(गत
ब्लॉगसे
आगेका)
अत: अपने
पास शक्ति,
समय,
सामग्री
और समझ जो कुछ
जितनी है,
अधिक
है या कम–इससे कोई
प्रयोजन
नहीं, उसको
सम्पूर्ण
प्राणिमात्रके
हितमें लगा दें
। सब भगवान्की
ही प्रजा है,
अत:
सबके हितमें
अपनी शक्ति
आदि लगा
देंगे तो भगवान्की
जो शक्ति है,
वह
हमें मिल
जायगी; क्योंकि
भगवान्की
प्रतिज्ञा
है–
ये यथा
मां
प्रपद्यन्ते
तांस्तथैव
भजाम्यहम् ।
मम
वर्त्मानुवर्तन्ते
मनुष्याः
पार्थ
सर्वशः
॥
(गीता ४/११)
यही नहीं,
उसे
भगवान् भी
मिल जाते हैं
। सत्संग
सुनकर सुनी
हुई बातोंका
उपयोग कैसे हो, इसके
लिये ही
विशेषरूपसे
चेष्टा करें
। इसका यह मतलब
नहीं है कि
सत्संगकी
बातें सुने
ही नहीं ।
सुनना तो है
ही, सुननेसे
ही सुनी हुई
बातको काममें
लानेकी
प्रेरणा
प्राप्त
होती है । परन्तु
जो कुछ सुना
है, उसको
काममें
लानेकी
चेष्टा
विशेषरूपसे
करनी चाहिये
।
सार बात
यह है कि
परमात्माका
अंश होनेसे
जीवको अपनी
स्थितिसे
संतोष नहीं
होता, यह ऊँचा
उठना चाहता
है । पर जबतक
परमात्माको
प्राप्त
नहीं कर लेगा,
तबतक
इसे पूर्ण
सुख-संतोष
नहीं
प्राप्त हो
सकता । ऊपर
बतलाये हुए
प्रकारसे
कटिबद्ध
होकर साधन
करनेपर
मनुष्य अपनी
स्थितिसे
ऊँचा उठ सकता
है और
परमात्माकी
प्राप्ति कर
सकता है । यह
इस
मनुष्य-शरीरमें
ही
सम्भव है,
क्योंकि
परमात्माने
यह
मनुष्य-शरीर
अपनी प्राप्तिके
लिये ही दिया
है और साथ ही
उसके लिये
उपयोगी साधन-सामग्री
भी पूरी दी है
। अत:
हमलोगोंको
परमात्माकी
प्राप्तिके
लिये ही
विशेष
प्रयत्नशील
होना चाहिये
।
नारायण !
नारायण !!
नारायण !!!
‒
‘सर्वोच्च
पदकी
प्राप्तिका
साधन’
पुस्तकसे
साधकका
जिस-किसी
वस्तु, व्यक्ति
आदिमें
खिंचाव हो,
उसमें वह
भगवान्का
ही चिन्तन
करे ।
☼ ☼ ☼
सब जगह
समरूप
परमात्माको
देखना
समदृष्टि है और
प्रकृति तथा
उसके कार्य
(शरीर-संसार)
को देखना
विषमदृष्टि
है ।
☼ ☼ ☼
मनुष्यको
अपना संकल्प
नहीं रखना
चाहिये, प्रत्युत
भगवान्के
संकल्पमें
अपना संकल्प
मिला देना
चाहिये अर्थात्
भगवान्के
विधानमें
परम प्रसन्न
रहना चाहिये ।
☼ ☼ ☼
हर समय यह
सावधानी
रहनी चाहिये
कि मेरे
द्वारा
किसीको कोई
कष्ट तो नहीं
पहुँच रहा है,
किसीको कोई
हानि तो नहीं
हो रही है ?
☼ ☼ ☼
यह
नियम ले लें
कि कोई हमारे
मनकी बात
पूरी न करे तो
हम नाराज
नहीं होंगे ।
☼ ☼ ☼
संसारका
मालिक
परमात्मा है
और शरीरका
मालिक मैं
हूँ‒ऐसा
मानना गलती
है । जो
संसारका
मालिक है, वही
शरीरका भी
मालिक है ।
☼ ☼ ☼
‒
‘अमृतबिन्दु’
पुस्तकसे
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