।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि—

आषाढ़ शुक्ल एकादशी, वि.सं. २०६८, सोमवार

हरिशयनी एकादशीव्रत

क्रोधपर विजय कैसे हो ?

जैसे आप हिसाब सिखते हो तो उस हिसाबका गुर सीख लेते हो तो वह हिसाब सुगमतासे हो जाता है । ऐसे ही हरेक प्रश्नका एक गुर होता हैं उसको आपलोग सीख लो तो प्रश्नका उत्तर स्वतः आ जायगा ।

प्रश्न आया है कि हम क्रोधपर विजय कैसे पावें ? तो क्रोध पैदा किससे होता है ? गीताने कहा—‘कामसे ही क्रोध पैदा होता है—‘कामात्क्रोधोऽभिजायते ।’ (२/६२) वह काम (कामना) क्या है ? मनुष्यने समझ रखा है कि ‘धन, सम्पत्ति, वैभव आदिकी कामना होती है’—ये भी सब कामना ही है, पर मूल—असली कामना क्या है ? ‘ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये’—यह जो भीतरकी भावना है, इसका नाम कामना है ।

आप पहले यह पकड़ लेते हो कि ‘ऐसा होना ही चाहिये’ और वह नहीं होगा तो क्रोध आ जायगा । ‘ऐसा नहीं होना चाहिये’ और कोई वैसा करेगा या उससे विपरीत करेगा तो क्रोध आ जायगा । ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये—यही क्रोधका खास कारण है ।

ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये—इस कामनामें कोई फायदा नहीं है; क्योंकि दुनियामात्र हमसे पूछकर करेगी क्या ? हमारे मनके अनुसार ही करेगी क्या ? आप अपनी स्त्री, पुत्र, अपने नौकर आदिसे चाहते हैं कि ये हमारा कहना करें तो क्या उनके मनमें नहीं हैं ? ऐसा करूँ और ऐसा न करूँ—ऐसा उनके मनमें नहीं है क्या ? अगर उनका मन इससे रहित है, तब तो आप कहें, वैसा वे कर देंगे, पर उनके मनमें भी तो ‘ऐसा करूँ और ऐसा न करूँ’ ऐसी दो बातें पड़ी हैं तो वे आपकी ही कैसे मान लें ? आपकी ही वे मान लें तो फिर आप भी उनकी मान लो । जब आप भी उनकी माननेके लिये तैयार नहीं है तो फिर अपनी बात मनवानेका आपको क्या अधिकार है ? इसलिये ‘ऐसा होना चाहिये और ऐसा नहीं होना चाहिये’—यह भाव मनमें आ जाय तो ‘ये ऐसा ही करें’, अपना यह आग्रह छोड़ दो । इस आग्रहमें अपना अभिमान अर्थात् मैं बड़ा हूँ, इनको मेरी बात माननी चाहिये—यह बड़प्पनका अभिमान ही खास कारण है और वैसा न करनेसे अभिमान ही क्रोधरूपसे हो जाता है ।

अगर आप शान्ति चाहते हो तो अभिमान मिटाओ; क्योंकि अभिमान सम्पूर्ण आसुरी संपत्तिका मूल है । अभिमानरूप बहड़ेकी छायामें आसुरी सम्पत्तिरूप कलियुग रहता है । आसुरी सम्पत्तिके क्रोध, लोभ,मोह, मद, इर्षा, दम्भ, पाखंड आदि जितने अवगुण हैं, वे सब अभिमानके आश्रित रहते हैं, क्योंकि अभिमान उनका राजा है । उसको आप छोड़ते नहीं तो क्रोध कैसे छूट जायगा ! इसलिये उस अभिमानको छोड़ दो ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)

—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे