।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.–२०७०, रविवार
ममता-त्यागसे नित्य सुख

मूलमें ममता छोड़ना चाहते नहीं । यहाँ ही गलती होती है । ममता छूटती नहीं‒यह बात नहीं है; आप छोड़ना चाहते नहीं । अब छोड़नेकी चाहना पैदा कैसे हो‒यह खास प्रश्न है । इसमें आप ध्यान देकर सुनें और खूब ठण्डे हृदयसे विचार करें कि जिनके साथ आपकी ममता है । सबसे अधिक शरीरके साथ, इसके बाद कुटुम्बी, धन-सम्पत्ति आदिके साथ ममता है, ये ममतावाली चीजें सदा साथ रहेंगी क्या ? जैसे आप पहले किसी शरीरमें थे, तो उस समय वे शरीर, कुटुम्बी आदि अपने दीखते थे, पर आज उनकी याद भी नहीं है । तो आज जिनमें आप ममता कर रहे हो, ये चीजें मरनेके बाद यादतक नहीं रहेंगी, क्योंकि ये वस्तुएँ तो छूटेंगी ही । वस्तुएँ तो छूटेंगी, परन्तु उनमें आपका जो राग है, ममता है‒यह मरनेके बाद भी आपके साथ रहेगा । इसलिये यह ममता सिवाय जन्म-मरण, दुःख देनेके कुछ लाभ देनेवाली नहीं है ।

पदार्थ छूटेंगे, ममतावाली वस्तुएँ छूट जायेंगी परन्तु ममता भीतर बनी रहेगी । आगे चलकर वही ममता, आसक्ति और कामना पैदा करके बन्धन-ही-बन्धनमें डालेगी इसके सिवाय कुछ नहीं । जब छूटनेवाली वस्तुओंसे ही ममता छोड़नी है तो इसमें जोर क्या आवे ? जरूर छूटनेवाली वस्तुओंकी ममता छोड़नेसे निहाल हो जाओगे, मुक्त हो जाओगे । ममता रहते हुए मौत आवेगी तो भी वस्तुओंसे सम्बन्ध-विच्छेद होगा और त्याग करनेसे भी वस्तुओंसे सम्बन्ध-विच्छेद होगा । परन्तु मौतमें पराधीनता है और त्यागमें स्वाधीनता है । मौतमें अशान्ति है और त्यागमें शान्ति है । मौतमें बाहरसे सम्बन्ध छूट जाता है, पर भीतर ममता-आसक्ति रहनेसे महान्‌ दुःख होता है और त्यागमें भीतरसे सम्बन्ध छूट जाता है तो बाहरसे सम्बन्ध छूटनेपर भी हानि नहीं होती, प्रत्युत महान्‌ आनन्द होता है ।

मेरी तो एक ही प्रार्थना है कि आप इन बातोंपर दलील दो, सुनो और विचार करो । ममता रखनेसे हानि-ही-हानि है और ममता छूटनेसे आपके किसी तरहकी हानि नहीं होगी, दुःख नहीं होगा और सुखमें कमी नहीं आयेगी । जैसे, इस मकानको आप सब भाई अपना नहीं मानते तो क्या इसमें बैठनेका सुख आपको नहीं मिलता है ? क्या यहाँके प्रकाशका सुख हमारेको नहीं मिलता है ? यहाँ पंखे चलते हैं, इनसे हमारेको सुख नहीं मिलता है क्या ? यहाँ माइकपर बोलते हैं, सुनते हैं तो इससे हमारेको सुख नहीं मिलता है क्या ? तात्पर्य यह हुआ कि अपनापन छूटनेपर भी सुख मिलना छूटेगा नहीं ! अपनी ये चीजें नहीं है और सुख ले रहे हैं तो सुख लेनेपर भी हम निर्लेप रहेंगे अर्थात्‌ यहाँसे चल दें, पंखा टूट जाय, बिजली जल जाय तो अपने कोई चिन्ता नहीं होगी, फर्क क्या है ? ममता नहीं है । जिसके ममता होगी उसके चिन्ता लग जायगी, खलबली मच जायगी । खलबली मचानेके और आगे जन्म देनेके सिवाय ममतासे कोई-सा भी फायदा नहीं है और नुकसान कोई-सा भी बाकी नहीं है । यह बनिया (वैश्य) जाति बड़ी स्वार्थी होती है । यह नुकसानके तो नजदीक नहीं जाती और नफा इनको अच्छा लगता ही है । ममता छोड़नेसे नुकसान कुछ नहीं है और रखनेसे सभी नुकसान है, फायदा कोई-सा नहीं । क्योंकि पहले ये चीजें थीं नहीं और आगे ये रहेंगी नहीं । इनमें झूठी ममता कर लेते हैं तो बार-बार दुःख पाना पड़ेगा । इस बातको आप समझो और शंका हो तो अभी पूछो !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे