।। श्रीहरिः ।।

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आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
मूर्ति-पूजा
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक मन्दिरके पुजारी थे । उनके इष्ट भगवान् बालगोपाल थे । वे रोज छोटे-छोटे लड्डू बनाया करते और रातके समय जब बालगोपालको शयन कराते, तब उनके सिरहाने वे लड्डू रख दिया करते; क्योंकि बालकको रातमें भूख लग जाया करती है । एक दिन वे लड्डू रखना भूल गये तो रातमें बालगोपालने पुजारीको स्वप्नमें कहा कि मेरेको भूख लग रही है ! ऐसे ही एक और घटना है । एक साधु थे । वे प्रतिवर्ष दीपावलीके बाद (ठण्डीके दिनोंमें) भगवान्‌को काजू, बादाम, पिस्ता, अखरोट आदिका भोग लगाया करते थे । एक वर्ष सूखा मेवा बहुत मँहगा हो गया तो उन्हाने मूँगफलीका भोग लगाना शुरू कर दिया । एक दिन रातमें भगवान्‌ने स्वप्नमें कहा कि क्या तू मूँगफली ही खिलायेगा ? उस दिनके बाद उन्होंने पुन: भगवान्‌को काजू आदिका भोग लगाना शुरू कर दिया । पहले उनके मनमें कुछ वहम था कि पता नहीं, भगवान् भोगको ग्रहण करते हैं या नहीं ? जब भगवान्‌ने स्वप्नमें ऐसा कहा, तब उनका वहम मिट गया । तात्पर्य है कि कोई भगवान्‌को भावसे भोग लगाता है तो उनको भूख लग जाती है और वे उसको ग्रहण कर लेते हैं ।
 
एक साधु थे । उनकी खुराक बहुत थी । एक बार उनके शरीरमें रोग हो गया । किसीने उनसे कहा कि महाराज ! आप गायका दूध पिया करें, पर दूध वही पीयें, जो बछड़ेके पीनेपर बच जाय । उन्होंने ऐसा ही करना शुरू कर दिया । जब बछड़ा पेट भरकर अपनी माँका दूध पी लेता, तब वे गायका दूध निकालते । गायका पाव-डेढ़-पाव दूध निकलता, पर उतना ही दूध पीनेसे उनकी तृप्ति हो जाती । कुछ ही दिनोंमें उनका रोग मिट गया और वे स्वस्थ हो गये । जब न्याययुक्त वस्तुमें भी इतनी शक्ति है कि थोड़ी मात्रामें लेनेपर भी तृप्ति हो जाय और रोग मिट जाय तो फिर जो वस्तु भावपूर्वक दी जाय, उसका तो कहना ही क्या है !
 
यह तो सबका ही अनुभव है कि कोई भावसे, प्रेमसे भोजन कराता है तो उस भोजनमें विचित्र स्वाद होता है और उस भोजनसे वृत्तियाँ भी बहुत अच्छी रहती हैं । केवल मनुष्यपर ही नहीं, पशुओंपर भी भावका असर पड़ता है । जिस बछड़ेकी माँ मर जाती है, उसको लोग दूसरी गायका दूध पिलाते हैं । इससे वह बछड़ा जी तो जाता है, पर पुष्ट नहीं होता । वही बछड़ा अगर अपनी माँका दूध पीता तो माँ उसकी प्यारसे चाटती, दूध पिलाती, जिससे वह थोड़े ही दूधसे पुष्ट हो जाता । जब मनुष्य और पशुओंपर भी भावका असर पड़ता है तो फिर अन्तर्यामी भगवान्‌पर भावका असर पड़ जाय, इसका तो कहना ही क्या है ! विदुरानीके भावके कारण ही भगवान्‌ने उसके हाथसे केलेके छिलके खाये । गोपियोंके भावके कारण ही भगवान्‌ने उनके हाथसे छीनकर दही, मक्खन खाया । भगवान् ब्रह्माजीसे कहते हैं‒
नैवेद्यं पुरतो न्यस्तं   चक्षुषा   गृह्यते मया ।
रसं च दासजिह्वायामश्नामि कमलोद्भव ॥
 
‘हे कमलोद्भव ! मेरे सामने रखे हुए भोगोंको मैं नेत्रोंसे ग्रहण करता हूँ; परंतु उस भोगका रस मैं भक्तकी जिह्वाके द्वारा ही लेता हूँ ।’
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मूर्ति-पूजा और नाम-जपकी महिमा’ पुस्तकसे