।। श्रीहरिः ।।

गीतोक्त श्लोकोंके

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अनुष्ठानकी विधि
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श्लोका मन्त्रमयाः प्रोक्ताः
सर्वे च सिद्धिदायकाः ।
अभीष्टकर्यसिद्ध्यर्थं
विधिस्तेषां निगद्यते ॥

श्रीमद्भगवद्गीताके जिस श्लोकको सिद्ध करना हो, उसका सम्पुट लगाकर पूरी गीताका पाठ करना चाहिये । जैसे, हमें ‘कार्पण्दोषोपहतस्वभावः......शाधि मां त्वां प्रपन्नम’ (२/७)—इस श्लोकको सिद्ध करना हो तो पहले इस श्लोकका एक बार पाठ करके फिर ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे ......’(१/१)—इस श्लोकका पाठ करें । फिर ‘कार्पण्दोषोपहतस्वभावः.....’ श्लोकका पुनः पाठ करके ‘दृष्ट्वा तु......’(१/२)—इस श्लोकका पाठ करें । इस तरह प्रत्येक श्लोकके पहले और पीछे सम्पुट लगाकर पूरी गीताका पाठ करें तो उपर्युक्त श्लोक (मन्त्र) सिद्ध हो जायगा ।

सम्पुटसे भी सम्पुटवल्ली लगाकर गीताका पाठ करना बहुत बढ़िया है * जैसे, ‘कार्पण्दोषोपहतस्वभावः.......’ श्लोक सिद्ध करना हो तो पहले इस श्लोकका दो बार पाठ करके फिर ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे ......’ श्लोकका पाठ करें । फिर सम्पुटवल्लीवाले श्लोकका दो बार पाठ करके ‘दृष्ट्वा तु......’ श्लोकका पाठ करें । इस तरह पूरी गीताका पाठ करके अभीष्ट श्लोकको सिद्ध कर लें


अभीष्ट कार्यकी सिद्धिके लिये उपर्युक्त प्रकारसे सिद्ध किये हुए मन्त्रका जप गंगाजीके जलमें खड़े होकर करना चाहिये । ऐसा न कर सकें तो गंगाजीके जलमें पत्थरोंका आसान बनाकर उसपर ऊनका आसान बिछाकर, बैठकर जप करना चाहिये । यह भी न कर सकें तो गंगाजीके किनारेपर बालूमें अपना ऊनी आसान बिछाकर मन्त्रका जप करना चाहिये । अगर गंगाजीका सान्निध्य उपलब्ध न हो तो अपने घरमें ही किसी एकान्त कमरेमें गोबर और गौमूत्रको पानीमें मिलाकर आसान लगानेके स्थानपर लीप दें और उसपर अपना ऊनी आसान बिछाकर, बैठकर मन्त्रका जप करें ।

गीतोक्त सिद्ध मन्त्रोंका निम्नलिखित कार्योंमें प्रयोग किया जा सकता है—

......(१) कोई बात भगवान्‌से पूछनी हो, किसी समस्याका समाधान पाना हो, ‘मैं ज्ञानमार्गमें चलूँ या भक्तिमार्गमें’—इस उलझनको मिटाना हो तो रात्रिके समय एकान्त कमरेमें आसान बिछाकर बैठ जायँ । कमरेमें बत्ती बुझा दें । केवल एक अगरबत्ती जलाकर रखें और भगवान्‌का ध्यान करें । भगवान्‌ मेरे सामने खड़े हैं और मैं अर्जुन भगवान्‌से पूछ रहा हूँ—ऐसा भाव रखकर ‘कार्पण्दोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः । यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥’ (२/७)—इस श्लोकका पाठ करें और साथमें अर्थका भी चिन्तन करते रहें । पाठ करते-करते श्लोकके जिस चरणमें अथवा पदोंमें मन लग जाय, उसीका पाठ करना शुरू कर दें, जैसे—‘ पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः; पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः’ अथवा ‘निश्चितं ब्रूहि तन्मे; निश्चितं ब्रूहि तन्मे’ या ‘शाधि मां त्वां प्रपन्नम्; शाधि मां त्वां प्रपन्नम्’ आदि किसी एक की बार-बार आवृत्ति करते रहें । इस तरह पाठ करते हुए नींद आने लगे तो पाठ करते हुए ही सो जायँ । ऐसा करनेसे स्वप्नमें भगवान्‌का संकेत मिलता है । उस संकेतसे समझ लेना चाहिये कि भगवान्‌का अमुक भाव है । अगर संकेत समझमें न आये तो दूसरे दिन पुनः रात्रिमें उपर्युक्त विधिसे पाठ करें और भगवान्‌से प्रार्थना करें कि महाराज ! आप लिखकर बतायें । ऐसा करनेसे स्वप्नमें लिखकर सामने आ जायगा । लिखा हुआ भी समझमें न आये तो दूसरे दिन पुनः रात्रिमें उपर्युक्त विधिसे पाठ करें और भगवान्‌से प्रार्थना करें कि प्रभो ! आप कहकर बतायें । ऐसा करनेसे स्वप्नमें आवाज आ जायगी और आवाजके साथ ही हमारी नींद खुल जायगी ।

