।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल पंचमी, वि.सं.–२०७०, रविवार
नागपंचमी
देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम
 
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
       देशी बाजरीके एक पौधेमें सौ-डेढ़ सौ सिट्टीयाँ निकलती हैं । मैंने एक पौधेमें लगभग तीन सौ सिट्टीयाँतक निकलनेकी बात सुनी है । परन्तु सरकार किसानोंको देशी बाजरीका बीज न देकर विदेशी बाजरीका बीज देती है, जिसके पौधेमें केवल एक ही सिट्टा निकलता है ! यह कैसी बुद्धि है−समझमें नहीं आता !
 
        राज्य वही अच्छा होता है, जिसमें प्रजाके पास खूब धन-धान्य हो और जिसमें कोई वैरी न हो−‘अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं राज्यम्’ (गीता २/८) । परन्तु आज अलग-अलग समुदायोंमें एक−दूसरेके व्यक्तियोंका तथा उनकी सम्पत्तिका नाश करते हैं । परिणामस्वरूप देशकी जनता और सम्पत्तिका नाश होता है । जिस देशकी जनता और सम्पत्तिका नाश होता हो, वह देश सुखी और समृद्ध, धनी कैसे हो सकता है ? उस देशमें सुख-शान्ति कैसे पनप सकते हैं ?
 
      −इस प्रकार अनेक ऐसे कारण हैं, जिनसे देशकी व्यवस्था बिगड़ रही है । ऐसी स्थितिमें क्या जनसंख्या कम करनेसे बेरोजगारी, गरीबी दूर हो जायगी ? दूर नहीं होगी, उलटे देश निर्बल और पराधीन हो जायगा ।
 
         जनसंख्या कम होनेसे सिंहकी तरह बलवान् नहीं हो जायँगे । सिंहमें तो ब्रह्मचर्यकी शक्ति है, पर संतति-निरोधके उपायोंसे ब्रह्मचर्यका नाश हो रहा है; क्योंकि कृत्रिम संतति-निरोधके पीछे मूल भाव यही है कि भोग तो भोगें, ब्रह्मचर्यका नाश तो करें, पर संतान पैदा न हो ! अगर संतति-निरोध करना ही हो तो ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहिये ।
 
          यद्यपि जनसंख्या बढ़ाना मेरा उद्देश्य नहीं है, तथापि अगर कोई ऐसा मान ले कि मैं जनसंख्या बढ़ानेकी बात कहता हूँ तो भी यह अनुचित नहीं है; क्योंकि शास्त्रोंमें (ब्रह्माजीकी) जनसंख्या बढ़ानेकी आज्ञा तो आती है, पर घटानेकी आज्ञा कही नहीं आती ! दूसरी बात, आजकल वोटका जमाना है । सिंह भले ही बकरियोंसे श्रेष्ठ तथा बलवान् हो, पर वोट डाले जायँ तो संख्या कम होनेसे सिंह हार जायगा और बकरियोंका राज्य हो जायगा !
 
       संतति-निरोधके कृत्रिम उपायोंके प्रचारसे स्त्री और पुरुष−दोनों इतने क्रूर, निर्दय, हिंसक हो गये हैं कि गर्भमें स्थित अपनी संततिकी भी हत्या (भ्रूणहत्या या गर्भपात) करनेमें हिचकते नहीं, जो कि ब्रह्महत्यासे भी दुगुना पाप है ! अपने गर्भको नष्ट करनेवाली स्त्री सर्पिणीकी तरह है, जो अपनी सन्तानको भी खा जाती है । गाय बहुत सौम्य होती है, पर वह भी किसीको अपने बछड़ेके पास नहीं आने देती । भेड़-बकरियोंका पालन करनेवाले बताते हैं कि किसी-किसी बच्‍चेको भेड़ त्याग देती है, पर यदि कोई कुत्ता उस त्यक्त बच्‍चेपर छोड़ा जाय तो भेड़ उस बच्‍चेको अपना लेती है और उसकी रक्षा करती है । परन्तु आजकलकी स्त्रियाँ गायकी तरह होना तो दूर रहा, सर्वथा मूर्ख (जड) कहलानेवाली भेड़की तरह भी नहीं रहीं और महान् जहरीली सर्पिणीकी तरह हो रही हैं ! कहाँ तो कहा गया है कि माँके समान शरीरका पालन-पोषण करनेवाला दूसरा कोई नहीं है−‘मात्रा समं नास्ति शरीरपोषणम्’ और कहाँ आजकलकी स्त्रियोंको अपनी सन्तानका पालन-पोषण कष्टप्रद लग रहा है ! यह कितने नैतिक पतनकी बात है !
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम’ पुस्तकसे