।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
आश्विन कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
चतुर्दशी श्राद्ध
सर्वोच्च पदकी प्राप्तिका साधन
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
ऐसा अन्तर क्यों होता है ? इसका उत्तर यह है कि मानव-शरीर हमें मिला है परमात्माकी ही प्राप्तिके लिये । इसलिये पारमार्थिक उन्नति चाहनेवालेको लगनसे कार्य करनेपर वह अवश्य मिलेगी । हाँ यदि कोई चेष्टा ही न करे तो उसे वह किस तरह मिलेगी । इसके विपरीत, व्यावहारिक वस्तुओंकी प्राप्तिमें प्रारब्ध ही प्रधान है । प्रारब्ध अनुकूल होगा तो वस्तु मिल जायगी, पर यत्न करनेसे वह मिल ही जाययह नियम नहीं है । इसका तात्पर्य यह हैपरमार्थ (आध्यात्मिकता) की प्राप्तिमें अभिलाषालगनकी प्रधानता है और सांसारिक वस्तुओंकी प्राप्तिमें प्रारब्धकी प्रधानता है । अत: मनुष्यको कभी आलस्य-प्रमादमें समय नहीं बिताना चाहिये तथा जप, स्वाध्याय, शास्त्रोंका मनन और सबके हितका चिन्तन सदा करते रहना चाहिये ।
 
सबके हितकी बात सोचनेसे सबका हित होता है, पर स्थूल बुद्धिवाले इस बातको नहीं समझते स्थूल वस्तु तो एकदेशीय होती है; परंतु सूक्ष्म वस्तु व्यापक होती है, वह सब जगह फैलती है । विचार सूक्ष्म होते हैं, अत: सबके हितका भाव मनमें आनेसे वैसा ही वायुमण्डल बनता है, जिससे सबको सुख पहुँचता है । इसीलिये भगवान् कहते हैंते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रता: ॥’ (गीता१२/४) जिनके अन्दर सबके हितकी भावना है, वे परमात्मतत्त्वको प्राप्त होते हैं । जिसके अन्तःकरणमें राग-द्वेष न होकर सबके हितकी भावना होती है उसकी समष्टिके साथ एकता हो जाती है ।
 
गीतामें भगवान्‌ने कहा हैसुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥’ (गीता५/२९) मुझ (भगवान्) को प्राणिमात्रका सुहृद् जाननेवालेको शान्ति मिलती है । ऐसी स्थितिमें जिसमें सबके हितकी भावना होती है, जो सबके भलेका ही भाव रखता है, अर्थात् जो सर्वे भवन्तु सुखिन:सब-के-सब सुखी हो जायँ सर्वे सन्तु निरामयाःसब-के-सब नीरोग रहें, सर्वे भद्राणि पश्यन्तुसबका मंगल-ही-मंगल हो, मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्किसीको किञ्चिन्मात्र भी दुःख न होऐसा भाव अपने मनमें रखता है, उसकी उस भावनाकी प्राणिमात्रके सुहृद् भगवान्‌की भावनाके साथ एकता हो जाती है । परमात्माकी भावनाके साथ एकता होनेसे उसकी सहज ही परमात्मासे अभिन्नता हो जाती है । परन्तु यदि वह अभिमान कर लेता है तो यह शक्ति नहीं मिलती ।
 
शास्त्रोंका आदेश हैदेवताओंका पूजन देवता बनकर करेदेवो भूत्वा यजेद् देवम् । इसी प्रकार मन्त्रको सिद्ध करना हो तो मन्त्रका अपनेमें न्यास करके स्वयं मन्त्ररूप बनना पड़ता है । इसी प्रकार सबके हितका भाव जिनके मनमें रहता है, वे परमात्मतत्त्वको प्राप्त कर लेते हैं । अत: सबका हित करनेमें हर समय तत्पर रहना ही परमात्माको प्राप्त करनेका सबसे उत्तम सरल उपाय है ।
 
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘सर्वोच्च पदकी प्राप्तिका साधन’ पुस्तकसे