अगर एक रातमें ऐसा स्वप्न न आये तो जबतक स्वप्न न आये, तबतक उपर्युक्त विधिसे प्रतिदिन रातमें श्लोकका पाठ करते रहें । ग्यारह अथवा इक्कीस दिनतक पाठ किया जा सकता है । इसमें जितनी तेज लगन होगी, उतना ही जल्दी काम होगा ।

......(२) मनमें दो बातोंकी उलझन हो और उनका समाधान पाना हो तो उपर्युक्त विधिसे ही ‘व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे । तदेकं वद निश्चित्य येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम् ॥’ (३/२)—इस श्लोकाका पाठ करना चाहिये ।

......(३) भूत-प्रेतकी बाधाको दूर करना हो तो ‘स्थाने हृषिकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च । रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः ॥’ (११/३६)—इस मन्त्रको पहले कही गयी विधिसे सिद्ध कर लेना चाहिये । फिर जिस व्यक्तिको भूत-प्रेतने पकड़ा है, उसको इस मन्त्रका पाठ करते हुए मोरपंखसे झाडा दें अथवा अपने हाथमें शुद्ध जलसे भरा हुआ लोटा ले लें और इस मन्त्रको बोलकर जलमें फूँक मारते रहें, फिर वह जल उस व्यक्तिको पीला दें । इन दोनों प्रयोगोमें इस मन्त्रका सात, इक्कीस या एक सौ आठ बार पाठ कर सकते हैं । इस मन्त्रको भोजपत्र या सफ़ेद कागजपर अनारकी कलमसे अष्टगन्धसे लिखें और ताबीजमें डालकर रोगीके गलेमें लाल धागेसे पहना दें ।

......(४) शास्त्रार्थ, वाद-विवादमें विजय पानेके लिये ‘यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥’ (१८/७८)—इस मन्त्रका जप करना चाहिये ।

......(५) सब जगह भगवद्भाव करनेके लिये सातवें अध्यायके सातवें अथवा उन्नीसवें श्लोकका पाठ करना चाहिये ।

......(६) भगवान्‌की भक्ति प्राप्त करनेके लिये नवें अध्यायका चौंतीसवाँ, ग्यारहवें अध्यायका चौवनवाँ अथवा पचपनवाँ, बारहवें अध्यायका आठवाँ और अठारावें अध्यायका छाछाठवाँ —इनमेंसे किसी एक श्लोकका पाठ करना चाहिये ।

इस तरह जिस कार्यके लिये जो श्लोक ठीक मालूम दे, उसीका पाठ करते रहें तो कार्य सिद्ध हो जायगा । अगर वह श्लोक अर्जुनका हो तो अपनेमें अर्जुनका भाव लाकर भगवान्‌से प्रार्थना करें; और भगवान्‌का श्लोक हो तो ‘भगवान्‌ मेरेसे कह रहे हैं’—ऐसा भाव रखते हुए पाठ करें । गीताके श्लोकोंपर जितना अधिक श्रद्धा-विश्वास होगा, उतना ही जल्दी काम सिद्ध होगा ।

टिप्पणी—
............* सिद्ध किये जानेवाले श्लोकका गीताके प्रत्येक श्लोक्से पहले और पीछे एक बार पाठ करना ‘सम्पुट पाठ’ और दो बार पाठ करना ‘सम्पुटवल्ली पाठ’ कहलाता है ।
.......... मन्त्रको किसी कारणसे सिद्ध न कर सकें और अभीष्ट कार्य सिद्ध करनेकी तीव्र उत्कण्ठा हो तो बिना सिद्ध किये मन्त्रका जप करनेसे भी कार्य सिद्ध हो सकता है ।

—‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे