।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.–२०७०, शनिवार
देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम
 
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
     शंका−जापान, इजरायल, ब्रिटेन आदि राष्ट्रोंकी जनसंख्या बहुत कम है, फिर भी वे बहुत उन्नत हैं और भारतकी जनसंख्या अधिक है, फिर भी यह बेरोजगारी, गरीबी आदिके कारण पिछड़ा हुआ है । अतः भारतके उत्थानके किये जनसंख्याकी वृद्धिकी आवश्यकता नहीं है, प्रत्युत जनसंख्याको कम करनेकी आवश्यकता है । कारण कि एक सिंह कई बकरियोंसे श्रेष्ठ होता है !
 
         समाधान−मैं न तो जनसंख्या बढ़ानेका पक्षपाती हूँ और न जनसंख्या घटानेका ही पक्षपाती हूँ, प्रत्युत जनताका हित कैसे हो−इसका पक्षपाती हूँ । जनसंख्याको बढ़ानेकी इच्छा करना भी मूर्खता है और घटानेकी इच्छा करना भी महामूर्खता है, क्योंकि यह काम मनुष्यका नहीं है, प्रत्युत ईश्वर अथवा प्रकृतिका है । जनसंख्याका बढ़ना देशके लिये घातक नहीं है, प्रत्युत संतति-निरोधके कृत्रिम उपायोंसे उसको कम करनेकी चेष्टा करना महान् घातक है । कारण कि इन उपायोंके प्रचार-प्रसारसे समाजमें प्रत्यक्ष रूपसे व्यभिचार, भोगपरायणता आदि दोषोंकी वृद्धि हो रही है और चरित्र, शील, संयम, लज्जा आदि गुणोंका ह्रास हो रहा है । जब लोगोंमें चरित्र, शील आदि नहीं रहेंगे, तो फिर देश बलवान् कैसे होगा ? अँग्रेजोंकी एक कहावत प्रसिद्ध है−
धन गया तो कुछ नहीं गया,
स्वास्थ्य गया तो कुछ गया,
चरित्र गया तो सब कुछ गया !
 
         जापान आदि देशोंमें जो उन्नति देखनेमें आ रही है, वह जनसंख्याके कारण नहीं है, प्रत्युत वहाँके लोगोंकी कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी, परिश्रम, देशभक्ति आदि गुणोंके कारण है । हमारे देशके पिछड़ेपन (बेरोजगारी गरीबी) का कारण जनसंख्याकी वृद्धि नहीं है, प्रत्युत अकर्मण्यता, चरित्रहीनता, आलस्य, प्रमाद, भ्रष्टाचार आदिकी वृद्धि है । परन्तु यहाँ कर्मण्यता, सच्‍चरित्रता, संयम, त्याग आदिकी तरफ ध्यान न देकर जनसंख्याको कम करनेके उपायोंकी तरफ ही ध्यान दिया जा रहा है, जो कि इन दुर्गुणोंको बढ़ानेवाले हैं । यह देशके लिये बहुत घातक है ! उदाहरणके लिये−सिनेमा, वीडियो, पत्र−पत्रिकाओं आदिके द्वारा लोगोंका चरित्र, शील भ्रष्ट किया जा रहा है, उनको व्यभिचार, हिंसा, चोरी आदिकी शिक्षा दी जा रही है । जगह-जगह शराबकी दूकानें खोलकर, पान-मसाला आदि वस्तुओंका प्रचार करके लोगोंको व्यसनी बनाया जा रहा है और उनका स्वास्थ्य नष्ट किया जा रहा है । विभिन्न रीतियोंसे लोगोंको काम कम करनेकी तथा खर्चा अधिक करनेकी, ऐश-आराम करनेकी प्रेरणा की जा रही है; जैसे−सप्ताहमें पाँच दिन काम करो, अमुक समय दूकानें मत खोलो, आदि । कर्मचारी काम कम करें या न करें, पर उनको वेतन पूरा दिया जाता हैं, फिर वे काम अधिक करनेका परिश्रम क्यों करें ? वे ताश खेलने, चाय तथा बीड़ी-सिगरेट पीने आदि व्यर्थके कार्योंमें अपना समय बरबाद करते हैं । सरकारी कार्यालयोंमें प्रायः घूसके बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं होता । प्रत्येक क्षेत्रमें भ्रष्टाचार व्याप्त हो रहा है । जो रक्षक हैं, वे भक्षक बन रहे हैं । जिसको जिस पदके अनुसार काम करना आता ही नहीं, उसकी नियुक्ति उस पदपर केवल जातिके आधारपर कर दी जाती है । जो योग्य व्यक्ति हैं, उनको नौकरी नहीं मिलती । स्कूलोंमें बालकोंकी भरतीके लिये हजारों रुपयोंकी घूस ली जाती है और उसको ‘डोनेशन’ (दान) कहा जाता है ! अध्यापकलोग स्कूलमें बालकोंको ठीक ढंगसे नहीं पढ़ाते और ट्यूशन लगानेके लिये प्रेरणा करते हैं ।
 
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम’ पुस्तकसे