।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल द्वादशी, वि.सं.–२०७०, रविवार
देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम
 
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
           जिस गतिसे संतति-निरोधके उपायोंका प्रसार हो रहा है, ऐसे होता रहा तो समाजमें बहुत अधिक व्यभिचार फैल जायगा । जिस पुरुषने नसबंदी करवा ली, उसके लिये कोई परस्त्री (विवाहिता, अविवाहिता, विधवा) बाकी नहीं रहेगी और जिस स्त्रीने ऑपरेशन करवा लिया, उसके लिये कोई परपुरुष बाकी नहीं रहेगा । न कोई मर्यादा रहेगी, न कोई भय रहेगा । अभी पुराने धार्मिक संस्कारोंके प्रवाहके कारण उतना पतन देखनेमें नहीं आ रहा है, पर यह प्रवाह कबतक रहेगा ? ठेलेको धक्‍का देनेसे वह कुछ दूरतक अपने-आप चलता रहता है, फिर रुक जाता है । इसी तरह जब धार्मिक संस्करोंका प्रवाह रुक जायगा, तब स्त्रियों और पुरुषोंमें कोई मर्यादा नहीं रहेगी । माँका पता है, पर बापका पता ही नहीं—ऐसी दशा तो विदेशोंमें अभी सुननेमें आ ही रही है ! व्यभिचार फैलनेसे देशकी क्या दशा होगी, कितना अनर्थ होगा—इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता । परिणाम यह होगा कि पशु और मनुष्यमें कोई फर्क नहीं रहेगा । जैसे कुत्ता, गधा, सूअर, ऊँट, चूहा, बिल्ली आदि हैं, ऐसे ही मनुष्य भी हो जायँगे । जैसे कुत्ते, गधे आदिको हम कोई अच्छी बात समझाना चाहें तो नहीं समझा सकते, ऐसे ही उन मनुष्यरूपी पशुओंको भी कोई अच्छी बात नहीं समझा सकेंगे ।
 
          संतति-निरोधके मूलमें केवल सुखभोगकी इच्छा विद्यमान है । अपनी संतान इसलिये नहीं सुहाती कि वह हमारे सुखभोगमें बाधक है । ऐसी स्थितिमें अपने माँ-बाप, भाई-बहन कैसे सुहायेंगे ? जब चोर चोरी करने जाता है, तब उसको दूसरा कोई आदमी नहीं सुहाता । व्यभिचारीको कोई स्त्री मिलती है, तब वह भी यही चाहता है कि पासमें दूसरा कोई आदमी न रहे* । इसी तरह जब मनुष्योंमें सुखभोगकी इच्छा बढ़ जायगी, तब उनको दूसरा कोई आदमी सुहायेगा ही नहीं, इतना ही नहीं, उनको त्यागी साधु-सन्त भी नहीं सुहायेंगे, अच्छी शिक्षा देनेवाले और संयम, मर्यादा, धर्मकी बात कहनेवाले भी नहीं सुहायेंगे; क्योंकि वे सुखभोगसे, व्यभिचारसे रोकते हैं । अपने सुखभोगमें बाधक समझकर भोगीलोग उनको भी मारने लगेंगे । गलती मत मिटाओ, गलती बतानेवालेको मिटाओ—यह प्रस्ताव पारित किये जायँगे ! जैसे, बच्‍चोंकी सभा हो तो ये प्रस्ताव पारित करेंगे कि सब स्कूलोंको बंद करो, ये एक तरहसे जेलखाना हैं । कारण कि पढ़ाईमें परतन्त्रता होती है, स्वतन्त्रतामें बड़ी बाधा लगती है !
 
         (२) हिंसाकी वृध्धि—देशमें हिंसा बहुत बढ़ रही है । प्राप्त समाचारोंके अनुसार इस समय देशमें तीन हजार छः सौ कसाईखाने हैं । इनमें दस बड़े यान्त्रिक (मशीनी) कसाईखाने हैं । इन कसाईखानोंमें लगभग ढाई लाख पशु प्रतिदिन कटते हैं । इन पशुओंमें लगभग पचास हजार गायें प्रतिदिन कटती हैं । प्रतिवर्ष हजारों टन मांस निर्यात होता है । इसके सिवाय विभिन्न क्षेत्रोंमें हिंसा बढ़ रही है । मनुष्योंकी हत्याओंमें वृद्धि हो रही है । खेतोंमें जहरीली दवाएँ छिड़की जाती हैं, जिससे अनुपयोगी समझे जानेवाले जीवोंके साथ-साथ उपयोगी जीव भी मर जाते हैं । वास्तवमें भगवान्‌की सृष्टिमें कोई जीव अनुपयोगी है ही नहीं । परन्तु लोभसे अन्धे हुए मनुष्यको दूसरे जीवकी उपयोगिता दिखाई देती ही नहीं !
 
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम’ पुस्तकसे
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* सुवरण को ढूंढ़त फिरत, कवि व्यभिचारी चोर ।
   चरण धरत धड़कत हियो, नेक न भावत शोर ॥
 
        यह जानकारी पुस्तक प्रकाशित हुई तबके है, वर्तमानमें कितना पशुओंका वध होता होगा ?