।। श्रीहरिः ।।



 
आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.–२०७०, शनिवार
श्रीहनुमज्जयन्ति, नरक-चतुर्दशी
नाम-जपकी महिमा
 
(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒नाम-जपसे भाग्य (प्रारब्ध) पलट सकता है ?
 
उत्तर‒हाँ, भगवन्नामके जपसे, कीर्तनसे प्रारब्ध बदल जाता है, नया प्रारब्ध बन जाता है; जो वस्तु न मिलनेवाली हो वह मिल जाती है; जो असम्भव है, वह सम्भव हो जाता है‒ऐसा सन्तोंका, महापुरुषोंका अनुभव है । जिसने कर्मोंके फलका विधान किया है, उसको कोई पुकारे, उसका नाम ले तो नाम लेनेवालेका प्रारब्ध बदलनेमें आश्चर्य ही क्या है ? ये जो लोग भीख माँगते फिरते हैं, जिनको पेटभर खानेको भी नहीं मिलता, वे अगर सच्चे हृदयसे नाम-जपमें लग जायँ तो उनके पास रोटियोंका, कपड़ोंका ढेर लग जायगा; उनको किसी चीजकी कमी नहीं रहेगी । परन्तु नाम-जपको प्रारब्ध बदलनेमें, पापोंको काटनेमें नहीं लगाना चाहिये । जैसे अमूल्य रत्नके बदलेमें कोयला खरीदना बुद्धिमानी नहीं है, ऐसे ही अमूल्य भगवन्नामको तुच्छ कामोंमें लगाना बुद्धिमानी नहीं है ।
 
प्रश्न‒जब केवल नाम-जपसे ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं तो फिर शास्त्रोंमें पापोंको दूर करनेके लिये तरहे-तरहके प्रायश्चित्त क्यों बताये गये हैं ?
 
उत्तर‒नाम-जपसे ज्ञात, अज्ञात आदि सभी पापोंका प्रायश्चित्त हो जाता है, सभी पाप नष्ट हो जाते हैं; परन्तु नामपर श्रद्धा-विश्वास न होनेसे शास्त्रोंमें तरह-तरहके प्रायश्चित्त बताये गये हैं । अगर नामपर श्रद्धा-विश्वास हो जाय तो दूसरे प्रायश्चित्त करनेकी जरूरत नहीं है । नाम- जप करनेवाले भक्तसे अगर कोई पाप भी हो जाय, कोई गलती हो जाय तो उसको दूर करनेके लिये दूसरा प्रायश्चित्त करनेकी जरूरत नहीं है । वह नाम-जपको ही तत्परतासे करता रहे तो सब ठीक हो जायगा ।
 
प्रश्न‒अगर कोई सकामभावसे नाम-जप करे तो क्या वह नाम-जप फल देकर नष्ट हो जायगा ?
 
उत्तर‒यद्यपि सांसारिक तुच्छ कामनाओंकी पूर्तिके लिये नामको खर्च करना बुद्धिमानी नहीं है, तथापि अगर सकामभावसे भी नाम-जप किया जाय तो भी नामका माहात्म्य नष्ट नहीं होता । नाम-जप करनेवालेको पारमार्थिक लाभ होगा ही; क्योंकि नामका भगवान्‌के साथ साक्षात् सम्बन्ध है । हाँ, नामको सांसारिक कामनापूर्तिमें लगाकर उसने नामका जो तिरस्कार किया है, उससे उसको पारमार्थिक लाभ कम होगा । अगर वह तत्परतासे नाममें लगा रहेगा, नामके परायण रहेगा तो नामकी कृपासे उसका सकामभाव मिट जायगा । जैसे, ध्रुवजीने सकामभावसे, राज्यकी इच्छासे ही नाम-जप किया था । परन्तु जब उनको भगवान्‌के दर्शन हुए तब राज्य एवं पद मिलनेपर भी वे प्रसन्न नहीं हुए, प्रत्युत उनको अपने सकामभावका दुःख हुआ अर्थात् उनका सकामभाव मिट गया ।
 
जो सकामभावसे नाम-जप किया करते हैं, उनको भी नाम-महाराजकी कृपासे अन्तसमयमें नाम याद आ सकता है और उनका कल्याण हो सकता है !
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मूर्ति-पूजा और नाम-जपकी महिमा’ पुस्तकसे