।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल दशमी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
एकादशी-व्रत कल है
भोग और योग


(गत ब्लॉगसे आगेका)
बीमारीमेंघाटा लगनेमेंप्रियकी मृत्युमें भी प्रसन्नता होनी चाहिये और ऐसा हो सकता है ! दुःखमें भी सुख हो सकता है । तेज बुखार चढ़ेशरीरमें पीड़ा हो तो उसमें भी आनन्द हो सकता है । अपमान हो जायघाटा लग जाय तो उसमें भी आनन्द हो सकता है । अगर यह बात समझमें आ जाय तो बड़े भारी लाभकी बात है ! अनुकूलतामें सुखी और प्रतिकूलतामें दुःखी तो पशुपक्षीभूतप्रेतपिशाचराक्षस आदि भी होते हैं । अगर यही दशा हमारी भी है तो मनुष्य-शरीरकी क्या विशेषता हुई ! हमारेमें और पशुओंमें क्या फर्क हुआ अत: हमें प्रत्येक परिस्थितिमें प्रसन्न रहना है । सुख आनेपर भी प्रसन्न रहना है और दुःख आनेपर भी प्रसन्न रहना है‒‘मनःप्रसादः सौम्यत्वम्' (गीता १७ । १६) ।

प्रश्न‒दुःख आनेपर भी प्रसन्न कैसे रहें !

उत्तर‒जैसेपैरमें काँटा गड़ जाय तो उसको लोहेके काँटेसे ही निकालते हैं । इसलिये काँटा निकालते समय बड़ी पीड़ा होती है । परन्तु ‘काँटा निकल रहा है’इस बातको लेकर उस पीड़ामें भी सुखका अनुभव होता है । प्रसवके समय स्त्रीको बहुत पीड़ा होती है । सन्तोंने भी लिखा है‒‘बाँझ कि जान प्रसव कै पीरा’ (मानस १ । ९७ । २) । परन्तु उस समय भी जब वह सुनती है कि ‘लड़का जन्मा है’,तब उसको उस पीड़ामें भी प्रसन्नताका अनुभव होता है । हम कर्जा चुकाते हैं तो घरसे पैसे देने पड़ते हैंपर ‘कर्जा उतर गया’ इस बातसे बड़ी प्रसन्नता होती है । घरसे सौ रुपये निकल जायें तो दुःख होता हैपर सौ रुपये निकलनेपर कर्जा उतरता हो तो भले आदमीको बड़ा सुख होता है कि बहुत अच्छा हुआ ! इससे सिद्ध हुआ कि दुःखमें भी सुखका अनुभव हो सकता है ।

पाप-पुण्यकी दृष्टिसे विचार करें तो दुःखमें पापोंका नाश होता है और सुखमें पुण्योंका । विचार करें कि हम पापोंका नाश चाहते हैं या पुण्योंका कोई भी यह नहीं चाहता कि मेरे पुण्योंका नाश हो जाय । सभी यह चाहते हैं कि हमारे पाप नष्ट हो जायँ । जो भी दुःख आता हैकष्ट आता है, उससे पुराने पापोंका नाश होता है और नयी सावधानी होती है‒यह बिलकुल सच्ची बात है । जितनी प्रतिकूलता आती हैउतना ही पापोंका नाश होता है । पापोंका नाश होनेपर तो प्रसन्नता होनी चाहिये !

जितनी दुःखदायी परिस्थिति आती हैउतना ही अन्तःकरण निर्मल होता है‒यह प्रत्यक्ष अनुभवकी बात है ।कोई आदमी बहुत अधिक बीमार हो जाय और फिर ठीक हो जाय तो ठीक होनेके बाद जब वह सत्संगकी बातें सुनता है,तब वह गद्‌गद हो जाता हैउसकी आँखोसे आँसू आने लगते हैं । कारण यह है कि रोगका कष्ट भोगनेसे उसके पाप नष्ट हुए हैं और अन्तःकरण निर्मल हुआ हैजिससे उसपर सत्संगकी बातोंका बड़ा असर होता है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे