(गत ब्लॉगसे
आगेका)
देशी बाजरीके
एक पौधेमें सौ-डेढ़
सौ सिट्टीयाँ
निकलती हैं । मैंने
एक पौधेमें लगभग
तीन सौ सिट्टीयाँतक
निकलनेकी बात
सुनी है । परन्तु
सरकार किसानोंको
देशी बाजरीका
बीज न देकर विदेशी
बाजरीका बीज देती
है, जिसके पौधेमें
केवल एक ही सिट्टा
निकलता है ! यह कैसी
बुद्धि है−समझमें
नहीं आता !
राज्य वही
अच्छा होता है,
जिसमें प्रजाके
पास खूब धन-धान्य
हो और जिसमें कोई
वैरी न हो−‘अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं
राज्यम्’ (गीता
२/८) । परन्तु आज
अलग-अलग समुदायोंमें
एक−दूसरेके व्यक्तियोंका
तथा उनकी सम्पत्तिका
नाश करते हैं ।
परिणामस्वरूप
देशकी जनता और
सम्पत्तिका नाश
होता है । जिस देशकी
जनता और सम्पत्तिका
नाश होता हो, वह
देश सुखी और समृद्ध,
धनी कैसे हो सकता
है ? उस देशमें सुख-शान्ति
कैसे पनप सकते
हैं ?
−इस प्रकार
अनेक ऐसे कारण
हैं, जिनसे देशकी
व्यवस्था बिगड़
रही है । ऐसी स्थितिमें
क्या जनसंख्या
कम करनेसे बेरोजगारी,
गरीबी दूर हो जायगी
? दूर नहीं होगी,
उलटे देश निर्बल
और पराधीन हो जायगा
।
जनसंख्या
कम होनेसे सिंहकी
तरह बलवान् नहीं
हो जायँगे । सिंहमें
तो ब्रह्मचर्यकी
शक्ति है, पर संतति-निरोधके
उपायोंसे ब्रह्मचर्यका
नाश हो रहा है; क्योंकि
कृत्रिम संतति-निरोधके
पीछे मूल भाव यही
है कि भोग तो भोगें,
ब्रह्मचर्यका
नाश तो करें, पर
संतान पैदा न हो
! अगर संतति-निरोध
करना ही हो तो ब्रह्मचर्यका
पालन करना चाहिये
।
यद्यपि
जनसंख्या बढ़ाना
मेरा उद्देश्य
नहीं है, तथापि
अगर कोई ऐसा मान
ले कि मैं जनसंख्या
बढ़ानेकी बात कहता
हूँ तो भी यह अनुचित
नहीं है; क्योंकि
शास्त्रोंमें
(ब्रह्माजीकी)
जनसंख्या बढ़ानेकी
आज्ञा तो आती है,
पर घटानेकी आज्ञा
कही नहीं आती ! दूसरी
बात, आजकल वोटका
जमाना है । सिंह
भले ही बकरियोंसे
श्रेष्ठ तथा बलवान्
हो, पर वोट डाले
जायँ तो संख्या
कम होनेसे सिंह
हार जायगा और बकरियोंका
राज्य हो जायगा
!
संतति-निरोधके
कृत्रिम उपायोंके
प्रचारसे स्त्री
और पुरुष−दोनों
इतने क्रूर, निर्दय,
हिंसक हो गये हैं
कि गर्भमें स्थित
अपनी संततिकी
भी हत्या (भ्रूणहत्या
या गर्भपात) करनेमें
हिचकते नहीं, जो
कि ब्रह्महत्यासे
भी दुगुना पाप
है ! अपने गर्भको
नष्ट करनेवाली
स्त्री सर्पिणीकी
तरह है, जो अपनी
सन्तानको भी खा
जाती है । गाय
बहुत सौम्य होती
है, पर वह
भी किसीको अपने
बछड़ेके पास नहीं
आने देती । भेड़-बकरियोंका
पालन करनेवाले
बताते हैं कि किसी-किसी
बच्चेको भेड़ त्याग
देती है, पर यदि
कोई कुत्ता उस
त्यक्त बच्चेपर छोड़ा जाय
तो भेड़ उस बच्चेको अपना लेती
है और उसकी रक्षा
करती है । परन्तु
आजकलकी स्त्रियाँ
गायकी तरह होना
तो दूर रहा, सर्वथा
मूर्ख (जड) कहलानेवाली
भेड़की तरह भी नहीं
रहीं और महान्
जहरीली सर्पिणीकी
तरह हो रही हैं
! कहाँ तो कहा गया
है कि माँके समान
शरीरका पालन-पोषण
करनेवाला दूसरा
कोई नहीं है−‘मात्रा समं
नास्ति शरीरपोषणम्’ और कहाँ आजकलकी
स्त्रियोंको
अपनी सन्तानका
पालन-पोषण कष्टप्रद
लग रहा है ! यह कितने
नैतिक पतनकी बात
है !
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
−‘देशकी
वर्तमान दशा और
उसका परिणाम’ पुस्तकसे
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