।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.–२०६९, मंगलवार
सन्त और उनकी सेवा

(गत ब्लॉगसे आगेका)    
       सन्तोकी बातें इतनी अलौकिक हैं कि हम उनका विवेचन भी नहीं कर सकते, फिर अनुभवकी तो बात ही अलग है !

     अपनी बुद्धिसे सन्तोंकी पहचान करना बड़ा कठिन है । उनकी पहचान तो सन्त और भगवान्‌की कृपासे ही सम्भव है । कसौटीसे पहचान करनेपर तो हम फेल हो जाते हैं; क्योंकि हमारी कसौटी ही गलत है । सन्तोंकी पहचान पहले बताये हुए तरीकेसे ही की जा सकती है कि (१) जिस व्यक्तिके संग, वार्तालाप तथा दर्शनसे हममें दैवी सम्पत्ति आये, भगवान्‌में हमारी रुचि बढ़े, आध्यात्मिक पथपर हम अग्रसर हों, (२) जो हमसे कभी किंचिन्मात्र किसी तरहकी सेवाकी इच्छा न रखता हो, (३) जो हमारा सदा ही बिना स्वार्थके हित करता रहता हो एवं (४) हमारी दृष्टिमें जो आध्यात्मिक विषयमें सबसे बढ़कर जानकार हो, वही हमारे लिये सन्त है । एवं स्थूल रीतिसे सन्तकी पहचान करनेका यह उपाय भी है कि सच्चा सन्त स्त्री, सम्पत्ति नहीं चाहता, मान-बड़ाई नहीं चाहता, जितनी भौतिक वस्तुएँ हैं उनकी उसको इच्छा या लालसा नहीं रहती ।

     सन्तोंका संग किया जाय तो वह कभी निष्फल नहीं जाता । पर उनका महत्त्व समझकर उनके सिद्धान्तानुसार आचरण करते हुए उनका संग करना उनका वास्तविक संग करना है । इस प्रकार करनेसे ही उनके संगका वास्तविक लाभ शीघ्र प्रकट होता है ।

     इसपर यह शंका होती है कि अग्नि अनजानमें भी स्पर्श किये जानेपर जला डालती है, इसी प्रकार अनजानमें भी किया हुआ सन्तोंका संग पापोंका नाशक अवश्य होना चाहिये । तो इसका उत्तर यह है कि यह बात उचित ही है । पापोंका नाश तो अनजानमें भी किये हुए सन्त-संगसे अवश्य होता है, परन्तु जिस प्रकार अग्निमें दाहिकाशक्ति, प्रकाशिकाशक्ति, पाचनशक्ति एवं स्वर्ग तथा मोक्ष देनेकी भी शक्ति है, पर दाहिकाशक्तिको छोड़कर अन्य शक्तियोंका लाभ हम बिना जाने नहीं उठा सकते । अग्नि अनजानमें स्पर्श करनेपर जलाता तो है, पर उससे जलानामात्र ही होता है । किन्तु जो उस अग्निको अग्नि (अग्निका वास्तविक महत्त्व) जानकर उसके अनुकूल क्रिया करते हैं, वे उससे प्रकाश भी ले सकते हैं और उससे रोटी बनाकर अपनी भूख भी मिटा सकते हैं । इतना ही नहीं, अग्निसे ये काम तो श्रद्धारहित व्यक्ति भी ले सकता है, पर वैदिक मन्त्र और परलोकमें श्रद्धा रखनेवाला मनुष्य तो वैदिक मन्त्रोंसे श्रद्धापूर्वक विधिसहित अग्निमें आहुति देकर स्वर्गप्राप्ति भी कर सकता है और जो भगवान्‌की आज्ञा मानकर निष्कामभावसे अग्निमें आहुति देकर यज्ञ करता है, वह तो अग्निसे भगवान्‌की प्राप्ति भी कर सकता है । इसी प्रकार सन्तोंको न जाननेपर भी उनके संगसे पापोंका नाश तो होता ही है, पर जाने बिना परमात्म-विषयक ज्ञान और सांसारिक पदार्थोंसे वैराग्य नहीं होता । सन्तोंको जानकर उनका संग करनेसे सत्‌-असत्‌, कर्तव्य-अकर्तव्य, हेय-उपादेय और सार-असारका ज्ञान एवं अपने लिये अभी और परिणाममें अनिष्टकारक वस्तु तथा क्रियाओंका त्याग हो सकता है एवं श्रद्धापूर्वक निष्कामभावसे उनकी आज्ञाके अनुसार अनुष्ठान करनेसे तो अज्ञान, क्लेश, कर्म, विकार, वासना आदिका अत्यन्त अभाव होकर परमानन्दरूप परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है । यह सब लाभ सन्त-महात्माओंको जानकर उनका श्रद्धापूर्वक संग और तदनुकूल आचरण करनेसे ही होता है ।

     इस विषयमें एक बात और भी है । अग्निसे जलाना तभी होता है, जब अग्नि और अपने बीचमें कोई व्यवधान नहीं होता । पैरमें जूता पहनकर अग्निका स्पर्श किया जाय तो वह जला नहीं सकता । इसी प्रकार यदि सन्तोंके संगमें कुतर्क, निन्दा, तिरस्कार आदिकी आड़ लगा दी जाय तो पापनाशरूपी लाभ भी नहीं हो सकता । अग्नि तो अनजानमें स्पर्श किये जानेपर केवल जलाता ही है, पर यदि कोई सन्तके प्रति तिरस्कार और निन्दाका भाव नहीं रखकर अनजानेमें भी उनका संग करता रहे तो सन्तोंका संग तो उनके पापनाशके सिवा उन्हें परमात्माकी प्राप्तिका अधिकारी भी बना देता है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे