।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया, वि.सं.–२०७०, सोमवार
ममता-त्यागसे नित्य सुख


(गत ब्लॉगसे आगेका)
आप जिसको अपना मानते हो; कुटुम्बको, धनको, घरको, शरीरको अपना मानते हो कि ये मेरे हैं । तो क्या ये पहले मेरे थे ? क्या फिर अपने रहेंगे ? अपने थे नहीं और रहेंगी नहीं । दूसरी बात, आप जिनमें ममता रखते हो, उनको बदल सकते हो क्या ? ‘छोरा मेरा है’ तो उसको भी अपनी आज्ञाके अनुसार चला सकते हो क्या ? अपने शरीरको भी चाहे जैसा स्वस्थ रख सकते हैं क्या ? कम-से-कम उसको मरने तो दोगे ही नहीं ? धन आपके पास है, उसको रख लोगे ? है हाथकी बात ? शरीर बीमार भी हो जायगा, मर भी जायगा, छोरा भी नहीं मानेगा । धन भी चला जायगा । ममतावाली वस्तुओंको रखनेकी ताकत किसीकी हो तो बोलो ! तात्पर्य यह हुआ कि पहले थी नहीं और आगे रहेगी नहीं और अभी भी उसके ऊपर आपका आधिपत्य चलता नहीं । उसके परिवर्तन करनेमें आप समर्थ नहीं । अनुकूल बनानेमें समर्थ नहीं । पहले भी अपनी थी नहीं, और छूट जायगी जरूर‒यह पक्की बात है ।

हर एक बातमें सन्देह होता है । आप ऐसा करें । ऐसा हो भी जाय और न भी हो । अमुक जगह जाना है, अमुक आदमीसे मिलना है, तो क्या मिल लोगे ? मिल भी सकते हैं और नहीं भी । बेटेका ब्याह कर दिया तो पोता जन्मेगा इसका पता नहीं ! हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है । इस प्रकार हर एक काममें होगा और नहीं भी होगा‒ऐसा होता है; पर एक दिन मरना होगा और नहीं भी होगा‒ऐसा विकल्प है क्या ? हो भी सकता है और नहीं भी, मरे चाहे, न भी मरे‒ऐसा हो सकता है क्या ? जब मरना जरूरी है तो मरनेपर ममतावाली सब चीजें छूटेंगी तो अपनापन (ममता) पहले छोड़ दो, तो निहाल हो जाओगे । अन्तमें छूटेगी तो सही ! क्यों माजनो (इज्जत) गुमाओ अपनी । बेइज्जतीके सिवाय क्या मिलेगा ?

आप कहोगे कि ममताके बिना कुटुम्बका पालन कैसे होगा ? ममताके बिना पालन ज्यादा होता है, बढ़िया होता है । एक बात याद आ गयी । वह साधु हो, ब्राह्मण हो, आपका हित ममता रखनेवाला ज्यादा कर सकता है या ममता न रखनेवाला ज्यादा कर सकता है‒ठण्डे हृदयसे आप सोचें । आपको चेला बना ले कि यह मेरा चेला है और एक चेला न बनाकर आपको बात कहे तो ममतावाला ज्यादा लाभ देगा कि बिना ममतावाला । यह आप सोच लो आपके अकलमें आती होगी ।

स्वार्थवाला सच्ची बात कहेगा कि बिना स्वार्थवाला ? और सुधार किस बातसे होगा । आप भी समझते हो कि आपका हित सम्बन्ध जोड़नेमें है कि सम्बन्ध तोड़नेमें । ममता रखनेमें सिवाय हानिके कुछ नहीं है और छोड़नेमें सिवाय लाभके कुछ नहीं है । इन बातोंपर विचार करो ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे