।। श्रीहरिः ।।


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आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.–२०७०, सोमवार
व्रत-पूर्णिमा
मुक्तिका रहस्य
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
सुषुप्तिमें वस्तुओंके बिना भी हम जीते हैं । जीते ही नहीं, सुखी भी होते हैं और शरीर, इन्द्रियों, मन, बुद्धि सबमें ताजगी भी आती है । जाग्रत्‌में जब वस्तुओंसे सम्बन्ध रहता है, तब हमारी शक्ति क्षीण होती है और नींदमें वस्तुओंका सम्बन्ध न रहनेसे शक्ति संचित होती है । वस्तुओंके सम्बन्ध-विच्छेदके बिना और नींदमें क्या होता है ? यदि जाग्रत् अवस्थामें ही हम वस्तुओंसे अलग हो जायँ, उनसे अपना सम्बन्ध न मानें, उनका आश्रय न लें, तो जीवन्मुक्त हो जायँ ! नींदमें तो बेहोशी (अज्ञान) रहती है, इसलिये उससे जीवन्मुक्त नहीं होते । सम्पूर्ण वस्तुओंसे सम्बन्ध-विच्छेद होना मुक्ति है । मुक्तिमें जो आनन्द है, वह बन्धनमें नहीं है । मुक्तिमें आनन्द होता है‒वस्तुओंसे सम्बन्ध छूटनेसे । नींदमें जब वस्तुओंको भूलनेसे भी सुख- शान्ति मिलती है, तब जानकर उनका सम्बन्ध-विच्छेद करनेसे कितनी सुख-शान्ति मिलेगी !
 
शरीर और संसार एक है । ये एक-दूसरेसे अलग नहीं हो सकते । शरीरको संसारकी और संसारको शरीरकी आवश्यकता है । पर हम स्वयं (आत्मा) शरीरसे अलग हैं और शरीरके बिना भी रहते ही हैं । शरीर उत्पन्न होनेसे पहले भी हम थे और शरीर नष्ट होनेके बाद भी रहेंगे‒इस बातका पता न हो तो भी यह तो जानते ही हैं कि गाढ़ निद्रामें जब शरीरकी यादतक नहीं रहती, तब भी हम रहते हैं और सुखी रहते हैं । शरीरसे सम्बन्ध न रहनेसे शरीर स्वस्थ होता है । संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद होनपर आप भी ठीक रहोगे और संसार भी ठीक रहेगा । दोनोंकी आफत मिट जायगी । शरीरादि पदार्थोंकी गरज और गुलामी मनसे मिटा दें तो महान् आनन्द रहेगा । इसीका नाम जीवन्मुक्ति है । शरीर, कुटुम्ब, धन आदिको रखो, पर इनकी गुलामी मत रखो । जड़ वस्तुओंकी गुलामी करनेवाला जड़से भी नीचे हो जाता है, फिर हम तो चेतन हैं । जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति‒तीनों अवस्थाओंसे हम अलग हैं । ये अवस्थाएँ बदलती रहती हैं, पर हम नहीं बदलते । हम इन अवस्थाओंको जाननेवाले हैं और अवस्थाएँ जाननेमें आनेवाली हैं । अत : इनसे अलग हैं । जैसे, छप्परको हम जानते हैं कि यह छप्पर है तो हम छप्परसे अलग हैं‒यह सिद्ध होता है । अत: हम वस्तु, परिस्थिति, अवस्था आदिसे अलग हैं‒इसका अनुभव होना ही मुक्ति है ।
 
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
 
‒ ‘तात्त्विक प्रवचन’ पुस्तकसे