।। श्रीहरिः ।।


क्रोधनाशका उपाय


प्रश्न आया है कि दोष छोड़ सकते नहीं और सब परमात्मा है यह स्वीकार नहीं कर सकते है । हम करना चाहते है पर होता नहीं है । हमारेमें दोष दिखते है, फिर आगे दोष होते रहते है, क्या करें ?
मैं बात बतता हूँ, इस बातको पकड़ लें और उसमें स्थिर होकर अनुभव करें, देखें । सबके कामकी बात है, ध्यान देकर आप सुनें । दोष क्या है ? गीतजीमें आया है कि ‘त्रिविधं नरकस्य द्वारं नाशनमात्मनः । कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥’(१६/२१) अपना पतन करनेवाले यह तीन प्रकारके दोष है । यह तीनों नर्कोंके दरवाजे है । इस वास्ते इनका त्याग करना चाहिए । तो हम विचार करते है कि हमारेको क्रोध आता है, उसके त्याग पर विचार करते है । क्रोध पर विजय कैसे हो ? हम नहीं चाहते तो भी आ जाता है , अचानक आ जाता है । बड़ा तंग करता है । इसका त्याग कैसे करें ? हम सह सकते नहीं है ।

क्रोध कब आता है ? जब कोई हमारा अपमान, तिरस्कार कर देता है, हमारे काममें कोई लाभ होता हो उसमें हानि पहुँचाता है । कोई दुखः देता है, हमारे विरुद्ध काम करता है तो क्रोध आ जाता है । उस क्रोधका हम त्याग करना चाहते है ।

तो सबसे मेरी प्रार्थना है कि आप पहले विचार करो कि क्रोधका हमें त्याग करना है । इस एक दोष पर विचार करते है । एक दोषका सर्वथा त्याग करने पर दूसरे दोष भी कम हो जाते है, मिट जाते है । इस वास्ते क्रोध पर विचार करते है । क्रोध हमारे अपनेमें भी दिखता है और दुसरोमें भी दिखता है, और लोग भी क्रोध करते है । अब यह क्रोध कैसे छूटे ? तो एक बात मैं बताता हूँ, इस पर आप द्रढतासे निश्चय कर लें । हमारेमें क्रोध नहीं है और दुसरोमें भी क्रोध नहीं है —यह द्रढ़तासे पकड़ लें । अभी आपसे पूछें तो कोई भाई-बहन कह सकता है कि अभी अपनेमें क्रोध है ? तो क्रोध हमारेमें है नहीं, आता है । यह बात सच्ची है न ? इसमें कोई संदेह हो तो पूछो भाई ! बहुत बड़े भारी लाभकी बात है । जो यह मान लेता है कि हमारेमें क्रोध है, उसीको क्रोध आता है । तो क्यों मान लेते है ? तो मेरेको कई बार क्रोध आया है । अतः भूतकालके क्रोधको याद करके अपनेमें क्रोधको जमा कर लेते है । यह भूल होती है । वर्षोंसे मैं देखता हूँ, मेरेमें क्रोध है । मेरेमें क्रोध है —यह भावना ही आपको क्रोधका नाश करने नहीं देती ।
आप क्रोध तो वख्त-वख्त पर करते है, बिना क्रोधके बहुत रहते हो । आप ज्यादा समय क्रोधी रहते हो कि बिना क्रोध रहते हो ?तो मैं मानता हूँ कि आप सभी ऐसा ही मानेंगे कि ज्यादा समयमें क्रोधसे रहित होते है । थोड़े समयमें ही क्रोधके सहित होते है । अपनी उम्र भरमें भी कभी आठ प्रहार क्रोध रहा है ? बिना क्रोध हम ज्यादा रहते है —यह सबका अनुभव है । तो हमारेमें क्रोध नहीं है । क्रोध आता है और जाता है । हमारेमें क्रोध है —यह क्रोधको निमंत्रण देना है । यह क्रोधकी खास जड है । खुब ख्याल करें आप । तो क्रोध मेरेमें नहीं है —यह द्रढतासे धारण कर लें ।

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