।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
पौष कृष्ण द्वितीया, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
मुक्ति स्वतःसिद्ध है


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोतामालूम पड़ता है कि यह सही बात है ।

स्वामीजीसही बात हैऐसा मालूम पड़ता है तो फिर खटपट मिटती क्यों नहीं कहीं-न-कहीं दोष है । जिस बातसे खटपट मिटती है उस बातका ज्यादा आदर करो । खटपट मचती है तो उसके मूलमें क्या हैउसकी निगाह करो । जहाँ कहीं मनमें खलबली मचे तो स्वयं विचार करो कि मूलमें कहीं दोष हुआ क्या दोष हुआ तो कहीं-न-कहीं ममता की हैपक्षपात किया हैसुखभोगकी इच्छा की है,किसी लाभकी इच्छा की हैकुछ-न-कुछ लेनेकी इच्छा की है नहीं तो खलबली हो ही नहीं सकती ।

श्रोतापरमात्माके लिये व्याकुलता होती है तो उसमें कोई सांसारिक सुख आनेसे हम उस सुखकी तरफ चले जाते हैंव्याकुलताकी तरफ नहीं आतेऐसे समय क्या करें ?

स्वामीजीव्याकुलतामें रहोभोगमें मत जाओ । भोगको मत पकड़ोभोगके कारणको अर्थात् रागको पकड़ो और उसको मिटाओ ।

अपनी यह बात हुई है नइससे बड़ा लाभ होता है ।आप-से-आप सोचोगे तो यह बाधा नहीं मिटेगी और आपसमें खुल करके बात करते ही इसको मिटानेमें आपको मदद मिलेगी । यह मैंने देखा है । मेरेको कोई समझा देता है तो वह काम मेरे लिये बहुत सुगम होता है । स्वयं मैं सोचता हूँ,समझता हूँ तो भी फरक पड़ता है । परन्तु दूसरेके समझानेसे बहुत जल्दी फरक पड़ता है । मेरी प्रकृति ऐसी है तो मैं समझता हूँ कि दूसरोंकी प्रकृति भी ऐसी होगी । मेरी जो यह समझानेकी प्रवृत्ति होती हैइसको मैं बढ़िया नहीं मानता हूँ । दूसरोंको उपदेश देनादूसरोंको समझाना अपनी मूर्खताको स्वीकार करना हैअपने अभिमानको स्वीकार करना है,दूसरोंको बेसमझ मानना है । दूसरोंको बेसमझ मानना और अपनेको समझदार मानना गुण नहीं हैदोष हैपतनकी चीज है । ऐसा मानते हुए भी मेरी समझानेकी प्रवृत्ति होती है । क्यों होती है ? इसमें कई कारण हो सकते हैं । विचारपूर्वक देखता हूँ तो मेरेको कोई समझाये तो मुझे लाभ होता हैअतः दूसरोंको कोई समझाये तो उनको भी लाभ होता होगाइसलिये मेरी समझानेकी प्रवृत्ति होती है । आपसमें बात होनेसे विषय बहुत साफ हो जाता है और वैसा अनुष्ठान करनेमें बड़ी मदद मिलती है । अत: आपसमें विचार-विनिमय होविचारोंका आदान-प्रदान हो । केवल उपदेश देकर गुरु बन जानेसे लाभ नहीं होता । आपसमें दोनों समान समझकर विचार करें । किसी विषयमें मैं जानता हूँ और किसी विषयमें आप जानते हैं तो टोटलमें बराबर ही हुए न ऐसे बराबर हो करके विचार करें ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’ पुस्तकसे