।। श्रीहरिः ।।

 

आजकी शुभ तिथि–

आश्विन कृष्ण षष्ठी, वि.सं.–२०७०, बुधवार

षष्ठीश्राद्ध

अखण्ड साधन

 

 

(गत ब्लॉगसे आगेका)

संतोंने कहा है‒

गुल सोर बबूला आग हवा सब कीचड़ पानी मिट्टी है ।

हम देख चुके इस दुनियाको सब धोखेकी-सी टट्टी है ॥

 

        तथा‒

चाख चाख सब छाँड़िया माया रस खारा हो ।

नाम सुधा रस पीजिए     छिन बारंबारा हो

                          लगे हमें राम पियारा हो

 

अत: ‘चाख चाख सब छाँड़िया माया रस खारा हो’‒जब यह कड़वा लगेगा तब स्वत: छूटेगा ।

 

हमने जो शरीरके साथ सम्बन्ध जोड़ा था, वह जैसे गृहस्थाश्रमी पुरुष अपनी एक पत्नीके साथ सम्बन्ध जोड़ते हैं, वैसे ही जोड़ा था त्यागके लिये । किंतु उसको भूल गये । इसका नाम है अज्ञान‒मूर्खता ।

 

अतएव अब इसे याद कर लें कि ‘हमने इसके साथ सम्बन्ध जोडा है केवल त्याग करनेके लिये ।’ त्याग करनेके लिये ही परीक्षा करना है और देखकर छोड़ देना है जिससे आगे चलकर हमारा मन कभी न चले । शरीरके साथ अपनापन माना हुआ है । यदि इसको हमने नहीं छोड़ा, यह हमसे नहीं छूटा तो इसके तत्त्वको जान लें । जब आप इसके तत्वको जान लेंगे तब इसके साथ सम्बन्ध रहेगा नहीं ।

 

इसीलिये भगवान्‌ने कृपा करके संसारकी ऐसी सुन्दर रचना की है कि कोई वस्तु कभी भी एकरूप नहीं रहती । यह भगवान् क्रियात्मक उपदेश दे रहे हैं जीवोंको कि जिसके साथ तुम सम्बन्ध जोड़ोगे वह उस रूपमें नहीं रहेगा । यह एक बात विनोदसे कह देते है कि भगवान्‌के और जीवके बीचमें एक हठ हो गया है । जीव तो कहता है‒मैं सम्बन्ध जोड़ूँगा । भगवान् कहते हैं‒बच्चू ! मैं सम्बन्ध तोड़ूँगा । जीव कहता है‒मैं बच्चा हूँ । भगवान् कहते हैं‒बचपनको नहीं रहने दूँगा । वह कहता है‒मैं जवान हूँ । भगवान् कहते हैं‒इसे भी नहीं रहने दूँगा । जीव कहता है‒यह इतना मेरा परिवार है । भगवान् कहते हैं‒इसे भी नहीं रहने दूँगा । जीव कहता है‒इतना धन मेरे पास है । भगवान् कहते हैं‒यह भी नही रहने दूँगा । वह कहता है‒मैं बड़ा स्वस्थ हूँ । वे कहते हैं‒इसे भी नहीं रहने दूँगा । वह कहता है‒मैं बीमार हूँ । वे कहते हैं‒इसे भी नहीं रहने दूँगा । भगवान् कहते है‒‘जिनके साथ तू सम्बन्ध जोड़ेगा, मैं उन सबका सम्बन्ध-विच्छेद करता रहूँगा । तू जोड़ता जायगा तो मैं तोड़ता जाऊँगा ।’

 

यहाँ सम्बन्ध तोड़नेका अर्थ क्या है‒आगे नया सम्बन्ध न जोड़ना, तब पुराना सम्बन्ध अपने-आप टूट जायगा, क्योंकि वह तो छूटनेहीवाला है‒

अंतहि तोहि तजेंगे पामर ! तू न तजै अब ही तें ।

                                                                मन पछितैहै अवसर बीते

 

अत: इसका तत्व जाननेके लिये ही सम्बन्ध जोड़ा है, न कि सम्बन्ध रखनेके लिये ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒ ‘एकै साधे सब सधै’ पुस्तकसे