।। श्रीहरिः ।।

गीता-पाठकी


विधियों-३

(गत् ब्लॉगसे आगेका)
गीताका पाठ करनेके तीन प्रकार हैं—सृष्टिक्रम, संहारक्रम और स्थितिक्रम । गीताके पहले अध्यायके पहले श्लोकसे लेकर अठारहवें अध्यायके अन्तिम श्लोकतक सीधा पाठ करना अथवा प्रत्येक अध्यायके पहले श्लोकसे लेकर, उसी अध्यायके अन्तिम श्लोकतक सीधा पाठ करना ‘सृष्टिक्रम’ कहलाता है । अठारहवें अध्यायके अन्तिम श्लोकसे लेकर पहले अध्यायके पहले श्लोकतक उलटा पाठ करना अथवा प्रत्येक अध्यायके अन्तिम श्लोकसे लेकर उसी अध्यायके पहले श्लोकतक उलटा पाठ करना ‘संहारक्रम’ कहलाता है । छठे अध्यायके पहले श्लोकसे लेकर अठारहवें अध्यायके अन्तिम श्लोकतक सीधा पाठ करना और पाँचवें अध्यायके अन्तिम श्लोकसे लेकर पहले अध्यायके पहले श्लोकतक उलटा पाठ करना ‘स्थितिक्रम’ कहलाता है । ब्रह्मचारी सृष्टिक्रमसे, संन्यासी संहारक्रमसे और गृहस्थ स्थितिक्रमसे पाठ कर सकते हैं । परन्तु यह कोई नियम नहीं है । वास्तवमें किसी भी प्रकारसे गीताका पाठ किया जाय, उससे लाभ-ही-लाभ है ।

गीताका पाठ सम्पुटसे, सम्पुटवल्लीसे अथवा बिना सम्पुटके भी किया जाता है । गीताके जिस श्लोकका सम्पुट देना हो, पहले उस श्लोकका पाठ करके फिर अध्यायके एक श्लोकका पाठ करे । फिर सम्पुटके श्लोकका पाठ करके अध्यायके दूसरे श्लोकका पाठ करे । इस तरह सम्पुट लगाकर पूरी गीताका सीधा या उलटा पाठ करना ‘सम्पुट-पाठ’ कहलाता है । सम्पुटके श्लोकका दो बार पाठ करके फिर अध्यायके एक श्लोकका पाठ करे । फिर सम्पुटके श्लोकका दो बार पाठ करके अध्यायके दूसरे श्लोकका पाठ करे । इस तरह सम्पुट लगाकर पूरी गीताका सीधा या उलटा पाठ करना ‘सम्पुटवल्ली-पाठ’ कहलाता है । गीताके पूरे श्लोकोंका सम्पुट अथवा सम्पुटवल्लीसे पाठ करनेसे एक विलक्षण शक्ति आती है, गीताका विशेष मनन होता है, अन्तःकरण शुद्ध होता है, शान्ति मिलती है और परमात्माप्राप्तिकी योग्यता आ जाती है ।

सम्पुट न लगाकर पाठ करना ‘बिना सम्पुटका पाठ’ कहलाता है । मनुष्य प्रतिदिन बिना सम्पुटका अठारह अध्यायोंका पाठ करे अथवा नौ-नौ अध्याय करके दो दिनमें अथवा छः-छः अध्याय करके तीन दिनमें अथवा दो-दो अध्याय करके नौ दिनमें गीताका पाठ करे । यदि पंद्रह दिनमें गीताका पाठ पूरा करना हो तो प्रतिपदासे एकादशीतक एक-एक अध्यायका, द्वादाशीको बारहवें और तेरहवें अध्यायका, त्रयोदशीको चौदहवें और पन्द्रहवें अध्यायका, चतुर्दशीको सोलहवें और सत्रहवें अध्यायका तथा अमावस्या और पूर्णिमाको अठारहवें अध्यायका पाठ करे । किसी पक्षमें तिथि घटती हो, तो सातवें और आठवें अध्यायका एक साथ पाठ करे । इसी तरह किसी पक्षमें तिथि बढती हो, तो सोलहवें और सत्रहवें इन दोनों अध्यायोंका अलग-अलग दो दिनमें पाठ कर ले ।

यदि पूरी गीता कण्ठस्थ हो तो क्रमशः प्रत्येक अध्यायके पहले श्लोकका पाठ करते हुए पूरे अठारहों अध्यायोंके पहले श्लोकोंका पाठ करे । फिर क्रमशः अठारहों अध्यायोंके दूसरे श्लोकोंके पाठ करे । इस प्रकार पूरी गीताका सीधा पाठ करे । इसके बाद अठारहवें अध्यायका अन्तिम श्लोक, फिर सत्रहवें अध्यायका अन्तिम श्लोक—इस तरह प्रत्येक अध्यायके अन्तिम श्लोकका पाठ करे । फिर अठारहवें अध्यायका उपान्त्य (अन्तिम श्लोकके पीछेका) श्लोक, फिर सत्रहवें अध्यायका उपान्त्य श्लोक—इस तरह प्रत्येक अध्यायके उपान्त्य श्लोकका पाठ करे । इस प्रकार पूरी गीताका उलटा पाठ करे ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)

—‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे