(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
ऐसे भोगी
व्यक्ति ही
नसबंदी, गर्भपात
आदि महापाप
करते हैं ।
विवाह
वंशवृद्धिके
लिये किया
जाता है । यदि कन्या
सद्गुणी-सदाचारी
होगी तो
विवाहके बाद
उसकी सन्तान
भी
सद्गुणी-सदाचारी
होगी; क्योंकि
प्रायः
माँका ही
स्वाभाव
सन्तानमें आता
है । एक
मारवाड़ी
कहावत है—‘नर
नानाणे जाये
है’ अर्थात्
मनुष्यका
स्वभाव उसके
ननिहालपर
जाता है । ‘माँ
पर पूत, पिता
पर घोड़ा ।
बहुत नहीं तो
थोड़ा थोड़ा ।’
कन्याका
दान देनेमें
भी उसका आदर
है, तिरस्कार
नहीं । यह
दूसरे दानकी
तरह नहीं है ।
दूसरे
दानमें तो
दान दी हुई
वस्तुपर
दाताका अधिकार
नहीं रहता, पर
कन्यासे
सन्तान पैदा
होनेके बाद
माता-पिताका
कन्यापर
अधिकार हो
जाता है और वे
आवश्यकता
पड़नेपर उसके
घरका अन्न-जल
ले सकते हैं ।
कारण कि
कन्याके
पतिने केवल
पितृऋणसे
मुक्त
होनेके लिये
ही कन्या
स्वीकार की
है और उससे
सन्तान पैदा
होनेपर वह
पितृऋणसे
मुक्त हो
जाता है । इसलिये
गोत्र दूसरा
होनेपर भी
दोहित्र
अपने नाना-नानीका
श्राद्ध-तर्पण
करता है, जो कि
लोकमें और शास्त्रमें
प्रसिद्ध है ।
हमारे
शास्त्रोंमें
नारी-जातिको
बहुत आदर दिया
गया है । स्त्रीकी
रक्षा
करनेके
उद्देश्यसे
शास्त्रने
उसको पिता,
पति अथवा
पुत्रके
आश्रित रहनेकी
आज्ञा दी है,
जिससे वह
जगह-जगह
ठोकरें न खाती
फिरे, वेश्या
न बन जाय । स्त्री
नौकरी करे तो
यह उसका
तिरस्कार है । उसकी महिमा
तो घरमें
रहनेसे ही है ।
घरमें वह
महारानी है,
पर घरसे बाहर
वह नौकरानी
है । घरमें तो
वह एक
पुरुषके
अधीन रहेगी,
पर बाहर
उसको अनेक
स्त्री-पुरुषोंके
अधीन रहना पड़ेगा,
अपनेसे ऊँचे
पदवाले
अफसरोंकी
अधीनता, फटकार,
तिरस्कार
सहन करना
पड़ेगा, जो कि
उसके कोमल हृदय,
स्वभावके
विरुद्ध है ।
वह आदरके
योग्य है,
तिरस्कारके
योग्य नहीं ।
पिता, पति
अथवा
पुत्रकी
अधीनता
वास्तवमें
स्त्रीको
पराधीन
बनानेके
लिये नहीं है, प्रत्युत
महान्
स्वाधीन
बनानेके लिये
है । घरमें
बूढी ‘माँ’ का सबसे
अधिक आदर
होता है,
बेटे-पोते
आदि सब उसका आदर
करते हैं, पर
घरसे बाहर
बूढी ‘स्त्री’
का सब जगह
तिरस्कार
होता है ।
स्त्री
बाहरका काम
ठीक नहीं कर
सकती और
पुरुष घरका
काम ठीक नहीं
कर सकता । स्त्री
नौकरी करती
है तो वहाँ भी
वह स्वेटरें
बुनती है−घरका
काम करती है ! पुरुष
शेखी बघारते
हैं कि
स्त्रियाँ
घरमें क्या
काम करती हैं,
काम तो हम
करते हैं,
पैसा हम कमाते
हैं ! अगर
पुरुष घरमें
एक दिन भी
रसोइका काम
करे और बच्चेको
गोदीमें रखे
तो पता लग
जायगा कि
स्त्रियाँ क्या
काम करती हैं ! अगर
स्त्री मर
जाय तो बच्चोंको सास,
नानी या
बहन-बूआके
पास भेज देते
हैं; क्योंकि
पुरुष उनका
पालन नहीं कर
सकते ।
परन्तु पति
मर जाय तो
स्त्री कष्ट
सहकर भी बच्चोंका
पालन कर लेती
है, उनको
पढ़ा-लिखाकर
योग्य बना
देती है ।
कारण कि स्त्री
मातृशक्ति
है, उसमें
पालन करनेकी
योग्यता है । मैंने
छोटे
लड़के-लड़कियोंको
देखा है । लड़कीको कोई
चीज मिल जाय
तो वह उसको
जेबमें रख लेती
है कि अपने
छोटे
बहन-भाइयोंको
दूँगी, पर
लड़केको कोई
चीज मिल जाय
तो वह खा लेता
है । कोई
साधु, दरिद्र,
भूखा आदमी
बैठा हो तो कई
पुरुष पाससे
निकल जायँगे,
उनके मनमें
खिलानेका भाव
आयेगा ही
नहीं ।
परन्तु
स्त्रियाँ
पूछ लेंगी कि
बाबाजी, कुछ खाओगे
? कारण कि
स्त्रियोंमें
दया है । उनको
बालकोंका
पालन-पोषण
करना है,
इसलिये भगवान्ने
उनको ऐसा
हृदय दिया है ।
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
−‘देशकी
वर्तमान दशा
और उसका
परिणाम’
पुस्तकसे
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