(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
आज
कहा जाय कि
पाप मत करो ।
तो लोग कहते
हैं कि
महाराज !
आजकलके
जमानेमें यह
नहीं चल सकता ।
यह आपकी बात
पुराने
ढंगकी है,
पुराने
जमानेकी । इस
जमानेमें
ऐसा नहीं चल
सकता । ऐसा
करें, तो
भूखों मर
जायेंगे । जी
नहीं सकते ।
आज सच्चाईके
साथ कैसे
करें ? लाख
रुपया कमाते हैं
तो लगभग आधा
टैक्सका
देना पड़ता है ।
हमें एक
भाईने कहा कि
अब बताओ क्या
कमावें, क्या
खावें ? इस
जमानेमें
मनुष्य
सच्चाईसे
काम नहीं कर
सकता । हम
कहते हैं कि
सरकार कृपा
कर रही है कि
लोभके वशीभूत
होकर ज्यादा
संग्रह मत
करो ।
क्रियात्मक
उपदेश दे रही
है । साधारण
खर्चा करो,
साधारण कमाओ
और खाओ । उससे पाप कोई
नहीं करवा
सकता । कुछ
रुपये
कमानेतक छूट
है न टैक्सकी ?
उतनेके भीतर-भीतर
कमाओ । कहते
हैं कि खर्चा
कहाँसे
लावें,
छोरीका
ब्याह कैसे
करें ?
मुश्किल हो
जाती है,
सभ्यता है ।
सभ्यताको
तिलांजलि दे
दो, पानी दे दो,
पानीमें खड़े
होकर । हमें
वह सभ्यता
नहीं रखनी ।
हमारी
बेइज्जती हो
जाय, उससे
डरेंगे नहीं ।
पुण्य
करते हुए, शुभ
काम करते हुए,
धर्मके ऊपर चलते
हुए अगर लोग
निन्दा करें,
तो करें ।
त्रिविधं
नरकस्येदं
द्वारं
नाशनमात्मनः
।
(गीता १६/२१)
अपना
पतन
करनेवाले
काम, क्रोध और
लोभ‒ये तीन
प्रकारके
नरकोंके
दरवाजे हैं ।
इनमें
प्रविष्ट हो
गया, वह तो
नरकोंमें ही
जायगा । यदि
भगवान्को
याद करे कि अब
ऐसा नहीं
करेंगे तो
नहीं जायगा ।
जब कभी सुधर
जाय
उमरभरमें, कब
कभी चेत हो
जाय और विचार
पक्का हो जाय
कि पाप कभी
नहीं करूँगा, तो
पूरा
प्रायश्चित्त
हो जायगा ।
भगवान्की
कृपासे उसको
बल भी मिल
जायगा, धर्म
मिल जायगा और
वह सन्त बन जायगा
। ऊपरसे वह
भाई हो चाहे
बहिन हो,
गृहस्थ हो या
कुछ भी हो,
भगवान् तो
भीतरका भाव
देखते हैं ‘भावग्राही
जनार्दनः’ वे
भाव-भोक्ता
हैं । भाव
जिसका
निर्मल हो
गया, वह तो
निर्मल हो ही
गया । केवल
बाहरसे
निर्मल
होनेसे, अच्छा
बननेमें
देरी लगती है,
पर यह भाव हो
जाय कि हम पाप
नहीं करेंगे,
इतनेमें
बहुत जल्दी
शुद्ध हो
जाता है ।
‘व्यवसायात्मिका
बुद्धिरेका’ निश्चय कर
लिया कि
पारमार्थिक
मार्गमें ही
चलना है, कुछ
भी हो जाय । ‘अपि
चेत्सुदुराचारः’‒पापी-से-पापी
हो तो उसे भी ‘साधुरेव स
मन्तव्यः’‒साधु
ही मानना
चाहिये,
क्योंकि ‘सम्यग्व्यवसितो
हि सः’‒उसने
पक्का
निश्चय कर
लिया । उस
भावके
अनुसार वह
पवित्र हो
जाता है ।
रहति
न प्रभु चित
चूक किए की ।
करत
सुरति सय बार
हिए की ॥
(मानस १/२८/३)
पहले
दोष बन गये, उन
बातोंको
भगवान् याद
नहीं करते ।
जिसका भाव
अच्छा है और
इधर चलना
चाहता है, भगवान्
उसे सौ बार
याद करते हैं
कहीं उसे भूल
न जाऊँ । ऐसे
प्रभुके
रहते हुए भय
किस बातका ?
सच्चे हृदयसे
पापका त्याग
कर दो । अभी तो
लोभमें आकर
पाप कर बैठते
हैं; परन्तु
आगे दशा क्या
होगी ? इसका
कुछ विचार
किया है ? धन
यहीं रहेगा,
सम्पत्ति
यहीं रहेगी,
पर आप जावोगे ।
उम्रभरमें
खर्च कर
सकोगे नहीं ।
पापसे कमाया
हुआ धन खर्च
नहीं किया
जायगा, बाकी
बचेगा और पाप
किया हुआ
कर्म पीछे
नहीं रहेगा,
साथ चलेगा और
महान् दण्ड
भोगना पड़ेगा ।
समझदार
आदमीको तो
जल्दी चेत कर
लेना चाहिये, इसलिये
केवल विचार
हो जाय कि अब
पाप नहीं
करेंगे,
अन्याय नहीं
करेंगे ।
नारायण
!
नारायण !!
नारायण !!!
‒ ‘जीवनोपयोगी
प्रवचन’
पुस्तकसे
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