।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
वैशाख शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
सत्संगकी महिमा


(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒सत्संगसे मुफ्तमें लाभ मिलता है सो कैसे ?
उत्तर‒सत्संगसे जो लाभ होता है वह साधनसे नहीं होता । साधन करके जो परमात्माको प्राप्त करता है, वह कमाकर धनी बनता है और सत्संगसे वह गोद चला जाता है, कमाया हुआ मिल जाता है । सन्तोंका कमाया हुआ धन मिलता है । गोद जानेवालेको क्या जोर आवे ? आज कंगाल और कल लखपति । वह तो जा बैठा गोदमें । कमाये हुए धनका मालिक हो जाता है । सत्संगके द्वारा ऐसी चीजें मिलती हैं, जो वर्षोंतक साधन करनेसे भी नहीं मिलतीं । अतः सत्संग मिल जाय तो अवश्य करना चाहिये । मुफ्तमें कल्याण होता है, मुफ्तमें ।

प्रश्न‒नाम-जपसे अधिक सत्संगकी महिमा कही‒इसका क्या कारण है ?

उत्तर‒सत्संग करनेवाला नाम जपे बिना रह नहीं सकता । नाम-जप स्वाभाविक ही होगा ।

प्रश्न‒सत्संग न मिले तो क्या करें ?

उत्तर‒भगवान्‌से प्रार्थना करें हे नाथ ! हे नाथ ! करके पुकारो । भगवान्‌ सर्वसमर्थ हैं । इसके अलावा सत्‌-शास्त्रोंका अध्ययन करें ।

प्रश्न‒मनुष्यका सुधार करनेमें सबसे बढ़िया उपाय क्या है ? आप अपने अनुभवके आधारपर बतावें ?

उत्तर‒मेरेको जितना लाभ सत्संगसे हुआ है, उतना किसी साधनसे नहीं हुआ । अच्छे संगमें रहनेसे बड़ा भारी लाभ होता है, जिसकी कोई सीमा नहीं । सत्संग मत छ़ोडो, जिस सत्संगसे अपने हृदयकि गाँठ खुलती है, आत्मसाक्षात्कार होता है, प्रकाश मिलता है, ऐसा सत्संग छोड़ो मत । सब कुछ मिल जाता है पर ‘सन्त समागम दुर्लभ भाई ।’

प्रश्न‒सत्संगसे प्रकाश कैसे मिलता है ?

उत्तर‒सत्संगतिका अर्थ होता है प्रकाश । जैसे हम कहीं जाते हैं और रात्रिका समय हो तो मोटरका प्रकाश सामने ही रहता है । ऐसा नहीं होता कि प्रकाश पीछे रह जाय और मोटर आगे निकल जाय । प्रकाश आगे ही रहेगा और वह प्रकाश चलनेके लिए रास्ता बताता है । ऐसे ही सत्संगतिसे मनुष्यको प्रकाश मिलता है कि हम कैसे चलें ? सत्संगकी बातें केवल याद कर लें, पुस्तकोंमें पढ़ लें, लोगोंसे कह दें और हम उसके अनुसार चलें नहीं तो प्रकाशको तेज करनेमात्रसे रास्ता नहीं कटता । लाइट कम भी है, परन्तु जहाँतक रास्ता दीखता है, वहाँतक हम चलते जायें तो उससे आगे दीखने ही लगेगा‒यह नियम है । परन्तु एक जगह खड़े-खड़े कितनी ही तेज लाइट कर लें, गन्तव्य स्थान नहीं दीखेगा । ऐसे ही सत्संगतिके द्वारा हमें जो प्रकाश मिल जाय उसके अनुसार चलें । तभी वह प्रकाश सार्थक होता है । जीवन न भी बनावें तो भी यह प्रकाश निरर्थक नहीं जाता; क्योंकि जो सत्य चीज है, वह प्रकट हो ही जाती है । सत्यकी विजय होती है, झूठकी विजय नहीं होती । परन्तु यदि सत्यका आदर करें तो बहुत जल्दी और विशेष लाभ ले सकते हैं । तो सत्संगकी बातें अपने आचरणमें लाना चाहिये ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे