।। श्रीहरिः ।।


 
आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.–२०७०, बुधवार
देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम
 
 

       स्वराज्य-प्राप्तिके बाद भारतका बहुत ही पतन हुआ है । धर्मकी दृष्टिसे, आचरणकी दृष्टिसे, शरीरकी दृष्टिसे, हृदयके भावोंकी दृष्टिसे, चरित्रकी दृष्टिसे, शीलकी दृष्टिसेसब दृष्टियोंसे बहुत पतन हुआ है । पहले भारतमें कितनी विलक्षण विद्याएँ थीं, कला-कौशल थे, पर अब वे सब नष्ट हो रहे हैं । इतना पतन पहले कभी नहीं हुआ था । देशभक्तोंने कितना बलिदान देकर अँग्रेजोंसे स्वराज्य प्राप्त किया था, पर स्वराज्य पानेके बाद देशकी यह दशा हुई कि लोग अँग्रेजोंके राज्यकी प्रशंसा करने लग गए, यह कहने लगे कि अँग्रेजोंका राज्य अच्छा था । यह कितनी शर्मकी बात है !
     भारतमें अपार प्राकृतिक सम्पत्ति है । परन्तु इस प्राकृतिक सम्पत्तिका सदुपयोग करना तो दूर रहा, उलटे इसका विनाश किया जा रहा है । इतना ही नहीं, विनाशको उत्पादन माना जा रहा है ! पशुओंके विनाशको ‘मांसका उत्पादन’ कहा जाता है ! गर्भपातरूपी महापापको और मनुष्यकी उत्पादक-शक्तिके विनाशको ‘परिवार-कल्याण’ कहा जाता है ! स्त्रियोंकी उच्छृंखलताको, मर्यादाके नाशको ‘नारी-मुक्ति’ कहा जाता है ! पहले स्त्री घरकी स्वामिनी (गृहलक्ष्मी) होती थी, अब घरसे बाहर अनेक पुरुषोंकी दासता (नौकरी) करनेको ‘नारीकी स्वाधीनता’ कहा जाता है ! इस प्रकार पराधीनताको स्वाधीनताका लक्षण माना जा रहा है ! नैतिक पतनको उन्नतिकी संज्ञा दी जा रही है ! पशुताको सभ्यताका चिन्ह माना जा रहा है ! धार्मिकताको साम्प्रदायिकता और धर्मविरुद्धको धर्म-निरपेक्ष कहा जा रहा है ! बुद्धिकी बलिहारी है ! ‘विनाशकाले विपरीतबुद्धिः’ । गीताने इसको तामसी बुद्धि बताया है−
अधर्मं धर्ममिति या         मन्यते तमसावृता ।
सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ॥
                                                (गीता १८/३२)
       ‘हे पार्थ ! तमोगुणसे घिरी हुई जो बुद्धि अधर्मको धर्म और सम्पूर्ण चीजोंको उलटा मानती है, वह तामसी है ।’
        मन्दोदरी रावणसे कहती है−
काल दंड गहि काहु न मारा ।
हरइ धर्म बल बुद्धि बिचारा ॥
निकट काल जेहि आवत साईं ।
तेहि भ्रम होई तुम्हारिहि नाईं ॥
                                         (मानस, लंकाकाण्ड ३७/४)
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
−‘देशकी वर्तमान दशा और उसका परिणाम’ पुस्तकसे