।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
दुर्गुणोंका त्याग

(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक सन्त मिले थे, अन्धे थे । उन्होंने कहा कि मुझे वैराग्य हुआ और बाहर जंगलमें रहता था । ठंडक आ गयी तो एक भक्तने बढ़िया कम्बल दे दी । वह कम्बल ही मेरे पास थी और कोई चीज बढ़िया नहीं । रात्रिमें एकान्त था तो कुछ आदमी आये, शब्द सुनायी दिया, उनकी वाणी सुनी । मनमें विचार आया कि न जाने डाकू हैं कि चोर हैं, न जाने कौन हैं ? मेरे पास यह कम्बल है इसे देखकर ये ले जायेंगे तो पहले अपने ही इनसे बात कर लो । तो उनसे बोले कि भाई ! बोलो कौन हो, क्या बात है ? उन्होंने आकर देखा कि ये तो बाबाजी हैं । ऐसा देखकर बोले कि महाराज ! आप सन्त हैं, इसलिये हम आपसे सच्ची बात कह देते हैं कि हम चोरी करने जा रहे हैं, हमारा पेशा चोरी करनेका है, हम तो गृहस्थ हैं । अपना कमाकर खानेवाले हैं परन्तु राज्यका लगान बहुत बढ़ गया है, वह दे नहीं सकते, इसलिये हम चोरी करने जा रहे हैं । सन्तने कहा कि भैया, चोरी करना अच्छा नहीं है । उन्होंने कहा कि हम भी अच्छा नहीं समझते; परन्तु करें क्या ? इतना लगान कहाँसे दें ? हमारे पास हैं नहीं । उनसे इतनी बात की, पर बाबाकी कम्बल नहीं ली । आदमी लोभमें ऐसा करता है, लोभमें चोरी करे, दूसरोंको दुःख दे, धन मार ले, कितने पापकी बात है, कितने अन्यायकी बात है । यह एक विलक्षण बात है कि निर्धन होनेपर भी, आफत आनेपर भी पाप न करे । दुःख पा ले, पर पाप न करे, अन्याय न करे ।
सिबि दधीच   हरिचंद नरेसा ।
सहे धरम हित कोटि कलेसा ॥
                                     (मानस २/९४/२)
           धर्मके लिये करोड़ों कष्ट सह लिये, पर अपने धर्मसे विचलित नहीं हुए ।
धीरज धर्म   मित्र   अरु  नारी ।
आपद काल परिखिअहिं चारी ॥
                                     (मानस ३/४/४)
         इनकी परीक्षा आपत्तिके समय होती है । मनुष्यके लिये बहुत ही आवश्यक है कि धैर्य खोवे नहीं । जोरसे हवा आती है कभी-कभी, तो बड़े-बड़े वृक्ष टूट जाते हैं । पर उस हवामें भी जो ठीक रह जाय तो फिर वह मौजसे रहता है, कोई खतरा नहीं । इसी तरह काम, क्रोध, लोभ आदिकी हवाका झोंका मिट जाता है तो फिर ठीक हो जाता है । थोड़ा-सा धैर्य रखें । कैसी भी आफत आ जाय, पाप नहीं करेंगे, अन्याय नहीं करेंगे, शास्त्र-निषिद्ध आचरण नहीं करेंगे, भूखे मरेंगे तो मर जायेंगे और क्या होगा, बताओ ? पासमें कुछ नहीं है तो भूखे मर जायेंगे, इसके सिवा दण्ड होगा नहीं । पाप करोगे तो नरकोंमें जाना पड़ेगा और चौरासी लाख योनियोंमें भटकना पड़ेगा । यह बात स्वीकार कर ले तो उससे कोई शक्ति कभी पाप करवा नहीं सकेगी ।

        शास्त्रोंमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनोंके अस्त्रोंका वर्णन आता है । ब्रह्माजीका ब्रह्मास्त्र है, भगवान्‌ विष्णुका नारायणास्त्र है और शिवजीका पाशुपतास्त्र है । ये मन्त्रोंके प्रयोगसे चलते हैं । ब्रह्मास्त्र जिसपर छोड़ दिया जाता है तो उसे खत्म कर देता है । ब्रह्मास्त्रका उपाय है उसका उपसंहार करना । मन्त्रोंसे उसको उलटा देनेसे वह आगे दखल नहीं देता । नारायण-अस्त्र छूट जाता है तो वह भी खातमा कर देता है । उसका उपाय है कि शरण हो जाय, लम्बे पड़ जाय । शरण ले लेनेसे वह नारायण-अस्त्र नहीं मारता है । परन्तु पाशुपतास्त्र छोड़नेपर चाहे कुछ भी करो वह तो संहार करेगा ही ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे