।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.–२०७०, बुधवार
श्रीअनन्तचतुर्दशी-व्रत, व्रतपूर्णिमा
विविध रूपोंमें भगवान्‌
 
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
          अर्जुनकी प्रार्थनापर भगवान्‌ने विभूतियोंका वर्णन किया और अन्तमें अपनी तरफसे बड़ी विलक्षण बात कही‒
अथवा बहुनैतेन           किं ज्ञातेन तवार्जुन ।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत् ॥
                                                    (गीता १०/४२)
         ‘अथवा हे अर्जुन ! तुम्हें इस प्रकार बहुत-सी बातें जाननेकी क्या आवश्यकता है ? मैं अपने किसी एक अंशसे सम्पूर्ण जगत्‌को व्याप्त करके स्थित हूँ ।’ तात्पर्य है कि जगत्‌-रूपसे भगवान्‌ ही स्थित हैं; क्योंकि व्याप्य और व्यापक‒दोनों भगवान्‌ ही हैं ।
 
          एक बार कन्हैयाने मिट्टी खा ली । यशोदा मैयाको चिन्ता हुई कि मिट्टी खानेसे बीमार हो जायगा । इसलिये मैयाने हाथमें छड़ी ले ली और कहा कि ‘बोल, तूने मिट्टी क्यों खायी ?’ कन्हैयाने कहा कि ‘मैया मैंने मिट्टी नहीं खायी, तू मेर मुँह देख ले ।’ कन्हैयाने अपना मुख खोला तो उस छोटे-से मुखमें अनन्त सृष्टियाँ दीखने लग गयीं । यशोदाने कन्हैयाके मुखमें अनन्त लोक देखें, जिनमें एक त्रिलोकी देखी । त्रिलोकीमें एक पृथ्वीको देखा । पृथ्वीमें एक भारतवर्ष देखा । भारतवर्षमें भी एक व्रजको देखा । व्रजमें भी एक नन्दगाँवको देखा । नन्दगाँवमें भी नन्दजीके घरको देखा । नन्दजीके घरमें भी एक कमरेमें अपनेको बैठे देखा और अपनी गोदमें छोटे-से कन्हैयाको बैठे देखा । उस कन्हैयाके भी एक छोटे-से मुखमें अनन्त सृष्टियोंको देखा । कारण कि कन्हैयाके सिवाय दूसरा कोई है ही नहीं‒‘वासुदेवः सर्वम्’
 
          एक बार काकभुशुण्डिजी भगवान्‌ रामकी बाललीला देख रहे थे और उनके साथ खेल रहे थे । रामजीको प्राकृत शिशुकी तरह खेलते देखकर काकभुशुण्डिजीके मनमें मोह, भ्रम पैदा हो गया । उनको मोहित देखकर रामजी हँसे । रामजीके हँसते ही वे उनके मुखमें चले गये । भीतर जाकर उन्होंने रामजीके उदरमें अनन्त ब्रह्माण्डोंको देखा । उन ब्रह्माण्डोंमें वे कई कल्पोंतक घूमते रहे । कुछ समयतक वे अपने आश्रममें भी रहे । फिर उन्होंने अयोध्यामें जाकर रामजन्मको भी देखा । उसके बाद वे रामजीके हँसनेपर बाहर आ गये । इतना समय केवल दो घड़ीमें ही बीता था (मानस, उत्तर ८०/१ से ८२)
 
            गीतामें भी आया है कि अर्जुनने भगवान्‌ श्रीकृष्णकी देहके एक अंशमें विराटरूपको देखा । अर्जुन कहते हैं‒‘पश्यामि देवांस्तव देव देहे’ (गीता ११/१५), संजय भी कहते है‒‘अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा’ (गीता ११/१३) और स्वयं भगवान्‌ भी कहते हैं‒
इहैकस्थं जगत्कृस्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्‌द्रष्टुमिच्छसि ॥
                                                                                    (गीता ११/७)
 
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘सब जग ईश्वररूप है’ पुस्तकसे