।। श्रीहरिः ।।



 
आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
धनतेरस, धन्वंतरी-जयन्ती
नाम-जपकी महिमा
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
जैसे पित्तका जोर होनेपर रोगीको मिश्री भी कड़वी लगती है । परन्तु यदि वह मिश्रीका सेवन करता रहे तो पित्त शान्त हो जाता है और मिश्री मीठी लगने लग जाती है । ऐसे ही पाप अधिक होनेसे नाम अच्छा नहीं लगता; परन्तु नाम-जप करना शुरू कर दे तो पाप नष्ट हो जायेंगे और नाम अच्छा, मीठा लगने लग जायगा तथा नाम-जपका प्रत्यक्ष लाभ भी दीखने लग जायगा ।
 
प्रश्न‒जिसके भाग्यमें नाम लेना लिखा है, वह तो नाम ले सकता है, उसके मुखसे नाम निकल सकता है; परंतु जिसके भाग्यमें नाम लेना लिखा ही नहीं, वह कैसे नाम ले सकता है ?
 
उत्तर‒एक ‘होना’ होता है और एक ‘करना’ होता है भाग्य अर्थात् पुराने कर्मोंका फल होता है और नये कर्म किये जाते हैं, होते नहीं । जैसे व्यापार करते हैं और नफा-नुकसान होता है; खेती करते हैं और लाभ-हानि होती है; मन्त्रका सकामभावसे जप (अनुष्ठान) करते हैं और उसका नीरोगता आदि फल होता है । बद्रीनारायण जाते हैं‒यह ‘करना’ हुआ और चलते-चलते बद्रीनारायण पहुँच जाते हैं‒यह ‘होना’ हुआ । दवा लेते हैं‒यह ‘करना’ हुआ और शरीर स्वस्थ या अस्वस्थ होता है‒ यह ‘होना’ हुआ । हानि-लाभ, जीना-मरना, यश-अपयश‒ये सब होनेवाले हैं; क्योंकि ये पूर्वजन्ममें किये हुए कर्मोंके फल हैं* । परन्तु नाम-जप करना नया काम है । यह करनेका है, होनेका नहीं । इसको करनेमें सब स्वतन्त्र हैं । हाँ, इसमें इतनी बात होती है कि अगर किसीने पहले नाम-जप किया हुआ है तो नाम-जपकी महिमा सुनते ही उसकी नाम-जपमें रुचि हो जायगी और वह सुगमतासे होने लग जायगा । परन्तु पहले जिसका नाम-जप किया हुआ नहीं है, वह अगर नामकी महिमा सुने तो उसकी नाम-जपमें जल्दी रुचि नहीं होगी । अगर नाम-जपकी महिमा कहनेवाला अनुभवी हो तो सुननेवालेकी भी नाममें रुचि हो जायगी और उस अनुभवीके संगमें रहनेसे उसके लिये नाम-जप करना भी सुगम हो जायगा ।
 
जो भाग्यमें लिखा है, वह फल होता है, नया कर्म नहीं । नाम-जप करना शुरू कर दें तो वह होने लग जायगा; क्योंकि नाम-जप करना नया कर्म, नयी उपासना है । अत: ‘हमारे भाग्यमें नाम-जप करना, सत्संग करना, शुभ कर्म करना लिखा हुआ नहीं है’ऐसा कहना बिलकुल बहानेबाजी है । ‘नाम-जप, सत्संग आदि हमारे भाग्यमें नहीं हैं’ऐसा भाव रखना कुसंग है, जो नाम-जप आदि करनेके भावका नाश करनेवाला है ।
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मूर्ति-पूजा और नाम-जपकी महिमा’ पुस्तकसे
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 *सुनहु भरत भावी प्रबल   बिलखि कहेउ मुनिनाथ ।
    हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ ॥
                                                             (मानस २।१७१)