।। श्रीहरिः ।।

समान वर्तावसे हानि


(गत ब्लोगसे आगेका)

खास सार बात है यह, करके देख लो आप ! राग-द्वेष मिटा दो फिर कोई बंधन हो तो हमें कहना । शरणानंदजीने कहा कि सबसे राग-द्वेष छोडकर यहाँ आकार बैठ जाओ । मुक्ति न हो तो फांसी लगादो हमको ! राग-द्वेष ही तो बंधन है । और क्या बंधन है ?


अब वर्णाश्रम तो मिटाओ और टोली बनाओ । यह कम्युनिस्ट है, यह सोश्यालिस्ट है । यह हिंदू परिषद है, यह मुस्लिम लीग है । नयी-नयी रचना करते है और जो बिलकुल ठीक है वर्णाश्रम, उसको तो मिटाओ और नयी-नयी पार्टीयों बनाओ । मैंने तो एक बार ऐसा व्याख्यान दिया कि पहले ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र चार वर्ण थे । तो चार वर्णमें राग-द्वेष होता है और अब पार्टीयों कितनी बनी है ।ब्राह्मणोंमें और चमारोंमें कभी लड़ाई हुई नहीं और पार्टीयोमें लड़ाई बिना रहे नहीं ।एक जगह कौरव-पाण्डवमें लड़ाई है तो राजपूत-राजपूत ही लड़ते थे । अब सभी लड़ते है । बोले कि एकता करेंगे तो ऐसा जोर लगाया कि एक-एक तार हो गए; मतलब सभी अलग-अलग हो गए । माँ औरको वोट दे, बाप औरको वोट दे और बेटा औरको वोट दे । बताओ सच्ची है कि झूठी है बात ? विपरीत आचरण करते है ।

‘करत कुसंग चाहत कुशल यही बडो अफ़सोस है ।
महिमा घटी समुद्रकी रावण बस्यो पड़ोस ॥’


रावणके पड़ोसमें रहनेसे समुद्र बंधा गया । स्वयं तो करते नहीं और कही हुई सुनते नहीं । सुनें तो समझे नहीं और समझें तो मानें नहीं । अब क्या करें ? उपाय बताओ आप । नयी-नयी आफत पैदा करते है ।गर्भ गिराओ, नसबन्धी करो । क्यों आफत करो, आपको भगवानसे बुद्धि ज्यादा है ? जो अरबों वर्षोंसे तो करते है ।

भागलपुरकी एक लडकी ऋषिकेशमें मिली । जवान लडकी बोली कि मेरेको कई लोग मिले कि तुम विधवा हो गई है, ब्याह कर लें । लड़कीने कहा कि यदि विधवा विवाह बढ़िया है तो आपकी माँ विधवा है उसीको परणा दें । बढ़िया बात है तो पहले अपनी माँ से शुरू कर और बुरा है तो मुझे नरकोमें क्यों डालता है । मुझे अच्छा लगा कि लड़कीने बढ़िया बात कही ! एक कहे कि बकरेको चढाते है (बलि) तो कल्याण हो जाता है । तो बकरियोंको स्वर्ग भेजता है तो अपने बापको भेजो । नियत तो खराब है और बातें अच्छी-अच्छी करते है ।
नारायण.........नारायण............नारायण...............नारायण


—दि.२७/०१/१९९२, प्रातः ५ बजे प्रार्थनाकालीन प्रवचनसे

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