उससे तो वंचित कर दिया, हमारेको गुरु बना दिया अब और जगह तो जा सकता नहीं और हम उसका कल्याण कर सकते नहीं !! तो इसे दोष बताया है शास्त्रोंने । जैसे कोई दुकानदारके पास कपड़ा खरीदने जाय, पैसे तो दे दिए और कपड़ा देता ही नहीं ! ऐसे ही शिष्य तो बन गए अब उद्धार कर दो, नहीं तो शिष्य क्यों बनाया ? यह बात बढ़िया नहीं है ।
एक सम्प्रदायकी रीतिसे चलता है तो ठीक है, उस सम्प्रदायके शिष्य बन जाओ परम्परासे ! अपने माता-पिता होते आये है; उनके शिष्य बन गए । एक गुरु ब्राह्मण होता है, ब्राह्मण कहते है यह हमारी वृत्ति(आजीविका का साधन) है, शिष्य हो; तो यह तो जैसे भाई-बंधुका संबंध होता है ऐसे ही यह गुरु-शिष्यका संबंध है । तो वैसे कोई कल्याण हो जाय, उद्धार हो जाय यह बात तो है नहीं ! इस वास्ते जो उद्धार कर सके वही चेला बनावें । और उद्धार न कर सकें वह चेला न बनावें । इस वास्ते मारवाडीमें एक कहावत आती है 'पानी पीजे छाणीयो, गुरु कीजे जाणीयो' । जिसको जानते हो कि यह वास्तवमें तत्वज्ञ है, जीवन्मुक्त है, उद्धार कर सकते है -ऐसा जानो; मतलब आपका विश्वास हो उनको गुरु बनाओ । गुरु बिना ज्ञान नहीं होता - यह बात सच्ची है, परन्तु ऐसे गुरु और चेलेकी बात और ढंगकी है । जैसे मैं आपको एक बात पूछता हूँ कि पहले बेटा पैदा होता ही कि बाप पहले पैदा होता है ? बापका शरीर तो पहले पैदा होता है, पर बाप नाम नहीं होता है उसका बिना बेटेके ! वरना मनुष्य है, बाप नाम नहीं है उसका । तो पहले बेटा पैदा होता है, बेटेसे बाप पैदा होता है । ऐसे ही चेलेका उद्धार करनेके बाद गुरु होता है । बिना उद्धार किये कैसे गुरु हो जायगा ? इस वास्ते संतवाणीमें आता है कि 'बेटी पूछे बापसे अणजायो वर लाय, अणजायो वर नहीं मिले तो तेरे मेरे ब्याह' । 'ऐसे वर को क्या वरुँ जो जनमत मर जाय, वर वरिये गोपालजी तो अमर चुडलो हो जाय' । कभी विधवा होना ही न पड़े ऐसा अणजाया वर लाओ । तो ऐसा गुरु लाओ कि अणजाया हो । अणजाया कैसे होगा ? संतवाणी, भागवत् आदिमें आता है कि गुरुमें मनुष्य बुद्धि और मनुष्यमें गुरु बुद्धि अपराध है । मनुष्यको गुरु मानना और गुरुको मनुष्य मानना अपराध है । 'गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु ...गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः' । गुरु तत्व होता है, गुरु मनुष्य नहीं होता है । परमात्मतत्त्व है वही गुरु है । 'कृष्णं वंदे जगदगुरुम्' । तो आप गुरु बनाओ क्यों ? कृष्ण भगवानको गुरु मान लो । जगद् गुरु कृष्ण भगवान है, तो क्या आप जगत् के बहार हो ? हमारे गुरु कौन है ? कृष्ण भगवान् गुरु है !! सीधी बात है । आप संकोच क्यों करे ? कृष्ण भगवानको गुरु मानें । गुरुका उपदेश बढ़िया है, गीताजी जैसा उपदेश, हरेक जगह मिलेगा नहीं । मैंने देखा है, सुना है, समझा है; ऐसा गुरु कोई मिलता नहीं !

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