।। श्रीहरिः ।।

-->
 
आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
उत्पन्ना एकादशी-व्रत (सबका)
दृश्यमात्र अदृश्यमें जा रहा है
 
 
एक बड़ी सीधी बात है । उसे ठीक तरहसे समझ लें तो बड़ी अच्छी तरह साधन चल पड़ेगा । जैसे गंगाजीका प्रवाह चलता है, इसे मान लिया और जान लिया, तो फिर कभी सन्देह नहीं होगा कि प्रवाह चलता है या नहीं चलता । तो जैसे गंगाजीका प्रवाह चल रहा है, वैसे संसारका प्रवाह चल रहा है । यह सब-का-सब संसार निरन्तर अदृश्यकी तरफ जा रहा है । यह दीखनेवाला सब प्रतिक्षण न दीखनेमें जा रहा है । जो कल दीखता था, वह आज नहीं दीखता है । थोड़ा विचार करके देखें कि कल जो शरीर था, वह आज नहीं है । प्रतिक्षण बदल रहा है । इस प्रकार दृश्य प्रतिक्षण अदृश्य हो रहा है । सीधी-सरल बात है । सीखनेकी कोई जरूरत नहीं है । चाहे मान ले, चाहे जान ले । यह सब-का-सब जा रहा है । इसमें कोई सन्देह हो तो बोलो ! जिस दिन कोई मर जाता है तो कहते हैं कि आज वह मर गया । पर वास्तवमें जिस दिन जन्मा, उसी दिनसे उसका मरना शुरू हो गया था और वह मरना आज पूरा हुआ है ।
 
जो अवस्था अभी है, वह प्रतिक्षण जा रही है । धनवत्ता और निर्धनता, आदर और निरादर, मान और अपमान, बलवत्ता और निर्बलता, सरोगता और नीरोगता इत्यादि जो भी अवस्था है, वह सब जा रही है । अब इसमें क्या राजी और क्या नाराज होवें ? इस बातको समझनेके बाद इसपर दृढ़ रहें । अभी कोई आकर कहे कि अमुक आदमी मर गया, तो भीतर भाव रहे कि नयी बात क्या हो गयी ? जो बात प्रतिक्षण हो रही है, वही तो हुई । यदि इसमें कोई नयी बात दीखती है तो दृश्य हर समय अदृश्यमें जा रहा है‒इस तरफ दृष्टि नहीं है, तभी मरनेका सुनकर चिन्ता होती है, मनमें चोट लगती है । यह तो मृत्युलोक है । मरनेवालोंका ही लोक है । यहाँ सब मरने-ही-मरनेवाले रहते हैं । मृत्युके सिवाय और है ही क्या ? प्रत्यक्षमें ही सब कुछ अभावमें जा रहा है । इस बातको ठीक तरह समझ लो । जो जीवन है, वह मृत्युमें जा रहा है । अभीतक जितने दिन जी गये, उतना मर ही गये; जी गये, यह बात तो झूठी है । और मर गये, यह बाइ बिलकुल सच्ची है । इस बातको समझना है, याद नहीं करना है ।
 
अब कहो कि जितने दिन जी गये उसमें मरनेकी क्रिया दिखायी नहीं देती । तो विचार करें कि यदि काले बाल नहीं मरते तो आज बाल सफेद कैसे हो गये ? आप कहें कि रूपान्तरित हो गये, तो मरनेमें क्या होता है ? रूपान्तर ही तो होता है । पहले जैसे जीता हुआ दिखता था, वैसे अब नहीं दीखता । आधी उम्र आपकी चली गयी, तो आधा मर ही गये !
    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘तात्त्विक प्रवचन’ पुस्तकसे