।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल षष्ठी, वि.सं.–२०७०, सोमवार
श्रावण सोमवार-व्रत
देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम
 
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
         शंका−विदेशोंमें प्रायः लोगोंका चरित्र गिर रहा है, वहाँ व्यभिचार, हिंसा आदि पाप भी अधिक हो रहे हैं, फिर भी वे देश उन्नत क्यों हैं ?
 
         समाधान−वह उन्नति भौतिक है । भौतिक उन्नति वास्तवमें उन्नति है ही नहीं । आध्यात्मिक उन्नति ही वास्तविक उन्नति है । जिनकी आध्यात्मिक दृष्टि नहीं है, प्रत्युत भौतिक दृष्टि है, उनको ही भौतिक उन्नति बड़ी दीखती है । विदेशोंमें भौतिक उन्नति होनेपर भी लोग भीतरसे दुःख, अशान्ति, संतापसे जल रहे हैं, जिससे वहाँ आत्महत्याएँ बढ़ रही हैं । भौतिक उन्नतिका परिणाम विनाश है । हमारे देशमें पहले राक्षसोंके पास बहुत भौतिक उन्नति थी, पर उन्होंने दूसरोंका भी नाश किया और खुद भी नष्ट हो गये । रावणने बहुत अधिक भौतिक उन्नति की थी, पर परिणाममें उसका, प्रजाका और भौतिक उन्नतिका विनाश ही हुआ । ऐसी दशा हुई कि पीछे रोनेवाला कोई नहीं रहा !
 
         महाभारत (वनपर्व, अध्याय ९७) में एक कथा आती है । महर्षि अगस्त्यकी पत्नी लोपामुद्राने एक बार सुन्दर वस्त्राभूषणोंकी इच्छा प्रकट की । धन प्राप्त करनेके लिये अगस्त्यजी क्रमशः श्रुतर्वा, ब्रघ्नश्व और त्रसदस्यु−तीन राजओंके पास गये । परन्तु तीनों ही राजाओंके यहाँ उन्होंने आय और व्ययका हिसाब बराबर देखा । इनसे कुछ भी धन लेनेसे प्राणियोंको दुःख होगा−ऐसा विचार करके अगस्त्यजीने उन राजाओंसे कुछ नहीं लिया । तब उन राजाओंने आपसमें विचार करके कहा कि इल्वल नामक राक्षस सबसे अधिक धनवान् है; अतः धन प्राप्त करनेके लिये उसीके पास जाना चाहिये । फिर वे तीनों राजा महर्षि अगस्त्यके साथ इल्वलके पास गये । वहाँसे उनको बहुत-सा धन प्राप्त हुआ । तात्पर्य है कि आवश्यकतासे अधिक धन यक्ष-राक्षसोंके पास ही होता था, राजाओंके पास नहीं । इसलिये जो केवल धनका संग्रह तथा उसकी रक्षा करता है, वह यक्षवित्त कहलाता है । यक्षवित्तका पतन होता है−‘यक्षवित्तः पतत्यधः’ (श्रीमद्भागवत ११/२३/२४) ।
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम’ पुस्तकसे