।। श्रीहरिः ।।
भगवान्
आज ही मिल सकते हैं-२

(गत् ब्लॉगसे आगेका)
गोरखपुरकी एक घटना है । संवत् २००० से पहलेकी बात है । मैं गोरखपुरमें व्याख्यान देता था । वहाँ सेवारामजी नामके एक सज्जन थे, जो बैंकमें काम करते थे । एक दिन मैंने व्यख्यानमें कह दिया कि अगर आपका दृढ़ विचार हो जाय कि भगवान् आज मिलेंगे तो वे आज ही मिल जायँगे ! उन सज्जनको यह बात लग गयी । उन्होंने विचार कर लिया कि हमें तो आज ही भगवान् से मिलना है । वे पुष्पमाला, चन्दन आदि ले आये कि भगवान् आयेंगे तो उनको माला पहनाऊँगा, चन्दन चढाऊँगा ! वे कमरा बन्द करके भगवान् के आनेकी प्रतीक्षामें बैठ गये । समयपर भगवान् के आनेकी सम्भावना भी हो गयी और सुगंध भी आने लगी, पर भगवान् प्रकट नहीं हुए । दूसरे दिन उन्होंने मेरेसे कहा कि आज आप मेरे घरसे भिक्षा लें । मैं कई घरोंसे भिक्षा लेकर पाता था । उस दिन उनके घर गया तो उन्होंने मेरेसे पूछा कि भगवान् मिलनेवाले थे, सुगंध भी आ गयी थी, फिर बाधा क्या लगी कि वे मिले नहीं ? मैंने कहा कि भाई ! मेरेको इसका क्या पता ? परन्तु मैं तुम्हारेसे पूछता हूँ कि क्या तुम्हारे मनमें यह बात आती थी कि इतनी जल्दी भगवान् कैसे मिलेंगे ? वे बोले कि यह बात तो आती थी ! मैंने कहा कि इसी बातने अटकाया ! अगर मनमें यह बात होती कि भगवान् मेरेको अवश्य मिलेंगे, उनको मिलना ही पड़ेगा तो वे जरुर मिलते । भगवान् ऐसे कैसे जल्दी मिलेंगे—ऐसा भाव करके तुमने ही बाधा लगायी है ।

अगर आप विचार कर लें कि भगवान् आज मिलेंगे तो वे आज ही मिल जायँगे ! परन्तु मनमें यह छाया नहीं आनी चाहिये कि इतनी जल्दी कैसे मिलेंगे ? भगवान् आपके कर्मोंसे अटकते नहीं । अगर आपके दुष्कर्मसे, पापकर्मसे भगवान् अटक जायँ तो वे मिलकर भी क्या निहाल करेंगे ? परन्तु भगवान् किसी कर्मसे अटकते नहीं । ऐसी कोई शक्ति है ही नहीं, जो भगवान् को मिलनेसे रोक दे । वे न तो पापकर्मोंसे अटकते हैं, न पुण्यकर्मोंसे अटकते हैं । वे सबके लिये सुलभ हैं । अगर भगवान् हमारे पापोंसे अटक जायँ तो हमारे पाप भगवान् से प्रबल हुए ! अगर पाप प्रबल (बलवान्) हैं तो भगवान् मिलकर भी क्या निहाल करेंगे ? जो पापोंसे अटक जाय, उसके मिलनेसे क्या लाभ ? परन्तु भगवान् इतने निर्बल नहीं हैं, जो पापोंसे अटक जायँ । उनके समान बलवान् कोई है नहीं, हुआ नहीं, होगा नहीं, हो सकता ही नहीं । आपकी जोरदार इच्छा हो जाय तो आप कैसे ही हों, भगवान् तो मिलेंगे, मिलेंगे, मिलेंगे ! उनको मिलाना पड़ेगा, इसमें सन्देह नहीं है । परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही तो मानवजन्म मिला है, नहीं तो पशुमें और मनुष्यमें क्या फर्क हुआ ?
खादते मोदते नित्यं शुनकः शूकरः खरः ।
तेषामेषां को विशेषो वृत्तिर्येषां तु तादृशी ॥
सूकर कूकर ऊँट खर, बड़ पशुअन में चार ।
तुलसी हरि की भगति बिनु, ऐसे ही नर नार ॥

