(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
शंका−जापान,
इजरायल,
ब्रिटेन आदि
राष्ट्रोंकी
जनसंख्या
बहुत कम है,
फिर भी वे
बहुत उन्नत
हैं और भारतकी
जनसंख्या
अधिक है, फिर
भी यह
बेरोजगारी,
गरीबी आदिके
कारण पिछड़ा
हुआ है । अतः
भारतके
उत्थानके
किये
जनसंख्याकी
वृद्धिकी
आवश्यकता
नहीं है,
प्रत्युत जनसंख्याको
कम करनेकी
आवश्यकता है ।
कारण कि एक
सिंह कई
बकरियोंसे
श्रेष्ठ
होता है !
समाधान−मैं न तो जनसंख्या
बढ़ानेका
पक्षपाती
हूँ और न
जनसंख्या
घटानेका ही
पक्षपाती
हूँ,
प्रत्युत
जनताका हित
कैसे हो−इसका
पक्षपाती
हूँ । जनसंख्याको
बढ़ानेकी
इच्छा करना
भी मूर्खता
है और घटानेकी
इच्छा करना
भी
महामूर्खता
है, क्योंकि
यह काम
मनुष्यका
नहीं है,
प्रत्युत
ईश्वर अथवा प्रकृतिका
है । जनसंख्याका
बढ़ना देशके
लिये घातक
नहीं है,
प्रत्युत संतति-निरोधके
कृत्रिम उपायोंसे
उसको कम
करनेकी
चेष्टा करना
महान् घातक
है । कारण
कि इन
उपायोंके
प्रचार-प्रसारसे
समाजमें प्रत्यक्ष
रूपसे
व्यभिचार,
भोगपरायणता
आदि दोषोंकी
वृद्धि हो
रही है और
चरित्र, शील,
संयम, लज्जा आदि
गुणोंका
ह्रास हो रहा
है । जब
लोगोंमें
चरित्र, शील
आदि नहीं
रहेंगे, तो फिर
देश बलवान्
कैसे होगा ?
अँग्रेजोंकी
एक कहावत
प्रसिद्ध है−
धन गया तो
कुछ नहीं गया,
स्वास्थ्य
गया तो कुछ
गया,
चरित्र
गया तो सब कुछ
गया !
जापान
आदि
देशोंमें जो
उन्नति
देखनेमें आ
रही है, वह
जनसंख्याके
कारण नहीं है,
प्रत्युत
वहाँके
लोगोंकी
कर्तव्यपरायणता,
ईमानदारी,
परिश्रम,
देशभक्ति
आदि गुणोंके
कारण है ।
हमारे देशके
पिछड़ेपन
(बेरोजगारी
गरीबी) का कारण
जनसंख्याकी
वृद्धि नहीं
है, प्रत्युत
अकर्मण्यता,
चरित्रहीनता,
आलस्य,
प्रमाद,
भ्रष्टाचार
आदिकी
वृद्धि है । परन्तु
यहाँ
कर्मण्यता, सच्चरित्रता,
संयम, त्याग
आदिकी तरफ
ध्यान न देकर जनसंख्याको
कम करनेके
उपायोंकी
तरफ ही ध्यान
दिया जा रहा
है, जो कि इन
दुर्गुणोंको
बढ़ानेवाले
हैं । यह
देशके लिये
बहुत घातक है !
उदाहरणके लिये−सिनेमा,
वीडियो, पत्र−पत्रिकाओं
आदिके
द्वारा
लोगोंका
चरित्र, शील
भ्रष्ट किया
जा रहा है,
उनको
व्यभिचार,
हिंसा, चोरी
आदिकी
शिक्षा दी जा
रही है । जगह-जगह
शराबकी
दूकानें खोलकर,
पान-मसाला
आदि
वस्तुओंका
प्रचार करके लोगोंको
व्यसनी
बनाया जा रहा
है और उनका
स्वास्थ्य नष्ट
किया जा रहा
है । विभिन्न
रीतियोंसे
लोगोंको काम
कम करनेकी
तथा खर्चा
अधिक करनेकी,
ऐश-आराम
करनेकी
प्रेरणा की
जा रही है;
जैसे−सप्ताहमें
पाँच दिन काम
करो, अमुक समय
दूकानें मत
खोलो, आदि । कर्मचारी
काम कम करें
या न करें, पर
उनको वेतन पूरा
दिया जाता
हैं, फिर वे
काम अधिक
करनेका परिश्रम
क्यों करें ?
वे ताश खेलने,
चाय तथा
बीड़ी-सिगरेट
पीने आदि व्यर्थके
कार्योंमें
अपना समय
बरबाद करते हैं
। सरकारी
कार्यालयोंमें
प्रायः
घूसके बिना कोई
कार्य सिद्ध
नहीं होता ।
प्रत्येक
क्षेत्रमें
भ्रष्टाचार
व्याप्त हो
रहा है । जो
रक्षक हैं, वे
भक्षक बन रहे
हैं । जिसको
जिस पदके
अनुसार काम
करना आता ही
नहीं, उसकी
नियुक्ति उस
पदपर केवल
जातिके
आधारपर कर दी
जाती है । जो
योग्य
व्यक्ति हैं,
उनको नौकरी
नहीं मिलती ।
स्कूलोंमें
बालकोंकी
भरतीके लिये
हजारों
रुपयोंकी
घूस ली जाती
है और उसको ‘डोनेशन’ (दान) कहा जाता
है !
अध्यापकलोग स्कूलमें
बालकोंको
ठीक ढंगसे
नहीं पढ़ाते
और ट्यूशन
लगानेके लिये
प्रेरणा
करते हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी
वर्तमान दशा
और उसका
परिणाम’
पुस्तकसे
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