(गत ब्लॉगसे
आगेका)
और तो क्या
कहें; आप जिनको संत, महात्मा, विरक्त, त्यागी, अच्छे पुरुष
मानते हैं, उनके साथ
भी सम्बन्ध जोड़ना
वास्तवमें सम्बन्ध
तोड़नेके लिये
है । यह बात कड़वी
लगती है, पर बात यही है
। गृहस्थाश्रम
छोड़कर साधु बन
गये और गुरुजीके
साथ सम्बन्ध जोड़ा
। गुरुजीके साथ
सम्बन्ध रखनेके
लिये थोड़े ही जोड़ा
है । गुरुजी बता
देंगे कि ‘भाई ! तुम्हारा
सम्बन्ध सदा रहनेवाले
असली स्वरूपके
साथ है । इन सबके
साथ सम्बन्ध रहनेवाला
नहीं है ।’ अत: सबसे
सम्बन्ध तोड़नेके
लिये ही इनसे सम्बन्ध
जोड़ना है, न कि इनके साथ
ही मर मिटना है
। इस जोड़े हुए सम्बन्धको
नित्य मान लेते
हैं, यही
गलती है । हमने
जो शरीरके साथ
सम्बन्ध मान लिया, इसीसे यह गलती
हुई है । तो अब हम
क्या करें ?
‘शरीर मैं
हूँ’‒यह भाव होनेसे
ही ‘मैं भगवान्का
हूँ, भगवान् मेरे
हैं’ यह बात समझमें
नहीं आती । समझमें न आनेमें
कारण शरीरके साथ
तादाम्य सम्बन्ध
रहता है । जीव
वास्तवमें परमात्माका
है और परमात्मा
जीवके हैं‒यह
इसका असली सम्बन्ध
है । इसलिये जो
अच्छे संत-महात्मा
होते हैं, वे यही उद्देश्य
रखते हैं, यही उपदेश देते
हैं कि ‘तुम परमात्माके
हो और परमात्मा
तुम्हारे हैं
। तुम यह शरीर नहीं
हो ।’
जबतक शरीरके
साथ ‘मैं’ पन बना
हुआ है, तबतक साधन अखण्ड
नहीं होगा । यह
प्रश्र था कि ‘अखण्ड
साधन कैसे हो ?’ जबतक आपका
इस शरीरमें मैंपन
और मेरापन है, तबतक साधन
अखण्ड नहीं होगा
। जरा
ध्यान दे, अखण्ड क्या होता
है और खण्ड क्या
होता है ? जो मैंपन है, वह अखण्ड होता
है । आपको कभी भी
पूछा जाय, यही उत्तर होगा‒मैं
हूँ । इसको आप चाहे
याद रखें, या बिलकुल गाढ़
नींद आ जाय, चाहे व्यवहारमें
बिलकुल भूल जायँ, परन्तु मैं अमुक
वर्णका, अमुक आश्रमका
हूँ, यह आपको बिना
याद किये भी याद
है, बिना स्मृतिके
भी यह स्मरण है
। आपको याद ही नहीं, होश ही नहीं कि
किस काममें लगे
हैं, पर
जहाँ जरा सावधान
हुए, वहाँ
‘मैं हूँ’ यह भाव
है । फिर वही नाम, वही गाँव, वही वर्ण, वही आश्रम और अपनी
वैसी-की-वैसी स्थिति
दिखलायी पड़ेगी, स्वप्नमें भी
। इसलिये ‘मैं’-के साथ जोड़ा
हुआ सम्बन्ध अखण्ड
होता है । ‘मै’-का सम्बन्ध
भगवान्के साथ
न जोड़कर संसारके
साथ जोड़े रखते
है और भजन करना
चाहते है, अखण्ड । असम्भव
बात है । चाहे इस कान
सुनें, चाहे उस कान ।
आप मानें या न माने
। प्रमाण मिले
चाहे न मिले । हमें
तो भाई ! संदेह है
नहीं । आपको संदेह
हो तो आप भले ही
न मानें । आपसे
हमारा कोई आग्रह
नहीं ।
(शेष
आगेके
ब्लॉगमें)
‒
‘एकै साधे
सब सधै’
पुस्तकसे
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