।। श्रीहरिः ।।
-->
 
आजकी शुभ तिथि–
आश्विन कृष्ण अष्टमी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
अष्टमीश्राद्ध, जीवत्पुत्रिकाव्रत
अखण्ड साधन
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
वर्षोंतक सत्संग-भजन करते हुए भी निरन्तर भजन नहीं होता‒इसके अनेक कारणोमें बहुत मुख्य और बड़ा कारण है कि आपने अहंताके साथ साधनका सम्बन्ध नहीं जोड़ा है । साधन तो करते हैं और संसारका चिन्तन होता है । जो होता है वह असली है और जो करते है वह होता है नकली । असली होगा वही अखण्ड होगा । नकली अखण्ड कैसे होगा ? नकल करेंगे, छूट जायगी; फिर होगी, फिर छूट जायगी । तो हम क्या करें ! यदि अखण्ड साधन करना चाहते तो मैं भगवान्‌का हूँ’ इस बातको समझें, चाहे मान लें । प्रभुके साथ सम्बन्ध जुड़नेसे आपपर जिम्मेवारी आ जाती है अब और करना ही क्या है, साधन ही करना है । मैंने उस कहा था न कि साधन ही करना है, साधन भी करना है, यह नहीं ।’ हमारे भाई-बहन साधन भी करते हैं । यह भी कर लो, घंटा-दो-घंटा समय लगा दो, बारह महीनेमें दो-चार महीने लगा दो, यह भी कर लो और घरका काम तो करना ही है । वह तो हीहै और यह भीहै । यह मिटेगी नहीं, इस तरह जबतक आप संसारके साथ सम्बन्ध मानते है; तबतक वह सम्बन्ध संसारसे ही रहेगा ।
 
विचार करके देखें तो संसारका सम्बन्ध था नहीं और रहेगा नहीं । मैंने जो संसारका सम्बन्ध बतलाया, यह तो मैं स्थूल रीतिसे कहता हूँ । सूक्ष्म रीतिसे देखें तो बिलकुल है ही नहीं, एक क्षण भी सम्बन्ध नहीं है । जैसे गंगाजीका यह जल बहता हुआ एक क्षण भी स्थिर नहीं है परन्तु स्थूल दृष्टिसे देखें तो कहते हैं, कलसे इसी सीढ़ीपर जल चल रहा है, जैसा कल था वैसा ही आज है, उतनेहीपर चल रहा है, वही है और सूक्ष्म रीतिसे एक क्षण भी वह जल वहाँ नहीं है, जहाँ कल था या एक क्षण पूर्व था । यदि एक क्षणके बाद उसी जगह वह स्थिर रहे तो सदाके लिये ही स्थिर रहना चाहिये; किंतु क्षण भी स्थिर कहाँ ? इसी प्रकार ये शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, प्राण एक क्षण भी स्थिर नहीं है । क्योंकि-
क्षणपरिणामिनो भावा ऋते चितिशक्ते:
 
उस चेतनशक्तिके सिवा सब क्षणपरिणामी है । क्षणपरिणामीके साथ आपने अपना अपनापन कर लिया, इसीसे अपना अपनापन आपको दिखलायी नहीं देता है । तब यह कैसे समझमें आये कि ‘मैं भगवान्‌का हूँ, भगवान् मेरे हैं ।’ वस्तुत: हैं ही भगवान् अपने और अपना कोई है ही नहीं । गहराईमें उतरकर देखें, कोई अपना नहीं है । अरे ! शरीर ही अपना नहीं, तो दूसरा अपना कैसे रहेगा ? और शरीरसे सम्बन्ध जोड़नेसे ही वह अपना कैसे ?
 
इसपर यदि कहते है‒अब क्या करें ? अपनापन दृढ़तासे दिखलायी दे रहा है इसे कैसे हटायें, तो इसके लिये एक बड़ी ही सरल और बहुत बढ़िया युक्ति है । इसे बहन-भाई, छोटा-बड़ा, पढ़-अनपढ़ हरेक कर सकता है । वह क्या है ?
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘एकै साधे सब सधै’ पुस्तकसे