।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल अष्टमी, वि.सं.–२०७०, बुधवार
देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम
 
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
         ऐसे भोगी व्यक्ति ही नसबंदी, गर्भपात आदि महापाप करते हैं । विवाह वंशवृद्धिके लिये किया जाता है । यदि कन्या सद्गुणी-सदाचारी होगी तो विवाहके बाद उसकी सन्तान भी सद्गुणी-सदाचारी होगी; क्योंकि प्रायः माँका ही स्वाभाव सन्तानमें आता है । एक मारवाड़ी कहावत है—‘नर नानाणे जाये है’ अर्थात् मनुष्यका स्वभाव उसके ननिहालपर जाता है । ‘माँ पर पूत, पिता पर घोड़ा । बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा ।’
 
       कन्याका दान देनेमें भी उसका आदर है, तिरस्कार नहीं । यह दूसरे दानकी तरह नहीं है । दूसरे दानमें तो दान दी हुई वस्तुपर दाताका अधिकार नहीं रहता, पर कन्यासे सन्तान पैदा होनेके बाद माता-पिताका कन्यापर अधिकार हो जाता है और वे आवश्यकता पड़नेपर उसके घरका अन्न-जल ले सकते हैं । कारण कि कन्याके पतिने केवल पितृऋणसे मुक्त होनेके लिये ही कन्या स्वीकार की है और उससे सन्तान पैदा होनेपर वह पितृऋणसे मुक्त हो जाता है । इसलिये गोत्र दूसरा होनेपर भी दोहित्र अपने नाना-नानीका श्राद्ध-तर्पण करता है, जो कि लोकमें और शास्त्रमें प्रसिद्ध है ।
 
       हमारे शास्त्रोंमें नारी-जातिको बहुत आदर दिया गया है । स्त्रीकी रक्षा करनेके उद्देश्यसे शास्त्रने उसको पिता, पति अथवा पुत्रके आश्रित रहनेकी आज्ञा दी है, जिससे वह जगह-जगह ठोकरें न खाती फिरे, वेश्या न बन जाय । स्त्री नौकरी करे तो यह उसका तिरस्कार है । उसकी महिमा तो घरमें रहनेसे ही है । घरमें वह महारानी है, पर घरसे बाहर वह नौकरानी है । घरमें तो वह एक पुरुषके अधीन रहेगी, पर बाहर उसको अनेक स्त्री-पुरुषोंके अधीन रहना पड़ेगा, अपनेसे ऊँचे पदवाले अफसरोंकी अधीनता, फटकार, तिरस्कार सहन करना पड़ेगा, जो कि उसके कोमल हृदय, स्वभावके विरुद्ध है । वह आदरके योग्य है, तिरस्कारके योग्य नहीं । पिता, पति अथवा पुत्रकी अधीनता वास्तवमें स्त्रीको पराधीन बनानेके लिये नहीं है, प्रत्युत महान् स्वाधीन बनानेके लिये है । घरमें बूढी ‘माँ’ का सबसे अधिक आदर होता है, बेटे-पोते आदि सब उसका आदर करते हैं, पर घरसे बाहर बूढी ‘स्त्री’ का सब जगह तिरस्कार होता है ।
 
        स्त्री बाहरका काम ठीक नहीं कर सकती और पुरुष घरका काम ठीक नहीं कर सकता । स्त्री नौकरी करती है तो वहाँ भी वह स्वेटरें बुनती है−घरका काम करती है ! पुरुष शेखी बघारते हैं कि स्त्रियाँ घरमें क्या काम करती हैं, काम तो हम करते हैं, पैसा हम कमाते हैं ! अगर पुरुष घरमें एक दिन भी रसोइका काम करे और बच्‍चेको गोदीमें रखे तो पता लग जायगा कि स्त्रियाँ क्या काम करती हैं ! अगर स्त्री मर जाय तो बच्‍चोंको सास, नानी या बहन-बूआके पास भेज देते हैं; क्योंकि पुरुष उनका पालन नहीं कर सकते । परन्तु पति मर जाय तो स्त्री कष्ट सहकर भी बच्‍चोंका पालन कर लेती है, उनको पढ़ा-लिखाकर योग्य बना देती है । कारण कि स्त्री मातृशक्ति है, उसमें पालन करनेकी योग्यता है । मैंने छोटे लड़के-लड़कियोंको देखा है । लड़कीको कोई चीज मिल जाय तो वह उसको जेबमें रख लेती है कि अपने छोटे बहन-भाइयोंको दूँगी, पर लड़केको कोई चीज मिल जाय तो वह खा लेता है । कोई साधु, दरिद्र, भूखा आदमी बैठा हो तो कई पुरुष पाससे निकल जायँगे, उनके मनमें खिलानेका भाव आयेगा ही नहीं । परन्तु स्त्रियाँ पूछ लेंगी कि बाबाजी, कुछ खाओगे ? कारण कि स्त्रियोंमें दया है । उनको बालकोंका पालन-पोषण करना है, इसलिये भगवान्‌ने उनको ऐसा हृदय दिया है ।
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम’ पुस्तकसे