।। श्रीहरिः ।।
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आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष पूर्णिमा, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
पूर्णिमा
मुक्ति स्वतःसिद्ध है
 
 

लोगोंने प्राय: ऐसा मान रखा है कि हम उद्योग करके विशेष स्थिति प्राप्त कर लेंगे, तब हमारा कल्याण होगा । यह बात अच्छी है पर पूरी अच्छी नहीं । वास्तवमें कल्याण, मुक्ति स्वतःसिद्ध है । वह करनेसे नहीं होती । परन्तु आज यह बात कहनेवाला आदमी अपराधी होता है ! लोग उसका विरोध करते हैं कि यह ठीक नहीं कहता है, गलत कहता है । परन्तु वास्तवमें बात ऐसी ही है । हम कुछ भी करेंगे तो वह प्रकृतिजन्य पदार्थोंके साथ सम्बन्ध जोड़े बिना हो ही नहीं सकेगा । पदार्थोंसे सम्बन्ध जोड़ना ही बन्धन है । हम कुछ भी करेंगे तो शरीरकी सहायता लेंगे, इन्द्रियोंकी सहायता लेंगे, बुद्धिकी सहायता लेंगे, कम-से-कम एक देशमें अहम्‌को पकड़कर ही कुछ करेंगे । अगर अपनेको एक देशमें नहीं पकड़ेंगे, किसीमें ममता नहीं करेंगे तो हमारेसे करना कैसे बनेगा ? अतः करनेसे मुक्ति नहीं होती । करनेसे जो चीज होती है, वह नाशवान् होती है । कारण कि प्रत्येक क्रियाका आरम्भ और अन्त होता है । क्रियासे जो फल मिलता है, उसका भी संयोग और वियोग होता है । जो की जाती है, वह चीज नित्य नहीं होती ।
 
मुक्ति त्यागसे होती है । पदार्थ और क्रियारूपसे जो प्रकृति है, उसके साथ हमारी ममता और अहंता न हो तो हमारी स्वतः मुक्ति है । हमने ही ममता और अहंता करके बन्धन कर रखा है । वह हम छोड़ेंगे तो छूटेगा, नहीं तो न गुरु छुड़ा सकते हैं, न संत छुड़ा सकते हैं और न भगवान् ही छुड़ा सकते हैं । भगवान् तभी छुड़ा सकते हैं, जब आप अपनेको भगवान्‌के सुपुर्द कर दोगे, अन्यथा भगवान् स्वतः किसीको भी नहीं छुड़ाते । जितने भी अच्छे पुरुष होते है, वे किसीपर भी अपना मत नहीं लादते कि तुम ऐसा ही करो । पूछो तो समाधान कर देंगे, हितकी बात कह देंगे; परन्तु जबर्दस्ती नहीं करेंगे । भगवान् भी जबर्दस्ती नहीं करते । हम यह तो कह देते हैं कि भगवान्‌को हमारा उद्धार कर देना चाहिये, पर अगर हम भगवान्‌के शरण हुए ही नहीं तो वे हमारा उद्धार कैसे कर देंगे ? किसीकी स्वतन्त्रताको भगवान् छीनते नहीं । आप सब तरहसे भगवान्‌को स्वतन्त्रता दे दो तो भगवान् सब काम कर देंगे । आपकी अहंता और ममता ही पतन करनेवाली चीज है । इनको आप किसी तरहसे छोड़ दो तो उद्धार हो जायगा । बात इतनी विलक्षण है कि जिसकी मैं महिमा नहीं कह सकता ! अगर हम शरीरकी ममता सर्वथा छोड़ दें तो शरीर प्रायः बीमार नहीं होगा । इन्द्रियोंकी ममता छोड़ दें तो इन्द्रियोंमें बुराई नहीं रहेगी । मनकी ममता छोड़ दें तो मनमें बुराई नहीं रहेगी । बुद्धिकी ममता छोड़ दें तो बुद्धिमें बुराई नहीं रहेगी । ऐसे ही मैंपनके साथ जो ममता (अपनापन) है, उसका त्याग कर दें तो कोई बुराई नहीं रहेगी । मूल बात यह है कि बुराई केवल हमारे सम्बन्ध जोड़नेसे आयी है । हम जितना सम्बन्ध जोड़ करके आग्रह करते हैं, ममता करते हैं, उतनी उसमें बुराई आती है, अशुद्धि आती है । अगर सर्वथा ममता और अहंता छोड़ दें तो मुक्ति स्वतःसिद्ध है । यह बात समझमें आनी कठिन है । ध्यान दें तो समझमें आ जायगी । परन्तु इस तरफ भाई लोग ध्यान देते ही नहीं !
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’ पुस्तकसे