आजकी
शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल
सप्तमी, वि.सं.–२०७०,
मंगलवार
गोस्वामी
श्रीतुलसीदास-जयन्ती
देशकी
वर्तमान दशा
और उसका
परिणाम
|
(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
मातृशक्तिका
तिरस्कार
वर्तमानमें
नारी-जातिका
महान्
तिरस्कार, घोर
अपमान किया
जा रहा है ।
नारीके
महान्
मातृभावको
नष्ट करके
उसको मात्र
भोग्या
स्त्रीका
रूप दिया जा
रहा है । भोग्या
स्त्री तो
वेश्या होती
है । जितना
आदर माता
(मातृशक्ति)
का है, उतना
आदर स्त्री
(भोग्या) का
नहीं है ।
परन्तु जो
स्त्रीको
भोग्या
मानते हैं,
स्त्रीके
गुलाम हैं, वे
भोगी पुरुष
इस बातको
क्या समझें ?
समझ ही नहीं
सकते । विवाह
माता बननेके
लिये किया
जाता है,
भोग्या बननेके
लिये नहीं ।
सन्तान पैदा
करनेके लिये
ही पिता
कन्यादान
करता है और
सन्तान पैदा
करने
(वंशवृद्धि)
के लिये ही
वरपक्ष
कन्यादान
स्वीकार
करता है ।
परन्तु आज
नारीको माँ
बननेसे रोका
जा रहा है और
उसको केवल
भोग्या
बनाया जा रहा
है । यह
नारी-जातिका
कितना महान्
तिरस्कार है !
नारी
वास्तवमें
मातृशक्ति
है । वह
स्त्री और
पुरुष−दोनोंकी
जननी है । वह
पत्नी तो
केवल
पुरुषकी ही
बनती है, पर
माँ पुरुषकी
और स्त्रीकी
भी । पुरुष
अच्छा होता
है तो उसकी
केवल अपने ही
कुलमें
महिमा होती
है, पर स्त्री
अच्छी होती
है तो उसकी
पीहर और
ससुराल−दोनों
कुलोंमें
महिमा होती
है । राजा
जनकजी
सीताजीसे
कहते हैं−‘पुत्री
पबित्र किए
कुल दोऊ’ (मानस,
अयोध्याकाण्ड
२८७/१) ।
आजकल
विवाहसे
पहले
कन्याका स्वभाव,
सहिष्णुता,
आस्तिकता,
धार्मिकता,
कार्य-कुशलता
आदि गुणोंको
न देखकर
शारीरिक
सुन्दरताको
ही देखा जाता
है । कन्याकी
परीक्षा
परिणामकी
दृष्टिसे न
करके केवल
तात्कालिक
भोगकी
दृष्टिसे की
जाती है । यह
विचार नहीं
करते ही
अच्छा स्वभाव
तो सदा साथ
रहेगा, पर
सुन्दरता
कितने दिनतक
टिकेगी* ? भोगी
व्यक्तिको
संसारकी सब
स्त्रियाँ
मिल जायँ, तो
भी वह
सन्तुष्ट
नहीं हो सकता−
यत्
पृथिव्यां
व्रीहियवं हिरण्यं
पशवः स्त्रियः
।
न
दुह्यन्ति
मनःप्रीतिं पुंसः कामहस्तस्य
ते ॥
(श्रीमद्भागवत
९/१९/१३)
‘पृथ्वीपर
जितने भी
धान्य,
स्वर्ण, पशु
और स्त्रियाँ
हैं, वे
सब-के-सब
मिलकर भी उस
पुरुषके मनको
सन्तुष्ट
नहीं कर सकते,
जो
कामनाओंके
प्रहारसे
जर्जर हो रहा
है ।’
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
−‘देशकी
वर्तमान दशा
और उसका
परिणाम’
पुस्तकसे
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*द्रौपदीके
अत्यन्त
सुन्दर
होनेके कारण
ही जयद्रथ,
कीचक और अठारह
अक्षौहिणी
सेना मारी गयी
! इसलिये कहा
गया है−
‘कर्जदार
पिता,
व्यभिचारिणी
माता, सुन्दर
पत्नी और
मूर्ख पुत्र−ये
चारों
शत्रुकी तरह
(दुःख
देनेवाले) हैं
।’
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