।। श्रीहरिः ।।

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आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक पूर्णिमा, वि.सं.–२०७०, रविवार
श्रीगुरुनानक-जयन्ती, कार्तिक-स्नान समाप्त
हमारा स्वरूप सच्चिदानन्द है
 
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
चाहना सदा नहीं’ की होती है । हैपन तो सदा रहता है, कभी मिटता नहीं । जिस अंशमें हैसे विमुख होते हैं, उसी अंशमें नहीं ' की चाहना करते हैं । चाहनासे ही उस अंशमें हैसे अलग होते हैं, नहीं तो हैसे अलग होनेकी सामर्थ्य किसीमें है नहीं । चाहनेपर भी अपना होनापन तो मानते ही हैं । नहीं’ की चाहनाका त्याग कर दें, फिर हैमें स्थिति स्वतःसिद्ध है ।
 
हम ज्ञान चाहते हैं, जानना चाहते हैं । तो यह जानना भी हैमें स्वत: सिद्ध है, पर नहीं ' को पकड़नेसे जाननेकी चाहना होती है । यदि नहीं ' को न पकड़ें तो जाननेकी चाहना भी समाप्त हो जायगी ।
 
हम क्या नहीं चाहते हैं ? हम दुःखी होना नहीं चाहते हैं । हैमें दुःख है ही नहीं । ज्ञानमें दुःख है ही नहीं । किसी बातका ज्ञान हुआ, तो स्वत: एक शान्ति, एक सुखका अनुभव होता है; क्योंकि ज्ञान आनन्दरूप है ।
 
इस प्रकार हमारी चाहना हुई‒सत्, चित् और आनन्दकी प्राप्ति, जो स्वत: अपनेमें है । जो मिटता है, उसे असत्‌’ कहते हैं, पर जो कभी नहीं मिटता, उसे सत्‌’ कहते हैं । जिसमें ज्ञान नहीं है, उसे जड़ कहते हैं । तो ज्ञानमात्र चेतन है । जहाँ कभी दुःख आता ही नहीं, वही आनन्द है । तो ये सत्, चित् और आनन्द सबको स्वत: प्राप्त हैं । हमारा स्वरूप सच्चिदानन्द है । अब जहाँ उत्पन्न और नष्ट होनेवाली वस्तुको पकड़ा कि आफत आयी । जो उत्पन्न और नष्ट होनेवाली वस्तु है, वह आपका स्वरूप नहीं है । उसे पकड़नेसे ही दुःख पा रहे हैं । धन नहीं है, पुत्र नहीं है, घर नहीं है‒इस प्रकार कई तरहकी नहीं-नहींको पकड़ लिया । इसी कारण अपने सच्चिदानन्दस्वरूपका अनुभव नहीं हो रहा है ।
 
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘तात्त्विक प्रवचन’ पुस्तकसे
चरित्रकी सुन्दरता ही असली सुन्दरता है ।
याद करो तो भगवान्‌को याद करो, काम करो तो सेवा करो ।
          सच्ची बातको स्वीकार करना मनुष्यका धर्म है ।
          एक-एक व्यक्ति खुद सुधर जाय तो समाज सुधर जायगा ।
          अगर अपनी सन्तानसे सुख चाहते हो तो अपने माता-पिताको सुख पहुँचाओ, उनकी सेवा करो ।
किसीके अहितकी भावना करना अपने अहितको निमन्त्रण देना है ।
याद रखो, भगवान्‌का प्रत्येक विधान आपके परम हितके लिये हैं ।
‒ ‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे