।। श्रीहरिः ।।
भगवान्
आज ही मिल सकते है-३

(गत् ब्लॉगसे आगेका)

वास्तवमें भगवान् मिले हुए ही हैं । आपकी सांसारिक इच्छा ही उनको रोक रही है । आप रुपयोंकी इच्छा करते हो, भोगोंकी इच्छा करते हो तो भगवान् उनको जबर्दस्ती नहीं छुडाते । अगर आप सांसारिक इच्छाएँ छोड़कर केवल भगवान् को ही चाहो तो आपको कौन रोक सकता है ? आपको बाधा देनेकी किसीको ताकत नहीं है । अगर आप भगवान् के लिये व्याकुल हो जाओ तो भगवान् भी व्याकुल हो जायँगे । आप संसारके लिये व्याकुल हो जाओ तो संसार व्याकुल नहीं होगा । आप संसारके लिये रोओ तो संसार राजी नहीं होगा । पर भगवान् के लिये रोओ तो वे भी रो पड़ेंगे ।

बालक सच्चा रोता है या झूठा, यह माँ ही समझती है । बालकके आँसू तो आये नहीं, केवल ऊँ-ऊँ करता है तो माँ समझ लेती है कि यह ठगाई करता है ! अगर बालक सच्चाईसे रो पड़े, उसको साँस ऊँचे चड जायँ तो माँ सब काम भूल जायगी और चट उसको उठा लेगी । अगर माँ उस बालकके पास न जाय तो उस माँको मर जाना चाहिये ! उसके जीनेका क्या लाभ ! ऐसे ही सच्चे ह्रदयसे चाहनेवालेको भगवान् न मिलें तो भगवान् को मर जाना चाहिये !

एक साधु थे । उनके पास एक आदमी आया और उसने पूछा कि भगवान् जल्दी कैसे मिलें ? साधुने कहा कि भगवान् उत्कट चाहना होनेसे मिलेंगे । उसने पूछा कि उत्कट चाहना कैसी होती है ? साधुने कहा कि भगवान् के बिना रहा न जाय । वह आदमी ठीक समझा नहीं और बार-बार पूछता रहा कि उत्कट चाहना कैसी होती है ? एक दिन साधुने उस आदमीसे कहा कि आज तुम मेरे साथ नदीमें स्नान करने चलो । दोनों नदीमें गये और स्नान करने लगे । उस आदमीने जैसे ही नदीमें डुबकी लगायी, साधुने उसका गला पकड़कर नीचे दबा दिया । वह आदमी थोड़ी देर नदीके भीतर छटपटाया, फिर साधुने उसको छोड़ दिया । पानीसे ऊपर आनेपर वह बोला कि तुम साधु होकर ऐसा काम करते हो ! मैं तो आज मर जाता ! साधुने पूछा कि बता, तेरेको क्या याद आया ? माँ याद आयी, बाप याद आया या स्त्री-पुत्र याद आये ? वह बोला कि महाराज, मेरे तो प्राण निकले जा रहे थे, याद किसकी आती ? साधु बोले कि तुम पूछते थे कि उत्कट अभिलाषा कैसी होती है, उसीका नमूना मैंने तेरेको बताया है । जब एक भगवान् के सिवाय कोई भी याद नहीं आयेगा और उनकी प्राप्तिके बिना रह नहीं सकोगे, तब भगवान् मिल जायँगे । भगवान् की ताकत नहीं है कि मिले बिना रह जायँ ।

भगवान् कर्मोंसे नहीं मिलते । कर्मोंसे मिलनेवाली चीज नाशवान् होती है । कर्मोंसे धन, मान, आदर, सत्कार मिलता है । परमात्मा अविनाशी हैं । वे कर्मोंका फल नहीं हैं, प्रत्युत आपकी चाहनाका फल है । परन्तु आपको परमात्माके मिलनेकी परवाह ही नहीं है, फिर वे कैसे मिलेंगे ? भगवान् मानो कहते हैं कि मेरे बिना तेरा काम चलता है तो मेरा भी तेरे बिना काम चलता है । मेरे बिना तेरा काम अटकता है तो मेरा काम भी तेरे बिना अटकता है । तु मेरे बिना नहीं रह सकता तो मैं भी तेरे बिना नहीं रह सकता ।

आपमें परमात्मप्राप्तिकी जोरदार इच्छा है ही नहीं । आप सत्संग करते हो तो लाभ जरुर होगा । जितना सत्संग करोगे, विचार करोगे, उतना लाभ होगा—इसमें सन्देह नहीं है । परन्तु परमात्माकी प्राप्ति जल्दी नहीं होगी । कई जन्म लग जायँगे, तब उनकी प्राप्ति होगी । अगर उनकी प्राप्तिकी जोरदार इच्छा हो जाय तो भगवान् को आना ही पड़ेगा । वे तो हरदम मिलनेके लिये तैयार हैं ! जो उनको चाहता है, उसको वे नहीं मिलेंगे तो फिर किसको मिलेंगे ? इसलिए ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ कहते हुए सच्चे ह्रदयसे उनको पुकारो ।

सच्चे ह्रदयसे प्रार्थना, जब भक्त सच्चा गाय है ।
तो भक्तवत्सल कान में, वह पहुँच झट ही जाय है ॥

भक्त सच्चे ह्रुदयसे प्रार्थना करता है तो भगवान् को आना ही पडता है । किसीकी ताकत नहीं जो भगवान् को रोक दे । जिसके भीतर एक भगवान् के सिवाय अन्य कोई इच्छा नहीं है, न जीनेकी इच्छा है, न मरनेकी इच्छा है, न मानकी इच्छा है, न सत्कारकी इच्छा है, न आदरकी इच्छा है, न रुपयोंकी इच्छा है, न कुटुम्बकी इच्छा है, उसको भगवान् नहीं मिलेंगे तो क्या मिलेगा ? आप पापी हैं या पुण्यात्मा हैं, पढ़े-लिखे हैं या अपढ़ हैं, इस बातको भगवान् नहीं देखते । वे तो केवल आपके हृदयका भाव देखते हैं—

रहति न प्रभु चित चूक किए की ।
करत सुरति सय बार हिए की ॥
(मानस,बाल।२९/३)

वे हृदयकी बातको याद रखते हैं, पहले किये पापोंको याद रखते ही नहीं ! भगवान् का अंतःकरण ऐसा है, जिसमें आपके पाप छपते ही नहीं ! केवल आपकी अनन्य लालसा छपती है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें )
—‘मानवमात्रके कल्याणके लिये’ पुस्तकसे