।। श्रीहरिः ।।



 
आजकी शुभ तिथि–
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.–२०७०, सोमवार
अन्नकूट, गोवर्धनपूजा
नाम-जपकी महिमा
 
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒शास्त्रमें आता है कि जो नाम नहीं लेना चाहता, जिसकी नामपर श्रद्धा नहीं है, उसको नाम नहीं सुनाना चाहिये; क्योंकि यह नामापराध है; फिर भी गौरांग महाप्रभु आदिने नामपर श्रद्धा न रखनेवालोंको भी नाम क्यों सुनाया ?
 
उत्तर‒जो नाम नहीं सुनना चाहता, मुखसे भी नहीं लेना चाहता, नामका तिरस्कार करता है, उसको नाम नहीं सुनाना चाहिये‒यह विधि है, शास्त्रकी आज्ञा है; फिर भी सन्त-महापुरुष दया करके उसको नाम सुना देते हैं । उनकी दयामें विधि-निषेध लागू नहीं होता । विधि-निषेध, ‘कर्म’ में लागू होता है और ‘दया’ कर्मसे अतीत है । दया अहैतुकी होती है, हेतुके बिना की जाती है । जैसे, कोई भगवत्प्राप्त सन्त-महापुरुष अपनी सामर्थ्यसे दूसरेको कोई चीज देता है तो यह चीज लेनेवालेके पूर्वकर्मका फल नहीं है यह तो उस सन्त-महापुरुषकी दया है । ऐसे ही गौरांग महाप्रभु आदि सन्तोंने दयापरवश होकर दुष्ट, पापी व्यक्तियोंको भी भगवन्नाम सुनाया ।
 
प्रश्न‒अगर मरणासन्न पशु, पक्षी आदिको भगवन्नाम सुनाया जाय तो क्या उनका उद्धार हो सकता है ?
 
उत्तर‒पशु, पक्षी आदि भगवन्नामके प्रभावको नहीं समझते और अपने-आप प्रभाव आ जाय तो वे उसका विरोध भी नहीं करते । वे नामकी निन्दा, तिरस्कार नहीं करते, नामसे धृणा नहीं करते । अत: उनको मरणासन्न अवस्थामें नाम सुनाया जाय तो उनपर नामका प्रभाव काम करता है अर्थात् नामके प्रभावसे उनका उद्धार हो जाता है ।
 
प्रश्न‒अन्तसमयमें कोई अपने पुत्र आदिके रूपमें भी ‘नारायण’, वासुदेव’ आदि नाम लेता है तो उसको भगवान् अपना ही नाम मान लेते हैं; ऐसा क्यों ?
 
उत्तर‒भगवान् बहुत दयालु हैं । उन्होंने यह विशेष छूट दी है कि अगर मनुष्य अन्तसमयमें किसी भी बहाने भगवान्‌का नाम ले ले, उनको याद कर ले तो उसका कल्याण हो जायगा । कारण कि भगवान्‌ने जीवका कल्याण करनेके लिये ही उसको मनुष्य-शरीर दिया है और जीवने उस मनुष्य-शरीरको स्वीकार किया है । अत: जीवका कल्याण हो जाय, तभी भगवान्‌का इस जीवको मनुष्य- शरीर देना और जीवका मनुष्य-शरीर लेना सार्थक होगा । परन्तु वह अपना कल्याण किये बिना ही मनुष्य-शरीरको छोड़कर जा रहा है, इसलिये भगवान् उसको मौका देते हैं कि अब जाते-जाते तू किसी भी बहाने मेरा नाम ले ले, मेरेको याद कर ले तो तेरा कल्याण हो जायगा ! जैसे अन्तसमयमें भयानक यमदूत दीखनेपर अजामिलने अपने पुत्र नारायणको पुकारा तो भगवान्‌ने उसको अपना ही नाम मान लिया और अपने चार पार्षदोंको अजामिलके पास भेज दिया ।
 
तात्पर्य है कि मनुष्यको रात-दिन, खाते-पीते, सोते-जागते, चलते-फिरते, सब समय भगवान्‌का नाम लेते ही रहना चाहिये ।
 
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
 
‒‘मूर्ति-पूजा और नाम-जपकी महिमा’ पुस्तकसे