।। श्रीहरिः ।।



 
आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक अमावस्या, वि.सं.–२०७०, रविवार
दीपावली
नाम-जपकी महिमा
 
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒शास्त्रोंमें तथा सन्तोंने कहा है कि अमुक संख्यामें नाम-जप करनेसे भगवान्‌के दर्शन हो जाते हैं, क्या ऐसा होता है ?
 
उत्तर‒हाँ, ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥’‒मन्त्रका साढ़े तीन करोड़ जप करनेसे भगवान्‌के दर्शन हो जाते हैं‒ऐसा ‘कलिसंतरणोपनिषद्’ में आया है । ‘राम’नामका तेरह करोड़ जप करनेसे भगवान्‌के दर्शन हो जाते हैं‒ऐसा समर्थ रामदास बाबाने ‘दासबोध’ में लिखा है । परन्तु नाममें, भगवान्‌में श्रद्धा-विश्वास और प्रेम अधिक हो तो उपर्युक्त संख्यासे पहले भी भगवान्‌के दर्शन हो सकते हैं ।
 
प्रश्न‒नहिं कलि करम न भगति बिबेकू राम नाम अवलंबन एकू ॥’ (मानस १।२७।४)‒ऐसा कहनेका क्या तात्पर्य है ?
 
उत्तर‒कलियुगमें यज्ञादि शुभ कर्मोंका सांगोपांग होना बहुत कठिन है और उनके विधि-विधानको ठीक तरहसे जाननेवाले पुरुष भी बहुत कम रह गये हैं तथा शुद्ध गोधृत आदि सामग्री मिलनी भी कठिन हो रही है । अत: कलियुगमें शुभ कर्मोंका अनुष्ठान सांगोपांग न होनेसे, उसमें विधि-विधानकी कमी रहनेसे कर्ताको दोष लगता है ।
 
वैधीभक्ति विधि-विधानसे की जाती है । उसमें किस इष्टदेवका किस विधिसे पूजा-पाठ होना चाहिये‒इसको जाननेवाले बहुत कम हैं । अत: वह भक्ति करना भी इस कलियुगमें कठिन है ।
 
ज्ञानमार्ग कठिन है और ज्ञानमार्गकी साधना बतानेवाले अनुभवी पुरुषोंका मिलना भी बहुत कठिन है । अत: विवेक-मार्गमें चलना कलियुगमें बहुत कठिन है । तात्पर्य है कि इस कलियुगमें कर्म, भक्ति और ज्ञान‒इन तीनोंका होना बहुत कठिन है, पर भगवान्‌का नाम लेना कठिन नहीं है । भगवान्‌का नाम सभी ले सकते हैं; क्योंकि उसमें कोई विधि-विधान नहीं है । उसको बालक, स्त्री, पुरुष, वृद्ध, रोगी आदि सभी ले सकते हैं और हर समय, हर परिस्थितिमें, हर अवस्थामें ले सकते हैं ।
 
नाम एक सम्बोधन है, पुकार है । उसमें आर्तभावकी ही मुख्यता है, विधिकी मुख्यता नहीं । अत: भगवान्‌का नाम लेकर हरेक मनुष्य आर्तभावसे भगवान्‌को पुकार सकता है ।
 
शंका‒नाम-जपमें मन नहीं लगता और मन लगे बिना नाम-जप करनमें कुछ फायदा नहीं ! कहा भी है‒
                     माला तो कर में  फिरे,  जीभ   फिरै  मुख  माहि ।
                     मनुवाँ तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं ॥
 
समाधान‒मन नहीं लगेगा तो ‘सुमिरन’ (स्मरण) नहीं होगा‒यह बात सच्ची है, पर नाम-जप नहीं होगा‒ यह बात दोहेमें नहीं कही गयी है । मन नहीं लगनेसे सुमिरन नहीं होगा तो नहीं सही, पर नाम-जप तो हो ही जायगा ! नाम-जप कभी व्यर्थ हो ही नहीं सकता; अत: मन लगे चाहे न लगे, नाम-जप करते रहना चाहिये ।
 
जब मन लगेगा, तब नाम-जप करेंगे‒ऐसा होना सम्भव नहीं है । हाँ, अगर हम नाम-जप करने लग जायँ तो मन भी लगने लग जायगा; क्योंकि मनका लगना नाम-जपका परिणाम है ।
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मूर्ति-पूजा और नाम-जपकी महिमा’ पुस्तकसे