।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण पंचमी, वि.सं.–२०६९, सोमवार
विनाशीका आकर्षण कैसे मिटे ?


(गत ब्लॉगसे आगेका)
       यह निश्चित समझो कि यह छूटनेवाला है; क्योंकि इनके सम्बन्धमें कमजोरी आयी है । तो यह छूटनेवाली वस्तु है । अगर छूटनेवाली वस्तु नहीं होती तो पकड़ कम कैसे होती ? गीता कहती है‒‘नाभावो विद्यते सतः’, सत्‌का अभाव नहीं होता; पर इसका अभाव होता है । कम होती है, तो अभाव हुआ न ? तो इस बातसे यह बल आना चाहिये कि यह तो छूटनेवाली है । अगर छूटनेवाली नहीं होती तो कम कैसे होती ? और कम हुई तो सर्वथा भी छूट जायगी, जरूर छूटेगी‒इसमें कहना ही क्या है ! कम होती है, वो मिटती है । यह अगर कम होती है तो इसका मिटना भी होगा । इसकी उमर कम हुई है तो यह मरेगी, जीयेगी कैसे ?
 
        सम्बन्ध छोड़ना और पकड़ना हमें आता है । माँ-बापका सम्बन्ध हुआ, स्त्री-पुत्रका सम्बन्ध हुआ । तो सांसारिक-सम्बन्ध तो नये-नये होते रहते हैं तथा पुराने सम्बन्ध छूटते जाते हैं, पर भगवान्‌के साथमें हमारा वास्तविक सम्बन्ध है । संसारके साथ हमारा सम्बन्ध वास्तविक नहीं है । शास्त्रोंसे, सन्तोंसे यह बात मालूम होती है । हम भी अनुभव करें तो भगवान्‌के साथ हमारा सम्बन्ध श्रद्धासे ही सही; न दीखे भले ही; परन्तु संसारका सम्बन्ध तो छूटता है, यह प्रत्यक्ष दीखता है न, तो यह छूटता नहीं, ऐसी हिम्मत नहीं हारनी चाहिये । यह तो छूट रहा है । आप नहीं छोड़ोगे तो भी यह छूटेगा ही । लेकिन आप नहीं छोड़ेंगे तो छूट जावेगा, तो वो फिर पकड़ा जायगा और आप छोड़ दोगे तो फिर पकड़ा नहीं जायगा । यह छूटता नहीं, यह बात मत मानो । यह छूट रहा है, इतना सुधार कर लो आजसे । यह नहीं छूटता, यह भावना बहुत खराब है । इस वास्ते यह मान ले कि यह छूट रहा है और हम छोड़ रहे हैं । हम जो सत्संग कर रहे हैं, यह छोड़ रहे हैं । ‘का परदेशी की प्रीत जावतो बार न लावे’ यह तो सब जा रहा है ।
‘का मांगू कछु थिर न रहाई, देखत नयन चल्यो जग जाई ।’ अब किसके साथ प्यार करें, किसको रखें, किसको अपना मानें ।
रज्जब रोवें कौन को हसे से कौन विचार ।
गये सो आवनके नहीं रहे सो जावन हार ॥
‒ये तो जा रहे हैं, इस बातपर दृढ़ रहो । छूटती नहीं, यह मत मानो, अब छूटती है, उसको मानो । छूटती नहीं‒यह उलटी बात क्यों मानो ! छूट रही है यह तो !
 
         श्रोता‒परन्तु ये हमें अच्छी लगती है, महाराजजी !
         स्वामीजी‒अच्छी लगती है, पर छूटती है । कोई बात नहीं, परवाह मत करो । आप अच्छी लगनेसे घबराओ मत । ये छूट रही है, इस बातपर दृढ़ रहो । वस्तुएँ अच्छी लगती हैं, पर छूट रही हैं । जड़ कट जायगी अच्छेपनकी । अच्छी तो लगती है, पर रहेगी नहीं ।
 
        कितनी बढ़िया बात है ! कितनी ही अच्छी लगे, पर रहनेवाली नहीं है । जवानी अच्छी लगती है, पर रहेगी नहीं । स्त्री-पुत्रदिका संयोग अच्छा लगता है, पर रहेगा नहीं । बस इतनी बात याद रखो । यह बात सच्ची है न ?
 
श्रोता‒हाँ जी !
स्वामीजी‒रहेगी नहीं तो अच्छी कैसे लगेगी, अच्छापन कम होता जायगा । अब परवाह नहीं इसकी ! अपना काम हो रहा है, छूट रहा है !
 
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
 
‒ ‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे

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