।। श्रीहरिः ।।

 
आजकी शुभ तिथि–
आश्विन शुक्ल षष्ठी, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
सर्वोच्च पदकी प्राप्तिका साधन
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
अत: अपने पास शक्ति, समय, सामग्री और समझ जो कुछ जितनी है, अधिक है या कमइससे कोई प्रयोजन नहीं, उसको सम्पूर्ण प्राणिमात्रके हितमें लगा दें । सब भगवान्‌की ही प्रजा है, अत: सबके हितमें अपनी शक्ति आदि लगा देंगे तो भगवान्‌की जो शक्ति है, वह हमें मिल जायगी; क्योंकि भगवान्‌की प्रतिज्ञा है
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते    मनुष्याः पार्थ सर्वशः
                                                                         (गीता ४/११)
यही नहीं, उसे भगवान् भी मिल जाते हैं । सत्संग सुनकर सुनी हुई बातोंका उपयोग कैसे हो, इसके लिये ही विशेषरूपसे चेष्टा करें । इसका यह मतलब नहीं है कि सत्संगकी बातें सुने ही नहीं । सुनना तो है ही, सुननेसे ही सुनी हुई बातको काममें लानेकी प्रेरणा प्राप्त होती है । परन्तु जो कुछ सुना है, उसको काममें लानेकी चेष्टा विशेषरूपसे करनी चाहिये ।
 
सार बात यह है कि परमात्माका अंश होनेसे जीवको अपनी स्थितिसे संतोष नहीं होता, यह ऊँचा उठना चाहता है । पर जबतक परमात्माको प्राप्त नहीं कर लेगा, तबतक इसे पूर्ण सुख-संतोष नहीं प्राप्त हो सकता । ऊपर बतलाये हुए प्रकारसे कटिबद्ध होकर साधन करनेपर मनुष्य अपनी स्थितिसे ऊँचा उठ सकता है और परमात्माकी प्राप्ति कर सकता है । यह इस मनुष्य-शरीरमें ही सम्भव है, क्योंकि परमात्माने यह मनुष्य-शरीर अपनी प्राप्तिके लिये ही दिया है और साथ ही उसके लिये उपयोगी साधन-सामग्री भी पूरी दी है । अत: हमलोगोंको परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही विशेष प्रयत्नशील होना चाहिये ।
 
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
 
‒ ‘सर्वोच्च पदकी प्राप्तिका साधन’ पुस्तकसे
 
साधकका जिस-किसी वस्तु, व्यक्ति आदिमें खिंचाव हो, उसमें वह भगवान्‌का ही चिन्तन करे ।
       सब जगह समरूप परमात्माको देखना समदृष्टि है और प्रकृति तथा उसके कार्य (शरीर-संसार) को देखना विषमदृष्टि है ।
       मनुष्यको अपना संकल्प नहीं रखना चाहिये, प्रत्युत भगवान्‌के संकल्पमें अपना संकल्प मिला देना चाहिये अर्थात्‌ भगवान्‌के विधानमें परम प्रसन्न रहना चाहिये ।
       हर समय यह सावधानी रहनी चाहिये कि मेरे द्वारा किसीको कोई कष्ट तो नहीं पहुँच रहा है, किसीको कोई हानि तो नहीं हो रही है ?
         यह नियम ले लें कि कोई हमारे मनकी बात पूरी न करे तो हम नाराज नहीं होंगे ।
      संसारका मालिक परमात्मा है और शरीरका मालिक मैं हूँ‒ऐसा मानना गलती है । जो संसारका मालिक है, वही शरीरका भी मालिक है ।
 
‒ ‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे