।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण सप्तमी, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
सबमें परमात्माका दर्शन



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
सन्तोंके लिये कहा गया है
संतों की गति रामदासजग से लखी न जाय ।
बाहर तो संसार-सा,   भीतर   उल्टा    थाय ॥

बाहरसे वे संसारका बर्ताव करते हैंपर भीतरसे परमात्मतत्त्वको देखते हैं । भीतरसे उनका किसीके साथ द्वेष नहीं होता और सबके साथ मैत्री तथा करुणाका भाव होता हैअद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्र: करुण एव च  (गीता १२ । १३) । हृदयसे वे सबका हित चाहते हैं । अब प्रश्न यह है कि हमारी दृष्टि सम कैसे हो एक तो आपमें यह बात दृढ़तासे रहे कि मैं तो साधक हूँपरमात्मतत्त्वका जिज्ञासु हूँ’ और एक यह बात दृढ़ रहे कि सबमें परमात्मा हैं ।’ सबमें परमात्माको कैसे देखें इस बातको थोड़ा ध्यानसे सुनें ।मनुष्य हैइसमें जो  हैपना हैसत्ता हैवह कभी मिटती नहीं । वह बुरा हो या भला होदुराचारी हो या सदाचारी होउसमें जो  हैपना हैवह मिटेगा क्या बढिया-से-बढिया चीजोंमें भी वह हैपना है और कूड़ा-करकट आदिमें भी वह हैपना है । उन चीजोंका रूप बदल जाता हैपरहैपना  (सत्ता) नहीं बदलता । कूड़ा-करकटको जला दो तो वह राख बन जायगाउसका रूप दूसरा हो जायगा । पर उसकी सत्ता दूसरी नहीं हो जायगी । वह सत्ता परमात्माकी है । उस सत्ताकी तरफ दृष्टि रखो । जो परिवर्तन होता हैवह प्रकृतिमें होता है । आपको संक्षेपसे प्रकृतिका स्वरूप बतायें तो एक वस्तु और एक क्रियाये दो प्रकृति हैं । वस्तु भी बदलती रहती है और क्रिया भी बदलती रहती है । यह बदलना प्रकृतिका है । आप प्रकृतिके जिज्ञासु नहीं हैं,परमात्माके जिज्ञासु हैं । अत: बदलनेवालेको न देखकर रहनेवाले हैपनको देखो । संसार हैमनुष्य हैपशु है,पक्षी हैयह जीवित हैयह मुर्दा हैइसमें तो फरक हैपरहै’ में क्या फरक पड़ा नफा हो गयानुकसान हो गया;पोतेका जन्म हुआबेटा मर गया तो नफा-नुकसानमें,जन्मने-मरनेमें फरक हैपर दोनोंके ज्ञानमें क्या फरक पड़ान उस वस्तुकी सत्तामें फरक पड़ा और न आपके ज्ञानमें फरक पड़ा ।

व्यवहार तो स्वाँगके अनुसार ही होगा । हम साधु हैं तो साधुकी तरह स्वाँग करेंगे । गृहस्थ हैं तो गृहस्थकी तरह स्वाँग करेंगे । सामने जो व्यक्ति हैपरिस्थिति हैउसको लेकर बर्ताव करना है । परन्तु भीतरसेसिद्धान्तसे यह रहे कि सबमें एक परमात्मतत्त्वकी सत्ता है । सत्यरूपसेज्ञान-रूपसे और आनन्दरूपसे सबमें परमात्मा ही परिपूर्ण है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’ पुस्तकसे