(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒मालूम पड़ता है कि यह सही बात है ।
स्वामीजी‒सही बात है‒ऐसा मालूम पड़ता है तो फिर खटपट मिटती क्यों नहीं ? कहीं-न-कहीं दोष है । जिस बातसे खटपट मिटती है उस बातका ज्यादा आदर करो । खटपट मचती है तो उसके मूलमें क्या है‒उसकी निगाह करो । जहाँ कहीं मनमें खलबली मचे तो स्वयं विचार करो कि मूलमें कहीं दोष हुआ ? क्या दोष हुआ ? तो कहीं-न-कहीं ममता की है, पक्षपात किया है, सुखभोगकी इच्छा की है,किसी लाभकी इच्छा की है, कुछ-न-कुछ लेनेकी इच्छा की है नहीं तो खलबली हो ही नहीं सकती ।
श्रोता‒परमात्माके लिये व्याकुलता होती है तो उसमें कोई सांसारिक सुख आनेसे हम उस सुखकी तरफ चले जाते हैं, व्याकुलताकी तरफ नहीं आते; ऐसे समय क्या करें ?
स्वामीजी‒व्याकुलतामें रहो, भोगमें मत जाओ । भोगको मत पकड़ो, भोगके कारणको अर्थात् रागको पकड़ो और उसको मिटाओ ।
अपनी यह बात हुई है न, इससे बड़ा लाभ होता है ।आप-से-आप सोचोगे तो यह बाधा नहीं मिटेगी और आपसमें खुल करके बात करते ही इसको मिटानेमें आपको मदद मिलेगी । यह मैंने देखा है । मेरेको कोई समझा देता है तो वह काम मेरे लिये बहुत सुगम होता है । स्वयं मैं सोचता हूँ,समझता हूँ तो भी फरक पड़ता है । परन्तु दूसरेके समझानेसे बहुत जल्दी फरक पड़ता है । मेरी प्रकृति ऐसी है तो मैं समझता हूँ कि दूसरोंकी प्रकृति भी ऐसी होगी । मेरी जो यह समझानेकी प्रवृत्ति होती है, इसको मैं बढ़िया नहीं मानता हूँ । दूसरोंको उपदेश देना, दूसरोंको समझाना अपनी मूर्खताको स्वीकार करना है, अपने अभिमानको स्वीकार करना है,दूसरोंको बेसमझ मानना है । दूसरोंको बेसमझ मानना और अपनेको समझदार मानना गुण नहीं है, दोष है, पतनकी चीज है । ऐसा मानते हुए भी मेरी समझानेकी प्रवृत्ति होती है । क्यों होती है ? इसमें कई कारण हो सकते हैं । विचारपूर्वक देखता हूँ तो मेरेको कोई समझाये तो मुझे लाभ होता है; अतः दूसरोंको कोई समझाये तो उनको भी लाभ होता होगा, इसलिये मेरी समझानेकी प्रवृत्ति होती है । आपसमें बात होनेसे विषय बहुत साफ हो जाता है और वैसा अनुष्ठान करनेमें बड़ी मदद मिलती है । अत: आपसमें विचार-विनिमय हो, विचारोंका आदान-प्रदान हो । केवल उपदेश देकर गुरु बन जानेसे लाभ नहीं होता । आपसमें दोनों समान समझकर विचार करें । किसी विषयमें मैं जानता हूँ और किसी विषयमें आप जानते हैं तो टोटलमें बराबर ही हुए न ? ऐसे बराबर हो करके विचार करें ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’ पुस्तकसे
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