।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल एकादशी, वि.सं.–२०७०, शनिवार
पुत्रदा एकादशी-व्रत (सबका)
देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम
 
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
       संसारके हितके लिये मातृशक्तिने बहुत काम किया है । रक्तबीज आदि राक्षसोंका संहार भी मातृशक्तिने ही किया है । मातृशक्तिने ही हमारी हिन्दू-संस्कृतिकी रक्षा की है । आज भी प्रत्यक्ष देखनेमें आता है कि हमारे व्रत-त्योहार, रीति-रिवाज, माता-पिताके श्राद्ध आदिकी जानकारी जितनी स्त्रियोंको रहती है, उतनी पुरुषोंको नहीं रहती । पुरुष अपने कुलकी बात भी भूल जाते हैं, पर स्त्रियाँ दूसरे कुलकी होनेपर भी उनको बताती हैं कि अमुक दिन आपकी माता या पिताका श्राद्ध है आदि । मन्दिरोंमें, कथा-कीर्तनमें, सत्संगमें जितनी स्त्रियाँ जाती हैं, उतने पुरुष नहीं जाते । कार्तिक-स्नान, व्रत, दान, पूजन, रामायण आदिका पाठ जितना स्त्रियाँ करती हैं, उतना पुरुष नहीं करते । तात्पर्य है कि स्त्रियाँ हमारी संस्कृतिकी रक्षा करनेवाली हैं । अगर उनका चरित्र नष्ट हो जायगा तो संस्कृतिकी रक्षा कैसे होगी ? एक श्लोक आता है—
असंतुष्टा  द्विजा  नष्टाः   संतुष्टाश्च  महिभुजः ।
सलज्जा गणिका नष्टा निर्लज्जाश्च कुलांगनाः ॥
                                                         (चाणक्यनीति ८/१८)
           ‘संतोषहीन ब्राह्मण नष्ट हो जाता है, संतोषी राजा नष्ट हो जाता है, लज्जावती वेश्या नष्ट हो जाती है और लज्जाहीना कुलवधू नष्ट हो जाती है अर्थात् उसका पतन हो जाता है ।’
 
       वर्तमानमें संतति-निरोधके कृत्रिम उपायोंके प्रचार-प्रसारसे स्त्रियोंमें लज्जा, शील, सतीत्व, सच्‍चरित्रता, सदाचरण आदिका नाश हो रहा है । परिणामस्वरूप स्त्री-जाति केवल भोग्य वस्तु बनती जा रही है । यदि स्त्री-जातिका चरित्र भ्रष्ट हो जायगा तो देशकी क्या दशा होगी ? आगे आनेवाली पीढ़ी अपने प्रथम गुरु माँसे क्या शिक्षा लेगी ? स्त्री बिगड़ेगी तो उससे पैदा होनेवाले बेटी-बेटा (स्त्री-पुरुष) दोनों बिगडेंगे । अगर स्त्री ठीक रहेगी तो पुरुषके बिगड़नेपर भी सन्तान नहीं बिगड़ेगी । अतः स्त्रियोंके चरित्र, शील, लज्जा आदिकी रक्षा करना और उनको अपमानित, तिरस्कृत न होने देना मनुष्यमात्रका कर्तव्य है ।
धर्मका तिरस्कार
 
         धर्मके बिना नीति विधवा है और नीतिके बिना धर्म विधुर है । अतः धर्म और राजनीति दोनों साथ-साथ होने चाहिये, तभी शासन बढ़िया होता है । परन्तु आज धर्मका तिरस्कार हो रहा है । इस कारण देशमें तीन पाप तेजीसे बढ़ रहे हैं−व्यभिचार, हिंसा और चोरी । इन तीनोंके बढ़नेसे देशका भयंकर पतन हो रहा है !
 
(१) व्यभिचारकी वृद्धि−संतति-निरोधके कृत्रिम उपायोंके प्रचार-प्रसारसे महान् व्यभिचार बढ़ रहा है और कुँआरे लड़के, कुँआरी लड़कियाँ और विधवाएँ−सबका भयंकर पतन हो रहा है । कुँआरी लड़कियाँ और विधवाएँ भी गर्भवती हो रही हैं; क्योंकि उनको गर्भ रोकने अथवा गिरानेकी छूट मिल गयी ! लोगोंमें सच्‍चरित्रता, सदाचार, शील, लज्जा आदिका महान् ह्रास हो रहा है ।
 
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम’ पुस्तकसे