देवता भोगयोनि है । वे भी चाहते हैं कि भगवान् हमारेको मिलें—‘देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्क्षिणः’ (गीता ११/५२) । वे भगवान् को
चाहते तो हैं, पर भोगोंकी इच्छाको नहीं छोडते । यही दशा मनुष्योंकी है । अगर आप ह्रदयसे भगवान् को चाहो तो उनको मिलना ही पड़ेगा, इसमें सन्देह नहीं है । पर आप ही बाधा लगा दो कि भगवान् नहीं मिलेंगे, तो फिर वे नहीं मिलेंगे ! गीतामें साफ़ लिखा है—
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्र्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥
(९/३०-३१)
‘अगर कोई दुराचारी-से-दुराचारी भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन कर्ता है तो उसको साधु ही मानना चाहिये । कारण कि उसने निश्चय बहुत अच्छी तरह कर लिया है ।’
‘वह तत्काल (उसी क्षण) धर्मात्मा हो जाता है और निरन्तर रहनेवाली शान्तिको प्राप्त हो जाता है । हे कुन्तीनन्दन ! मेरे भक्तका पतन नहीं होता—ऐसी तुम प्रतिज्ञा करो ।’

तात्पर्य है कि दुराचारी-से दुराचारी मनुष्य भी यदि ‘अनन्यभाक्’ हो जाय अर्थात् भगवान् के सिवाय कोई चाहना न रखे तो उसको भी साधु मान लेना चाहिये; क्योंकि उसने निश्चय पक्का कर लिया है कि भगवान् जरुर मिलेंगे ।

आप केवल भगवान् की ही इच्छा करो, और कोई इच्छा मत करो । न जीनेकी इच्छा करो, न मरनेकी इच्छा करो । न मानकी इच्छा करो, न बड़ाईकी इच्छा करो । न भोगोंकी इच्छा करो, न रुपयोंकी इच्छा करो । केवल एक भगवान् की इच्छा करो तो वे मिल जायँगे । कम-से-कम मेरी बातकी परीक्षा तो करके देखो ! भगवान् आपको मिलते नहीं; क्योंकि आप उनको चाहते नहीं । आपके भीतर रुपयोंकी चाहना हो तो भगवान् बीचमें कूदकर क्यों पड़ेंगे ? संसारमें सबसे रद्दी वस्तु रूपया है । रुपयोंसे रद्दी चीज दूसरी कोई है ही नहीं । ऐसी रद्दी चीजमें आपका मन अटका हुआ हो तो भगवान् कैसे मिलेंगे ? रुपये देकर आप भोजन, वस्त्र, सवारी आदि खरीद सकते हो, पर रूपया खुद न तो खानेके काम आता है, न पहननेके काम आता है, न सवारीके काम आता है । तात्पर्य है कि रुपये काम नहीं आते, प्रत्युत उनका खर्च काम आता है ।

परमात्मा इच्छामात्रसे मिलते हैं । उनको रोकनेकी ताकत किसीमें भी नहीं है । छोटा बालक रोता है तो माँ आ ही जाती है । बालक घरका कुछ काम नहीं करता, उल्टे काम करनेमें आपको बाधा लगता है, पर जब वह रोने लगता है, तब सब घरवाले उसके पक्षमें हो जाते हैं । सास-ससुर, देवर-जेठ सभी कहते हैं कि बहू ! बालक रो रहा है, उसको उठा ले । माँको सब काम छोडकर बालकको उठाना पडता है । बालकका एकमात्र बल रोना ही है—‘बालानां रोदनं बलम्’ । रोनेमें बड़ी ताकत है । आप सच्चे ह्रदयसे व्याकुल होकर भगवान् के लिये रोने लग जाओ तो जितने भगवान् के भक्त हुए हैं, सन्त-महात्मा हुए हैं, वे सब-के-सब आपके पक्षमें हो जायँगे और भगवान् को उलाहना देंगे कि आप मिलते क्यों नहीं ? वे ही भगवान् के सास-ससुर आदि हैं !
(शेष आगेके ब्लॉगमें )
—‘मानवमात्रके कल्याणके लिये’ पुस्तकसे