।। श्रीहरिः ।।

परमात्मा

तत्काल

कैसे मिले ?-२

(गत् ब्लॉगसे आगेका)
आपकी स्थिति परमात्मामें है । संसारमें आपकी स्थिति है ही नहीं । आपकी स्थिति तो अटल है और संसार आपके सामने बदलता है । संसारमें आपकी स्थिति है ही कहाँ ? बालकपन बदला, जवानी बदली, निरोग-अवस्था बदली, वृद्धावस्था बदली, रोग-अवस्था बदली, निरोग-अवस्था बदली, धनवत्ता बदली, निर्धनता बदली—ये सब बदलते रहे, पर आप वे-के-वे ही रहे । संसार आपके साथ कभी रह ही नहीं सकता और आप संसारके साथ कभी रह ही नहीं सकते । ब्रह्माजीकी भी ताकत नहीं है कि संसार आपके साथ और आप संसारके साथ रह जायँ । आपकी स्थिति सदा परमात्मामें रहती है । परमात्मा सदा आपके साथ रहते हैं और आप सदा परमात्माके साथ रहते हैं । अतः परमात्माकी प्राप्ति कठीन है ही नहीं । कठीन तो तब हो, जब परमात्माकी प्राप्तिके लिये कुछ करना पड़े । जब करना कुछ है ही नहीं, तब उसकी प्राप्ति कठीन कैसे ! कठिनता और सुगमताका सवाल ही नहीं है ।

श्रोता—बात तो यह ठीक जँचती है पर .....।

स्वामीजी—ठीक जँचती है तो मना कौन करता है ? आड़ तो आपने खुद ही लगा रखी है । वास्तवमें आपको परमात्मप्राप्तिकी परवाह ही नहीं है, चाहे प्राप्ति हो अथवा न हो !

संतदास संसार में , कई गुग्गु कई डोड ।
डूबन को साँसो नहीं, नहीं तिरन को कोड ॥

—गुग्गु (उल्लू-) को तो दिनमें नहीं दीखता और डोड-(एक प्रकारका बड़ा कौआ-) को रातमें नहीं दीखता । परन्तु संसारमें कई ऐसे लोग हैं, जिनको न दिनमें दीखता है और न रातमें दीखता है अर्थात् अपने उद्धारकी तरफ उनकी दृष्टि कभी जाती ही नहीं । उनमें न तो अपने डूबने-(पतन होने-) की चिन्ता है और न तैरने-(अपने उद्धार करने-) का उत्साह है ।

केवल यह लालसा हो जाय कि परमात्माकी प्राप्ति कैसे हो ? क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? किससे पूछूँ ? यह लालसा जोरदार लगी कि परमात्माकी प्राप्ति हुई ! क्योंकि यह लालसा लगते ही दूसरी लालसाएँ छूट जाती हैं । जबतक दूसरी सांसारिक लालसाएँ रहती हैं तबतक एक अनन्य लालसा नहीं होती । परमात्मा अनन्य हैं; क्योंकि उनके समान दूसरा कोई है ही नहीं, इसलिये उनकी प्राप्तिकी लालसा भी अनन्य होनी चाहिये ।

श्रोता—परमात्माकी लालसा बनानी पड़ती है कि स्वतःसिद्ध है ?

स्वामीजी—परमात्माकी लालसा स्वतःसिद्ध है, दूसरी लालसाएँ आपने बनायी हैं । अतः उन लालासओंको छोड़ना है । अभी आप जिन लालासओंको जानते हो, आजसे पचास वर्ष पहले उनको जानते थे क्या ? जानते ही नहीं थे । इसलिये वे लालसाएँ बनावटी हैं । एक क्षण भी कोई लालसा टिकती नहीं, प्रत्युत बदलती रहती है, मिटती रहती है और आप नयी-नयी लालसा पकडते रहते हो ।

श्रोता—परमात्मप्राप्तिकी अनन्य लालसाके बिना भी परमात्मप्राप्ति हो सकती है क्या ?

स्वामीजी—परमात्मप्राप्तिकी अनन्य लालसाके बिना, दूसरी लालसा रहते हुए भी उद्योग किया जा सकता है, भजन-स्मरण किया जा सकता है । परन्तु यह लम्बा रास्ता है, इससे तत्काल परमात्मप्राप्ति नहीं होगी । एक-दो जन्म, दस जन्म, पता नहीं कितने जन्ममें हो जाय तो हो जाय ! दूसरी लालसा रहनेसे ही तो हम अटके पड़े हैं, नहीं तो अटकते क्या ? जो सत्संगमें लगे हुए हैं, उनमें कुछ-न-कुछ पारमार्थिक लालसा है ही; परन्तु अनन्य लालसा न होनेसे ही परमात्मप्राप्तिमें देरी हो रही है ।

वास्तवमें देखा जाय तो पारमार्थिक लालासके बिना कोई प्राणी है ही नहीं । परन्तु इस बातका पता पशु-पक्षियोंको नहीं है । जो मनुष्य पशु-पक्षियोंकी तरह ही जीवन बिता रहे हैं, उनको भी इस बातका पता नहीं है । सभी उस तत्त्वको चाहते हैं । जैसे, कोई भी प्राणी मरना चाहता है क्या ? सभी प्राणी निरन्तर रहना चाहते है—यह ‘सत्’ की चाहना है ! कोई अज्ञानी रहना चाहता है क्या ? सभी जानना चाहते हैं—यह ‘चित्’ की चाहना है । कोई दुःखी रहना चाहता है क्या ? सभी सुखी रहना चाहते हैं—यह ‘आनन्द’ की चाहना है । इस प्रकार सत्-चित्-आनन्द-स्वरूप परमात्माकी चाहना सभीमें स्वाभाविक है । इसको कोई मिटा नहीं सकता, दूसरी चाहनाएँ जितनी ज्यादा पकड़ रखी हैं, उतनी ही परमात्मप्राप्तिमें देरी लगेगी । दूसरी चाहनाएँ जितनी मिटेंगी, उतनी ही जल्दी परमात्मप्राप्ति होगी । सर्वथा चाहना मिटा दो तो तत्काल परमात्मप्राप्ति हो जायगी ।
राज्यकी चाहना होनेसे ही ध्रुवजीको परमात्मप्राप्तिमें देरी लगी । इस चाहनाके कारण अन्तमें उनको पश्चात्ताप हुआ कि मैंने गलती कर दी ! आप जिन चाहनाओंको पूरी करना चाहते हैं, उन चाहनाओंका आपको पश्चात्ताप होगा और रोना पड़ेगा । अतः परमात्माकी प्राप्तिमें दूसरी लालसा बाधा है—इस बातपर विचार करनेसे दूसरी लालसा मिट जायगी । दूसरी लालसा परमात्मप्राप्तिमें बाधा देनेमें ही सहायता करती है । इससे लोक-परलोकमें किसी तरहका किञ्चिन्मात्र भी फायदा नहीं है । केवल नुकसानके सिवाय और कुछ नहीं है । दूसरी लालसा केवल आध्यात्मिक मार्गमें बाधा डालती है । अगर इससे कुछ फायदा हो तो कोई बताओ कि अमुक लालसासे इतना फायदा हो जायगा । इसमें कोरा नुकसान है । केवल नुकासनकी बात भी आप नहीं छोड़ सकते, तो क्या छोड़ सकते हैं ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)

—‘साधन-सुधा-सिन्धु’ पुस्तकसे