।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल नवमी, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
स्वतन्त्रतादिवस
देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम
 
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
           आजकल स्त्रियोंको पुरुषके समान अधिकार देनेकी बात कही जाती है, पर शास्त्रोंने माताके रूपमें स्त्रीको पुरुषकी अपेक्षा विशेष अधिकार दिया है—
सहस्रं तु पितृन्माता गौरवेणातिरिच्यते ॥
                                              (मनुस्मृति २/१४५)
          ‘माताका दर्जा पितासे हजार गुना अधिक माना गया है ।’
सर्ववन्द्येन यतिना प्रसूर्वन्द्या प्रयत्नतः ॥
                                                         (स्कन्दपुराण काशी ११/५०)
          ‘सबके द्वारा वन्दनीय संन्यासीको भी माताकी प्रयत्नपूर्वक वन्दना करनी चाहिये ।’
 
         वर्तमानमें गर्भ-परिक्षण किया जाता है और गर्भमें कन्या हो तो गर्भ गिरा दिया जाता है, क्या यह स्त्रीको समान अधिकार दिया जा रहा है ?
 
       ‘माँ’ शब्द कहनेसे जो भाव पैदा होता है, वैसा भाव ‘स्त्री’ कहनेसे नहीं पैदा होता । इसलिए श्रीशंकराचार्यजी महाराज भगवान्‌ श्रीकृष्णको भी ‘माँ’ कहकर पुकारते हैं—‘मातः कृष्णाभिधाने’ (प्रबोध२४४) । उपनिषदोंमें ‘मातृदेवो भव, पितृदेवो भव’ कहकर सबसे पहले माँकी सेवा करनेकी आज्ञा दी गयी है । ‘वन्दे मातरम्’ में भी माँकी ही वन्दना की गयी है । हिन्दुधर्ममें मातृशक्तिकी उपासनाका विशेष महत्त्व है । ईश्वरकोटिके पाँच देवातओंमें भी मातृशक्ति (भगवती) का स्थान है । देवीभागवत, दुर्गासप्तशती आदि अनेक ग्रन्थ मातृशक्तिपर ही रचे गये हैं । जगत्‌की सम्पूर्ण स्त्रियोंको मातृशक्तिका ही रूप माना गया है—
                                             विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
                                             स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
                                                                        (दुर्गासप्तशती ११/६)
 
         परंतु भोगीलोग मातृशक्तिको क्या समझें ? समझ ही नहीं सकते । वे तो उसको भोग्या ही समझते हैं ।
 
        शास्त्रोंमें स्त्रियोंको पुनर्विवाह न करके विधवा-धर्मका पालन करनेके लिये कहा है तो यह उनका आदर है, तिरस्कार नहीं । धर्म-पालनके लिये कष्ट सहना तिरस्कार नहीं है, प्रत्युत तितिक्षा, तपस्या है । तितिक्षु, तपस्वी व्यक्तिका समाजमें बड़ा आदर होता है । पुरुष स्त्रीका तिरस्कार करे, उसको दुःख दे, उसको तलाक दे, उसको मारे-पिटे—ऐसा शास्त्रोंमें कहीं नहीं कहा गया है । इतना ही नहीं, स्त्रीसे कोई अपराध भी हो जाय, तो भी उसको मारने-पीटनेका विधान नहीं है, प्रत्युत वह क्षम्य है ।
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम’ पुस्तकसे